आस्था सक्सेना
नेत्र हमारे शरीर का सबसे कोमल, संवेदनशील व महत्वपूर्ण अंग हैं। ये शिक्षा तथा ज्ञान की दुनिया का प्रवेश द्वार हैं। नेत्र ज्योति के बिना हमारा जीवन वर्ण -शून्य , मृतसागर सदृश तथा तारागण विहीन काली रात के समान है।
दृष्टिहीनता एक ऐसी स्थिति है जब कोई व्यक्ति अपनी आंखों से कुछ भी देख पाने में असमर्थ होता है। सामान्य भाषा में इसे अंधकत्व या अंधापन कहते हैं।
दैनिक जीवन के कार्यकलाप में भी अवरोध
वहीं बाल दृष्टिहीनता हमारे समाज पर एक बहुत बड़ा अभिशाप है। यह न केवल एक बच्चे को यह दुनिया देखने से वंचित कर देता है बल्कि उसके दैनिक जीवन के कार्यकलाप में भी अवरोध उत्पन्न करता है और जीवन के विभिन्न अवसरों को भी संकुचित कर देता है। अतः दृष्टिहीनता किसी बच्चे के समग्र विकास में बहुत बड़ी रुकावट है। इसके अतिरिक्त यह उसके परिवार के लिए मानसिक या भावनात्मक और आर्थिक रूप से बहुत बड़ा बोझ बना देती है। दुनिया भर के लाखों बच्चे इससे प्रभावित हैं।
पृष्ठभूमि
बचपन में या किशोरावस्था (16 वर्ष से कम आयु) के आरंभिक काल में होने वाली कुछ बीमारियों और स्थितियों का समय पर उचित उपचार न किए जाने पर बच्चों में नेत्रहीनता हो सकती है। बाल दृष्टिहीनता की व्यापकता पर बहुत कम आंकड़े उपलब्ध हैं। बाल्यावस्था दृष्टिहीनता पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक बैठक में अनुमान लगाया गया कि 2021 तक दुनिया भर के कुल नेत्रहीन बच्चों में से 90 प्रतिशत विकासशील राष्ट्रों में रहते हैं। हर साल लगभग 5,00,000 बच्चे अपनी दृष्टि खो देते हैं। कुछ तो बीमारियों के कारण और बाकी बीमारी की उपेक्षा के कारण।
बाल्यावस्था दृष्टिहीनता का प्रभाव तथा उसकी व्यापकता
बच्चों में अंधेपन के कई कारण होते हैं। आनुवंशिक कारण, समय पूर्व प्रसव,पोषण की कमी, आघात और पर्यावरणीय कारक उनमें से कुछ प्रमुख हैं। बच्चों में दृष्टिहीनता का गहरा संबंध उनकी स्वास्थ्य देखभाल जैसे पोषण, टीकाकरण आदि की उपलब्धता पर है। विकसित देशों में जहांं शिशु मृत्यु दर काफ़ी कम है, वहीं बाल्यावस्था दृष्टिहीनता की दर भी विकासशील देशों की तुलना में कहीं कम है।
विकसित देशों की तस्वीर
विकसित देशों में बाल्यावस्था दृष्टिहीनता का 56 प्रतिशत कारण तो अनुवांशिक और जन्म के समय होने वाली जटिलताएं हैं। केवल 17 प्रतिशत ही अन्य कारक हैं, वहीं भारत जैसे विकासशील देश में उपचार योग्य अपवर्तक त्रुटि यानी रिफ्रैक्टिव एरर के कारण 33 प्रतिशत, उपयुक्त पोषण न मिल पाने के कारण 17 प्रतिशत तथा बाकी सर्जरी आदि के उपरांत समुचित देखभाल न हो पाने के कारण बाल्यावस्था दृष्टिहीनता आती है। आनुवांशिक कारण व जन्म के समय होने वाले कारक 17 प्रतिशत ही हैं।
– गैजेट्स के बढ़ते चलन से आंखों पर डिजिटल स्ट्रेस
– 90 प्रतिशत ऐसे बच्चे विकासशील राष्ट्रों में
बाल नेत्रहीनता की रोकथाम
बच्चों में नेत्रहीनता को रोकने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसमें संक्रमण से बचाव के लिए टीकाकरण कार्यक्रम, विटामिन ए और डी, जिंक जैसे पोषक तत्वों की खुराक प्रदान करना, नेत्र सुरक्षा उपायों को बढ़ावा देना और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच शामिल है।
रिफ्रैक्टिव एरर्स का इलाज हो सकता है, फिर भी बच्चों में इसकी वजह से हुए अंधेपन के मामले कुल मामलों के एक तिहाई हैं।
