विनोद शील
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने विगत 10 वर्षों के अपने कार्यकाल में अनेक ऐसे अहम फैसले और बदलाव किए हैं जिनका भारत एवं विश्व पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। कश्मीर में अनुच्छेद 370 बदलने की बात हो या तीन तलाक का कानून अथवा कोई अन्य मुद्दा; जो भी बदलाव किए गए, उनसे देश के नागरिकों को व्यापक स्तर पर लाभ ही हुआ है। इसी क्रम में मोदी सरकार ने देश में सैकड़ों ऐसे अजीब और पुरातन कानूनों को बदला है जो म्यूजियम में रखे अवशेष की तरह सालों से चले आ रहे थे लेकिन आज के भारत में उनका कोई महत्व नहीं रह गया था। केंद्र सरकार के अलावा बीजेपी शासित राज्य सरकारों ने भी कई कानूनों में बदलाव किए हैं और नए कानून बनाए हैं। इन दस सालों में ब्रितानी शासन के दौर के कई कानूनों में भी परिवर्तन किया गया है। इनमें नए आपराधिक कानून व जन विश्वास बिल भी शामिल हैं जिसके तहत 180 अपराधों में जेल की सजा से मुक्ति मिलेगी।
वस्तुत: आज का नया भारत ‘विकसित और आत्म निर्भर भारत’ बनने की ओर अग्रसर है। इसी अवधि में भारत अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर 11वीं से 5वीं पायदान पर पहुंचा और कई क्षेत्रों में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। देश में स्थितियों को विकास के अनुकूल बनाने के लिए भी कानूनों में तेजी से बदलाव किया जा रहा है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी कहते हैं कि संसद द्वारा नए कानूनों में किए गए बदलाव इस बात का साफ संकेत है कि भारत बदल रहा है और आगे बढ़ रहा है। मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए नए कानूनी उपकरणों की जरूरत है। चीफ जस्टिस ने नए आपराधिक न्याय कानूनों के अधिनियमन को समाज के लिए ऐतिहासिक क्षण बताते कहा है कि भारत अपनी आपराधिक न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव के लिए तैयार है। चीफ जस्टिस ने यह विचार ‘आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रशासन में भारत का प्रगतिशील पथ’ विषय पर आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस मौके पर कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता भी मौजूद थे।
नए कानून की सफलता के लिए हम इन्हें नागरिक के तौर पर अपनाएं
चीफ जस्टिस ने कहा कि ये नए कानून तभी सफल होंगे जब हम नागरिक के तौर पर उन्हें अपनाएं।
नए कानून ने क्रिमिनल जस्टिस पर भारत के कानूनी ढांचे को एक नए युग में बदल दिया है। उन्होंने कहा कि पीड़ितों के हितों को प्रोटेक्ट करने के लिए अपराध की जांच व प्रॉसिक्यूशन (अभियोजन) कुशल तरीके से हो, इसके लिए जरूरी बदलाव व सुधार किए गए हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- कानूनों का कर रहे आधुनिकीकरण
पीएम ने कहा था, कानून नए युग में
गौरतलब है कि गत 28 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के 75 वें वर्षगांठ के मौके पर आयोजित समारोह में पीएम मोदी ने कहा था कि सरकार मौजूदा संदर्भ और बेहतरीन प्रथाओं के अनुसार कानून का आधुनिकीकरण कर रही है। सत्ता में आने के साथ ही मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि बरसों पुराने इन कानूनों के खत्म होने का टाइम आ गया है। पीएम ने कहा था कि तीन नए कानून बनाने से भारत के कानून, पुलिस और जांच प्रणाली एक नए युग में जा पहुंची है।
एक जुलाई से लागू हो रहे तीनों क्रिमिनल कानून
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीनों नए कानून-भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य एक्ट को एक जुलाई से लागू किया जाएगा लेकिन नोटिफिकेशन में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने भारतीय न्याय संहिता की धारा-106 (2) को फिलहाल होल्ड कर दिया है यानी धारा-106 (2) फिलहाल लागू नहीं होगी। यह प्रावधान हिट एंड रन से जुड़े अपराध से जुड़ा हुआ है।
मोदी सरकार ने देश के अनेक ऐसे अजीब और पुरातन कानूनों को बदला है जो म्यूजियम में रखे अवशेष की तरह सालों से चले आ रहे थे लेकिन आज के भारत में उनका कोई महत्व नहीं था। इनमें कई कानून प्रशासन को सुचारू ढंग से चलाने में बाधा बनते रहे हैं। 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार इन पुराने कानूनों को खत्म कर मोदी सरकार ने एक रिकॉर्ड कायम किया है। तीन साल में 1200 एक्ट का खात्मा करना एक बड़ी बात है। पिछली सरकारों ने 65 सालों में सिर्फ 1,301 पुराने और व्यर्थ कानूनों को खत्म किया था जबकि 1,824 अप्रचलित केंद्रीय अधिनियमों को पुनर्विचार के लिए चिन्हित किया गया। कुछ बदले या संशोधित किए गए कानून इस प्रकार हैं:-
