नीलोत्पल आचार्य
दोस्तो, आपने ये सुना तो जरूर होगा कि गंगाजल खराब नहीं होता मगर, क्या आप जानते है ऐसा क्यों? हिमालय की गंगोत्री से निकली गंगा (भागीरथी), हरिद्वार (देवप्रयाग) में अलकनंदा से मिलती है। यहां तक आते-आते इसमें कुछ चट्टानें घुलती जाती हैं जिससे इसके जल में ऐसी क्षमता पैदा हो जाती है जो पानी को सड़ने नहीं देती।
नदी जल की अपनी जैविक संरचना
हर एक नदी के जल की अपनी जैविक संरचना होती है, जिसमें वह खास तरह के घुले हुए पदार्थ रहते हैं जो कुछ किस्म के जीवाणु को पनपने देते हैं और कुछ को नहीं।
वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि गंगा के पानी में ऐसे जीवाणु हैं जो सड़ाने वाले कीटाणुओं को पनपने ही नहीं देते, इसलिए पानी लंबे समय तक खराब नहीं होता।
आइये थोड़ा विस्तार से इसके वैज्ञानिक कारण को जान लेते हैं –
वैज्ञानिक बताते हैं कि हरिद्वार में गोमुख- गंगोत्री से आ रही गंगा के जल की गुणवत्ता पर इसलिए कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि यह हिमालय पर्वत पर उगी हुई अनेकों जीवनदायनी उपयोगी जड़ी-बूटियों, खनिज पदार्थों और लवणों को स्पर्श करता हुआ आता है।
अवांछनीय पदार्थों को खाता है बैक्टीरिया
वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि – गंगाजल में ‘बैक्टीरिया फोस’ नामक एक बैक्टीरिया पाया गया है जो पानी के अंदर रासायनिक क्रियाओं से उत्पन्न होने वाले अवांछनीय पदार्थों को खाता रहता है। इससे जल की शुद्धता बनी रहती है। गंगा के पानी में गंधक (सल्फर) की प्रचुर मात्रा मौजूद रहती है; इसलिए भी यह ख़राब नहीं होता।
भू-रासायनिक क्रियाएं भी गंगाजल में होती हैं
इसके अतिरिक्त कुछ भू-रासायनिक क्रियाएं भी गंगाजल में होती रहती हैं, जिससे इसमें कभी कीड़े पैदा नहीं होते। यही कारण है कि यह पानी सदा पीने योग्य माना गया है। जैसे-जैसे गंगा हरिद्वार से आगे अन्य शहरों की ओर बढ़ती जाती है शहरों, नगर निगमों और खेती-बाड़ी का कूड़ा-करकट तथा औद्योगिक रसायनों का मिश्रण गंगा में डाल दिया जाता है।
रोगों के कीटाणु होते नष्ट
वैज्ञानिक परीक्षणों से पता चला है कि गंगाजल से स्नान करने तथा गंगाजल को पीने से हैजा, प्लेग, मलेरिया तथा क्षय आदि रोगों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
हुआ था गहन परीक्षण
इस बात की पुष्टि के लिए एक बार बैक्टीरियलोजिस्ट डा. अर्न्स्ट हैकिन्स, ब्रिटिश सरकार की ओर से गंगाजल से दूर होने वाले रोगों के परीक्षण के लिए आए थे। उन्होंने गंगाजल के परिरक्षण के लिए गंगाजल में हैजे (कालरा) के कीटाणु डाले। हैजे के कीटाणु मात्र 6 घंटे में ही मर गए और जब उन कीटाणुओं को साधारण पानी में रखा गया तो वे जीवित होकर असीमित संख्या में बढ़ गए। इस तरह देखा गया कि गंगाजल विभिन्न रोगों को दूर करने वाला जल है।
फ्रांस के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. फ्लिक्स डि हेरेले ने साल 1927 में गंगाजल पर वर्षों अनुसंधन करके अपने प्रयोगों का विवरण शोधपत्रों के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने आंत्र शोध व हैजे से मरे अज्ञात लोगों के शवों को गंगाजल में ऐसे स्थान पर डाल दिया, जहां कीटाणु तेजी से पनप सकते थे। डॉ. हैरेन को आश्चर्य हुआ कि कुछ दिनों के बाद इन शवों से आंत्र शोध व हैजे के ही नहीं बल्कि अन्य कीटाणु भी गायब हो गए। उन्होंने गंगाजल से ‘बैक्टीरिया सेपफेज’ नामक एक घटक निकाला, जिसमें औषधीय गुण हैं।
इंग्लैंड के जाने-माने चिकित्सक सी. ई. नेल्सन ने गंगाजल पर अन्वेषण करते हुए लिखा कि इस जल में सड़ने वाले जीवाणु नहीं होते। उन्होंने महर्षि चरक को उद्धृत करते हुए लिखा कि गंगाजल सही मायने में पथ्य है। कनाडा के मैकिलन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. एम. सी. हैमिल्टन ने गंगा की शक्ति को स्वीकारते हुए कहा कि वे नहीं जानते कि इस जल में अपूर्व गुण कहां से और कैसे आए।
गंगा में स्नान का विशेष लाभ
गंगा नदी में स्नान करने वालों को स्नान का विशेष लाभ होता है। गंगाजल अपने खनिज गुणों के कारण इतना अधिक गुणकारी होता है कि इससे अनेक प्रकार के रोग दूर होते हैं। गंगा नदी में स्नान करने वाले लोग स्वस्थ और रोग मुक्त बने रहते हैं। इससे शरीर शुद्ध और स्फूर्तिवान बनता है।