ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दर्ज शिकायत में प्रथमदृष्टया कोई मामला नहीं बनता है, तो आरोपी को अग्रिम जमानत देने से अदालत को नहीं रोका जाएगा।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि कोर्ट को यह देखने के लिए प्रारंभिक जांच करनी चाहिए कि क्या शिकायत में आरोपित अपराध के जरूरी तत्वों का खुलासा होता है या नहीं। अगर ऐसा नहीं होता, तो आरोपी को अग्रिम जमानत दी जा सकती है।
हर अपमान या धमकी, जाति आधारित नहीं होता
कोर्ट ने ये भी कहा कि अनुसूचित जाति या जनजाति के किसी सदस्य का जानबूझकर किया गया हर अपमान या धमकी, जाति आधारित अपमान के दायरे में नहीं आता। मतलब, अगर कोई अपमान या धमकी दी गई है, तो उसे तब तक अपराध नहीं माना जाएगा जब तक कि वह खास तौर पर पीड़ित की जाति के कारण न की गई हो।
अदालतें अपने निर्णय में निष्पक्ष रहें
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अदालतों को अपने निर्णय में निष्पक्ष रहना चाहिए और शिकायत में दर्ज आरोपों को सामान्य रूप से पढ़कर देखना चाहिए कि क्या वे अपराध के तत्वों को पूरा करते हैं या नहीं। कोर्ट ने कहा कि अदालतों को ऐसे मामलों में प्रारंभिक जांच करने से पीछे नहीं हटना चाहिए ताकि ये सुनिश्चित हो सके कि अग्रिम जमानत की मांग जायज़ है या नहीं।
अग्रिम जमानत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का महत्वपूर्ण पहलू
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि अग्रिम जमानत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
इस मामले में कोर्ट ने यूट्यूबर शाजन स्कारिया को केरल के विधायक पीवी श्रीनिजिन द्वारा दर्ज कराए गए एक आपराधिक मामले में जमानत दी है। कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह संकेत मिले कि स्कारिया ने वीडियो में एससी-एसटी समुदाय के खिलाफ कोई शत्रुता, घृणा या दुर्भावना फैलाई हो।