गर्भावस्था के दौरान दवाइयां व शराब व कीटनाशक से खतरा
इसके बाद रोकथाम की कमी के कारण जैसे कि विटामिन-ए की कमी और एंबीलोपिया पोस्ट-मोतियाबिंद सर्जरी के बाद उचित देखभाल न होने के कारण दृष्टिहीनता होती है। गर्भावस्था के दौरान दवाइयां व शराब का सेवन तथा कीटनाशक आदि के संपर्क में आने से भी बच्चों में यह समस्या हो सकती है। इसके अतिरिक्त अनुवांशिक या जन्मजात कारण भी हैं।
जन्मजात मोतियाबिंद होने पर यदि प्रारंभिक अवस्था में ही इलाज किया जाए, तो इससे होने वाले अंधेपन को रोका जा सकता है। मोतियाबिंद को सर्जरी से हटाने के बाद चश्मा और पैचिंग का उपयोग कर सकारात्मक परिणाम पाया जा सकता है।
बच्चों पर पढ़ाई का दबाव
किशोर वय के बच्चों पर पढ़ाई के दबाव के साथ ही गैजेट्स के बढ़ते चलन के कारण आंखों पर डिजिटल स्ट्रेस काफी बढ़ रहा है। ऐसे में माता-पिता की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। डब्ल्यूएचओ द्वारा विभिन्न आयु समूहों के बच्चों के लिए स्क्रीन समय पर दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ सक्रिय
आज विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ और कई अन्य गैर-लाभकारी संगठन बच्चों में अंधेपन को रोकने के लिए समाधान और रणनीति बनाने के लिए सक्रिय हैं और इसके उपचार खोजने के लिए शोधरत हैं।
बाल नेत्र चिकित्सा केंद्र स्थापित किए गए
बाल्यावस्था दृष्टिहीनता को प्राथमिकता देते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन में विजन 2020 के अंतर्गत प्रशिक्षित चिकित्सकों से सुसज्जित बाल नेत्र चिकित्सा केंद्र स्थापित किए गए हैं। स्कूलों में भी नेत्र परीक्षण शिविर लगाए जाते हैं और अपवर्तन त्रुटि वाले बच्चों की पहचान कर उन्हें कम कीमत पर चश्मा उपलब्ध कराया जाता है।
भारत में गौतमी आई इंस्टीट्यूट की स्थापना
1982 में स्थापित आई फाउंडेशन ऑफ़ अमेरिका ईएफए का उद्देश्य है चिकित्सा योग्य बाल्यावस्था दृष्टिहीनता को जड़ से समाप्त करना। इसी के तत्वावधान में भारत में गौतमी आई इंस्टीट्यूट की स्थापना की गई है।
यह डॉक्टर वी के राजू की अध्यक्षता में आंध्र प्रदेश में स्थापित एक गैर लाभकारी संस्था है। यहां उपचार योग्य अंधत्व को समाप्त कर एक ऐसी उच्च गुणवत्ता वाली नेत्र चिकित्सा देखभाल प्रदान करने का लक्ष्य है, जो सभी के लिए सस्ती और सुलभ हो। यहां पर सभी समुदायों को उचित नेत्र देखभाल की आवश्यकता और नेत्र रोगों के बारे में जागरूक भी किया जाता है।
25 डालर के दान से एक बच्चे को दृष्टि का उपहार
इस इंस्टीट्यूट को दी गई आपकी सभी दानराशि को, आईटी अधिनियम की धारा 12 (ए) और धारा 80 (जी) के तहत छूट भी दी गई है। 25 डालर मात्र का दान देकर आप एक बच्चे को दृष्टि का उपहार दे सकते हैं।
बाल्यावस्था दृष्टिहीनता से मुक्त दुनिया का स्वप्न अब केवल एक स्वप्न नहीं बल्कि एक साकार हो सकने योग्य, प्राप्य लक्ष्य है। करुणा युक्त सामूहिक कार्यों, नवाचारों, और नियमित प्रयासों से हम दुनिया भर के लाखों नेत्रहीन बच्चों के अंधेरे जीवन में रोशनी की एक किरण देकर सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं। आइए हम मिलकर एक उज्जवल भविष्य के निर्माण में अपना योगदान दें, जहां हर बच्चा दृष्टि के उपहार के माध्यम से दुनिया की सुंदरता का अनुभव कर सके और अपनी पूरी क्षमता को पहचान सके व उपयोग कर सके।