जन विश्वास बिल : 180 अपराधों में जेल की सजा से मिलेगी मुक्ति
जन विश्वास बिल को लोकसभा और राज्यसभा से मंजूरी मिल चुकी है। इस विधेयक ने कई अपराधों में जेल की सजा को खत्म कर दिया है। यह बिल 19 मंत्रालयों से संबद्ध 42 कानूनों के 183 प्रावधानों को जेल की सजा से मुक्त करेगा और ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ को प्रमोट करेगा।
गोहत्या और गोवंश रक्षा से जुड़े कानून
बीजेपी शासित राज्यों में मवेशियों को काटने और उनके परिवहन पर पाबंदी लगाने के लिए या तो नए कानून बनाए गए हैं या फिर मौजूदा गोरक्षा कानून को अधिक सख्त बना दिया गया है।
इंटरनेट और सोशल मीडिया पर नियम
2021 में केंद्र सरकार ने ‘इंटरमीडियरी गाइडलाइन और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड नियम, 2021 लागू किया। नए कानून के जरिए आप सोशल मीडिया पर किस तरह की जानकारी पोस्ट कर सकते हैं, या प्रसारित कर सकते हैं, उस पर अंकुश लगाया जा सकता है। हालांकि इसके कुछ प्रावधानों पर कुछ अदालतों ने रोक भी लगाई है।
निजता की सुरक्षा का सवाल
केंद्र सरकार ने करीब एक दशक की चर्चा के बाद डेटा सुरक्षा संबंधी कानून को 2023 में पारित किया, हालांकि इसके बाद भी इसकी काफी आलोचना हुई। उदाहरण के लिए कोई भी व्यक्तिगत डेटा वैसे तो इस कानून के तहत आता है यानी उसे गोपनीय रखा जाना जरूरी है, लेकिन भारत सरकार की एजेंसियों पर यह कानून तब लागू नहीं होगा जहां मामला देश की अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने का हो।
विवाह और तलाक
2017 से बीजेपी शासित कम-से-कम सात राज्यों में या तो धर्मांतरण विरोधी कानून को सख्त किया गया है और अंतरधार्मिक विवाह संबंधी नए कानून पारित किए गए हैं।
सरकार से सूचना हासिल करना
पिछले कुछ सालों में सूचना का अधिकार कानून में कई बदलाव किए गए हैं। यह सरकार के सभी स्तरों पर पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया एक महत्वपूर्ण क़ानून है।
आरक्षण की व्यवस्था का सवाल
पिछले 10 सालों में बीजेपी सरकार ने जो अहम बदलाव किए हैं, उनमें सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था शुरू करना भी शामिल है।
मनी लॉन्डि्रंग एक्ट को सख्त किया गया
2019 में केंद्र सरकार ने 2002 के मनी लॉन्डि्रंग एक्ट में व्यापक बदलाव किया, जिससे कानून का दायरा काफ़ी बढ़ गया था। यह कानून शुरू से ही सख्त था लेकिन कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक नए प्रावधानों ने इसे और कठोर बना दिया है। संशोधन के बाद मनी लॉन्डि्रंग के मामलों में केंद्रीय एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) एफ़आईआर के बिना भी जांच शुरू कर सकती है।
होगी विशेषज्ञों की जरूरत
नई अपराध न्याय प्रणाली को सीजेआई ने नए युग की जरूरतों के अनुरूप बताया है। अब ट्रायल, गवाही, साक्ष्य की रिकॉर्डिंग, समन, वारंट आदि प्रक्रियाओं को पूर्णतः इलेक्ट्रॉनिक करने और सात साल से अधिक की सजा वाले सभी अपराधों की तफ्तीश, छापों और जब्ती के दौरान वीडियोग्राफी और फॉरेंसिक एक्सपर्ट की उपस्थिति की अनिवार्यता के प्रावधान को सीजेआई ने क्रांतिकारी बताया है लेकिन यह भी कहा कि इसके लिए संसाधन, विशेषज्ञों और उपकरणों की जरूरत होगी।
देश में लगभग 18 हजार थाने हैं। सभी में फॉरेंसिक विशेषज्ञों, डीएनए टेस्ट करने वालों एवं अन्य जांचों को समय से पूरा करने के लिए तमाम माइक्रोबायोलॉजिस्ट की जरूरत होगी ताकि समय से रिपोर्ट मिल सकें और तीन साल में फैसला हो जाए। इसके लिए हमें एेसे संस्थान और विश्वविद्यालय तैयार करने होंगे जो शीघ्र ही हमें इस प्रकार के विशेषज्ञ उपलब्ध्ा करा सकें।
इसलिए बदलने पड़े अजीबो-गरीब कानून
भारत के हजारों कानूनों में कुछ ऐसे भी हैं, जो अजीब तरह की मांग करते हैं। जैसे सदियों पुराने एक कानून के मुताबिक गंगा में चलने वाले बोट का टोल टैक्स दो आना से ज्यादा नहीं हो सकता। बता दें कि आना अब चलन से बाहर हो गया है।
एक दूसरे कानून के मुताबिक कुछ राज्यों में पुलिसकर्मियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि हवा में गिराए गए पैम्फलेट उनके इलाके में न गिरें। इस कानून का मकसद दूसरे विश्व युद्ध के दौरान प्रोपगेंडा कैंपेन को रोकना था।
एक 200 साल पुराना कानून ब्रिटेन के सम्राट को भारत की सभी अदालतों के फैसलों की समीक्षा का अधिकार देता है, लेकिन यह एक्ट अब इतिहास बन गया है।