नई दिल्ली। इसरो प्रमुख डॉ. सोमनाथ ने कहा है कि इसरो अब चंद्रमा से उसकी मिट्टी और पत्थरों का सैंपल धरती पर लेकर आएगा। इसरो चीफ राष्ट्रपति भवन कल्चरल सेंटर में ‘राष्ट्रपति भवन विमर्श श्रृंखला’ में लेक्चर दे रहे थे। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भरोसा दिलाते हुए कहा कि हम चांद से पत्थर लेकर जरूर आएंगे. वह भी अपने दम पर।
आसान नहीं मिशन
सोमनाथ ने कहा कि यह मिशन इतना आसान नहीं होगा। अगर आप चांद पर जाते हैं और वहां से वापस आते हैं, वह भी कई तरह की रिकवरी करते हुए तो आपको कई आधुनिक तकनीकों की जरूरत पड़ती है। इसके लिए हमें अभी काफी काम करना बाकी है। सैंपल रिटर्न मिशन काफी जटिल होता है। यह पूरा ऑटोमैटिक होगा। इसमें इंसानों की भूमिका कम से कम होगी। इसरो चीफ ने कहा कि इन तकनीकों को विकसित करने में कम से कम चार साल लग जाएंगे। यही हमारा टारगेट भी है।
जापान कर रहा मदद
चंद्रयान-4 मिशन का पूरा नाम है है लूपेक्स । जापान इस प्रोजेक्ट में भारत के साथ काम कर रहा है। वह भारत की सफलता को देखते हुए उसके साथ काम करने के लिए तैयार हुआ है। लूपेक्स यानी लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन मिशन। लूपेक्स असल में अंतरराष्ट्रीय मिशन है जिसे मुख्य रूप से इसरो और जापानी स्पेस एजेंसी जाक्सा मिलकर कर रहे हैं।
कई देशों के उपकरण
जाक्सा चांद पर चलने वाला रोवर बनाएगी। इसरो लैंडर बनाएगा। नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) इसमें लगने वाले ऑब्जरवेशन इंस्ट्रूमेंट्स बनाएंगे। ये यंत्र रोवर के ऊपर लगे होंगे। लूपेक्स मिशन में चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर-रोवर उतारा जाएगा। यह मिशन 2026-28 के बीच पूरा हो सकता है।भारत और जापान के वैज्ञानिक चंद्रयान-4 मिशन में काफी कुछ बदलाव करेंगे। इस साल अप्रैल में जापानी डेलिगेशन भारत आया था। डेलिगेशन ने चंद्रमा पर लैंडिंग साइट के बारे में इसरो से बातचीत की थी। आइडिया शेयर किए गए थे। अन्य लैंडिंग लोकेशन को भी खोजा गया था।
पूरे मिशन का कुल वजन 6000 किलो होगा
इसके अलावा रोवर, एंटीना, टेलीमेट्री और पूरे प्रोजेक्ट के एस्टीमेट पर भी चर्चा की गई थी। पूरे मिशन का कुल वजन 6000 किलो होगा। जबकि पेलोड का वजन 350 किलो के आसपास होगा। 2019 में भारत और जापान ने लूपेक्स मिशन में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को भी शामिल करने की चर्चा की थी।
1.5 मीटर गहरा गड्ढा खोदा जाएगा
अगर यह मिशन सफल होता है तो भारत-जापान मिलकर चंद्रमा की सतह पर 1.5 मीटर गहरा गड्ढा खोदकर वहां से मिट्टी का सैंपल लाएंगे। इसमें ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार (जीपीआर) का इस्तेमाल भी हो सकता है। गड्ढा करने से पहले रोवर मिट्टी के अंदर मौजूद पानी की खोज करेगा। इसके लिए वह लेजर तकनीक की मदद लेगा। लेजर को जब मिट्टी के अंदर पानी की मौजूदगी दिखाई देगी, तब वह अपनी ड्रिलिंग मशीन के जरिए मिट्टी का सैंपल जमा करेगा। उसके बाद उस सैंपल को वह अपने अंदर मौजूद एक यंत्र में डालकर उसकी जांच करेगा। इस जांच से यह पता चलेगा कि चंद्रमा की सतह के नीचे पानी का खजाना मौजूद है या नहीं।