ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज अवैध खनन से जुड़े मामले में झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के सहयोगी प्रेम प्रकाश को जमानत दे दी। कोर्ट ने दो-टूक कहा, मनी लांड्रिंग केस में भी जमानत नियम और जेल अपवाद है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा, धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) से जुड़े केस में कोई आरोपी ईडी हिरासत में खुद को दोषी साबित करने का इकबालिया बयान देता है तो इसे सुबूत नहीं मान सकते।
पीठ ने कहा, इसे सुबूत मानना समानता व जीवन के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। लिहाजा, हम उस नियम पर भारतीय साक्ष्य संहिता की धारा 25 के तहत प्रतिबंध लगाते हैं।
फैसला बनेगा नजीर
अब तक दोहरी शर्तों के कारण बेल लगभग नामुमकिन थी। हिरासत में दिए बयान को सुबूत माना जाता था। अब ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट का फैसला नजीर के रूप में पेश किया जाएगा।
एक दिन पहले ही दिल्ली एक्साइज मामले में बीआरएस नेता के. कविता को जमानत देते वक्त कोर्ट ने कहा था कि दोषसिद्धि के बिना लंबे समय तक किसी को जेल में रखना बिना मुकदमे के सजा के बराबर होगा।
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
दोहरी शर्त के मायने यह नहीं कि बेल नहीं मिलेगी सह अभियुक्त का बयान ही पर्याप्त सुबूत नहीं
प्रीम कोर्ट ने कहा, मनीष सिसोदिया मामले में हमने पाया कि पीएमएलए केस में भी जमानत नियम और जेल अपवाद है। पीएमएलए की धारा 45 में जमानत की शर्तें दी गई हैं। संविधान में स्वतंत्रता नियम है और कानूनन जेल भेजना अपवाद है। किसी कानून की जमानत की दोहरी शर्तें इसे खत्म नहीं कर सकतीं। इन शर्तों का यह मतलब नहीं कि जमानत दी ही नहीं जा सकती। आरोपी की व्यक्तिगत आजादी संविधान प्रदत्त है। ईडी ने प्रेम प्रकाश पर झारखंड में अवैध खनन में शामिल होने का आरोप लगाया है। कोर्ट ने कहा- अगर सह-अभियुक्त किसी के खिलाफ बयान देता है तो सिर्फ यही दूसरे के खिलाफ केस शुरू करने का पर्याप्त सुबूत नहीं हो सकता।