ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। इस वक्त देश में चुनावी माहौल है। 19 अप्रैल से लेकर 1 जून के बीच देशभर में सात चरणों में चुनाव कराए जाने हैं। चुनाव आयोग ने भारत में चुनावों के इतिहास से जुड़ी एक पुस्तक ‘लीप ऑफ फेथ’ प्रकाशित की है। इस पुस्तक से कई दिलचस्प तथ्य निकलकर सामने आए हैं। चुनाव आयोग के रिकॉर्ड के अनुसार 1951 में पहले लोकसभा चुनाव में 53 राजनीतिक दलों ने भाग लिया था। आज राजनीतिक दलों की संख्या 2,500 से अधिक है। हालांकि, सात दशक से अधिक समय में राष्ट्रीय दलों की संख्या 14 से घटकर छह रह गई है।
राष्ट्रीय दल बनने के लिए किसी राजनीतिक पार्टी को तीन शर्तों में से किसी एक पर खरा उतरना चाहिए। पहली शर्त है कि पार्टी कम से कम तीन अलग-अलग राज्यों से लोकसभा की कुल सीटों में से कम से कम दो प्रतिशत सीटें जीते। दूसरी शर्त है कि पार्टी लोकसभा सीटों के अलावा चार राज्यों में कम से कम छह प्रतिशत वोट प्राप्त करे। तीसरी शर्त है कि राजनीतिक दल चार राज्यों में राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त होनी चाहिए।
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा यह सुनिश्चित करता है कि पार्टी का चुनाव चिह्न देशभर में उसके उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। उसे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कार्यालय के लिए जमीन मिलती है। देश में फिलहाल छह राष्ट्रीय पार्टियां हैं। ये दल हैं- भाजपा, कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, सीपीआई (एम), नेशनल पीपुल्स पार्टी और आप।
1951-52 में देश के पहले आम चुनाव हुए थे। पहले चुनाव में कुल 53 राजनीतिक दलों ने भाग लिया था। इनमें से 14 ‘राष्ट्रीय दल’ (नेशनल पार्टी) थे जबकि शेष को ‘राज्य दल’ (स्टेट पार्टी) माना गया। इन चुनावों से पहले 29 राजनीतिक दलों ने राष्ट्रीय दल का दर्जा मांगा था। लेकिन केवल 14 को ही राष्ट्रीय दर्जा देने का निर्णय लिया गया। जब चुनाव नतीजे आए तो उनमें से केवल चार ही राष्ट्रीय दर्जा बनाए रखने लायक वोट हासिल कर सके। 1953 तक चार राष्ट्रीय दल थे- कांग्रेस, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (सोशलिस्ट पार्टी और किसान मजदूर पार्टी के विलय से बना दल ), भाकपा और जनसंघ थे। वहीं कई दलों ने अपना राष्ट्रीय दर्जा खो दिया।