दीपक द्विवेदी
गत 9 अगस्त की रात पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के प्रतिष्ठित आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में हुई दर्दनाक घटना और उसके बाद जो कुछ देश में हुआ; वह अनेक सवाल खड़े कर गया। एक जूनियर महिला डॉक्टर के साथ बर्बर दुष्कर्म और हत्या की घटना ने जहां पूरे देश को झकझोर कर रख दिया, वहीं इस वारदात ने हमारे समाज की खोखली हो रही संवेदनाओं तथा चरित्र निर्माण में हो रही गंभीर चूकों को भी उजागर कर दिया है। भारत वह देश है जो नारी को देवी के रूप में पूजता है पर जब-तब एक के बाद एक हो रही ऐसी घटनाएं सामने आती रहने से नारी को पूज्य मानने की सारी मान्यताएं तार-तार होती नजर आती हैं।
आज जब हम देश को विकसित भारत बनाने की बात कर रहे हैं तो ऐसे में इतनी क्षुद्र और निम्नतर स्तर की घटनाएं हमें अपने समाज में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में शर्मसार कर रही हैं। किसी भी देश को केवल पुरुष समाज ही विकसित नहीं बना सकता। देश ही क्या, समाज की पहली इकाई परिवार से लेकर विश्व तक को अगर विकसित करना है तो वह महिलाओं की समान भागीदारी के बिना संभव नहीं। आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नारी को और सशक्त बनाने की बात कर रहे हैं तथा विकसित भारत के निर्माण में आधी आबादी की भूमिका को अनिवार्य करार दे रहे हैं तो ऐसे में कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित किए बिना इतना बड़ा लक्ष्य कैसे प्राप्त किया जा सकता है? बात सिर्फ कार्यस्थल की ही नहीं; हर जगह नारी सुरक्षित हो; हमें यह सुनिश्चित करना होगा।
कोलकाता कांड और महाराष्ट्र के बदलापुर में दो बच्चियों के यौन शोषण जैसी तमाम वारदातों को लेकर देशभर में कायम आक्रोश के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध अक्षम्य हैं। मैं देश के हर राजनीतिक दल, हर राज्य सरकार से यही कहूंगा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध का दोषी कोई भी हो, बचना नहीं चाहिए। उसको किसी भी तरह से मदद करने वाले भी बचने नहीं चाहिए।
अत: अब सिर्फ रिपोर्ट हो जाने मात्र से शोषण और दुष्कर्म नहीं रुकने वाला। इसके लिए हर स्तर पर कठोरतम व्यवस्थाएं बनानी होंगी।
इसमें कोई दोराय नहीं कि ऐसे अपराधी किसी भी वजह से बचने नहीं चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि निर्भया कांड के बाद दुष्कर्म व हत्या के संबंध में कानूनों में जो सख्त प्रावधान किए गए; उनका कोई खौफ अपराधियों में नहीं है। वस्तुत: होना तो यह चाहिए कि दुष्कर्म से जुड़े कानून इतने सख्त हों कि अपराध करने का ख्याल आने से पहले ही अपराधी की रुह कड़े कानूनों व सख्त सजा के भय से ही कांप जाए।
इसी के साथ एक अन्य सवाल यह भी खड़ा होता है कि क्या डॉक्टर जैसे पेशे से जुड़े लोगों को हड़ताल पर जाना चाहिए? इसमें कोई शक नहीं कि डॉक्टर पृथ्वी पर दूसरे भगवान हैं और उनकी सुरक्षा हर हाल में होनी ही चाहिए। इसीलिए देश के सुप्रीम कोर्ट ने भी यह सत्य प्रतिपादित किया कि न्याय व चिकित्सा कभी हड़ताल पर नहीं हो सकते और संभवत: यह मूल मंत्र अन्य और ऐसी आवश्यक सेवाओं पर भी लागू होता है कि वे किसी भी विपरीत परिस्थिति में हड़ताल पर नहीं जाएं ताकि आम आदमी के समक्ष संकट खड़ा न हो।
इन दिनों प्रश्न अब यह भी उठ रहे हैं कि क्यों हम समाज में औरतों के साथ इस तरह की दरिंदगी रोक नहीं पा रहे हैं? उत्तर यही है कि पुरुष प्रधान हमारे देश में समाज के बड़े नेता व लोग भी दुष्कर्म जैसे घृणित अपराध को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। नाम लेने की आवश्यकता नहीं पर अनेक नेता ऐसे भी हैं जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से दुष्कर्मियों के साथ खड़े दिखाई देते हैं। कई नेता तो ऐसे भी है जो स्वयं इस प्रकार के गंभीर आरोपों से आरोपित हैं। इसी क्रम में पिछले कुछ दिनों से जस्टिस हेमा कमेटी की रिपोर्ट भी मलयालम फिल्म उद्योग में चर्चा में है। मलयाली फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्रियां किस तरह शोषण का शिकार होती हैं, इसकी कहानी जैसे रिपोर्ट का हर पृष्ठ कहता है। ऐसी ही खबरें बॉलीवुड या अन्य जगह की भी आती रहती हैं। तमाम रिपोर्टों में लिखा गया कि हर दिन भारत में सौ दुष्कर्म होते हैं। यह आंकड़े भी हम तभी याद करते हैं जब किसी एक दुष्कर्म को लेकर हल्ला मचता है। इसलिए भी यह और आवश्यक हो जाता है कि दुष्कर्म जैसे घृणित अपराधों में कठोरतम सजा का प्रावधान किया जाए ताकि किसी को भी संरक्षण प्राप्त न हो सके। अत: अब सिर्फ रिपोर्ट हो जाने मात्र से शोषण और दुष्कर्म नहीं रुकने वाला। इसके लिए हर स्तर पर कठोरतम व्यवस्थाएं बनानी होंगी।