ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। अप्रैल का महीना खत्म होने वाला है। इसके साथ ही चुभती जलती गर्मी का मौसम शुरू हो जाएगा। अप्रैल के आखिर तक पारा 40 डिग्री के पार जा सकता है। हीटवेव का कहर पूरे भारत को अपनी चपेट में ले लेगा। भारत में हीटवेव का मुख्य कारण क्या है? चलिए हीटवेव और एयर पाल्यूशन के बीच क्या नाता है? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब क्लाइमेट एक्सपर्ट से जानते हैं।
रॉबर्ट वाउटार्ड आईपीसीसी के वर्किंग ग्रुप के सह-अध्यक्ष और आईपीएसएल, पेरिस में वरिष्ठ जलवायु वैज्ञानिक हैं। उन्होंने हीटवेव और उसके कारणों पर चर्चा की।
क्या यह जलवायु परिवर्तन है ?
भारत के कुछ हिस्सों में अप्रैल में हीटवेव अलर्ट मिल रहा है, क्या यह जलवायु परिवर्तन है ? इस प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन इसका एक कारण है। पिछले कुछ सालों में हमने वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन नेटवर्क के साथ मिलकर भारत में गर्मी लहरों पर तीन अध्ययन किए हैं (2016, 2022 और 2023)। साल 2022 में मार्च से अप्रैल के अंत तक भारत में बहुत बड़ी गर्मी की लहर देखी गई, जिसमें तापमान सामान्य से काफी ज्यादा था। हमने पाया कि ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ने के कारण ऐसी परिस्थितियां अब और ज्यादा बार-बार हो रही हैं।
उमस भरी गर्मी
पिछले साल अप्रैल में, खासकर पूर्वी भारत के तटीय इलाकों में बहुत उमस भरी गर्मी पड़ी थी। इससे शरीर की गर्मी सहन करने की क्षमता (हीट स्ट्रेस इंडेक्स) बहुत ज्यादा बढ़ गई थी, जो खतरनाक सीमा को पार कर चुकी थी।
– हमेशा के लिए खत्म हो सकती कोरल रीफ्स
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में रॉबर्ट वाउटार्ड बोले-
देखिए, जलवायु परिवर्तन को लेकर बहस करने के बजाय, हम वैज्ञानिक प्रमाण पेश करते हैं। यूरोप में भी तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा है, वहां तो शायद ही कोई इसे नकारता है। भारत में भी पिछले कुछ समय में औसत तापमान लगभग दो डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि वैज्ञानिक राजनीति से नहीं, बल्कि सच्चाई से प्रेरित होते हैं।
ट्रेंड और आंकड़ों में अंतर
इस तुलना से हम ट्रेंड और आंकड़ों में अंतर देख पाते हैं। सरल भाषा में कहें तो, हम हीटवेव के दो समूहों की तुलना करते हैं – एक जलवायु परिवर्तन के साथ और दूसरा बिना इसके। यह वही तरीका है जिसका इस्तेमाल महामारी विज्ञान आदि में भी किया जाता है। इन अध्ययनों से यही निष्कर्ष निकलता है कि भारत पहले से ही गर्म देश रहा है, खासकर मानसून से पहले लेकिन यह भी सच है कि गर्मी अब और बढ़ रही है।
हीटवेव कितनी खतरनाक है?
सबसे बड़ा खतरा कब
उन्होंने बताया कि हीटवेव का सबसे बड़ा खतरा सेहत को होता है। खासकर जब गर्मी के साथ बहुत ज्यादा उमस होती है, तब शरीर पसीना निकालकर खुद को ठंडा नहीं कर पाता क्योंकि हवा पहले से ही नमी से भरी होती है। ऐसे में ठंडी जगह पर रहना बहुत जरूरी हो जाता है लेकिन, हर किसी के पास एयर कंडीशनर या कूलर जैसी सुविधा नहीं होती। इसलिए, गरीब, बुजुर्ग और बीमार लोगों के लिए ऐसी गर्मी जानलेवा भी हो सकती है। इसे ही ‘आर्द्र बल्ब तापमान’ कहते हैं। ऐसी परिस्थिति में बाहर काम करना खतरनाक है। साथ ही, शहरों में गर्मी और ज्यादा बढ़ जाती है, जो इस खतरे को और भी गंभीर बना देता है।
क्या जलवायु परिवर्तन और वायु गुणवत्ता के बीच कोई संबंध है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, बिल्कुल संबंध है। जलवायु परिवर्तन और हवा की गुणवत्ता, दोनों ही लगभग एक जैसी गतिविधियों से पैदा होते हैं। गाड़ियां, निर्माण कार्य, फैक्टि्रयां आदि ऐसी ही गतिविधियां हैं। इनसे निकलने वाला धुआं हवा को दूषित करता है और साथ ही ग्रीनहाउस गैस, जैसे कार्बन डाईऑक्साइड भी पैदा करता है। ये हवा में मिलने वाले दूषित कण, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते हैं।
कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन घटाना जरूरी
इसलिए, जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन घटाना जरूरी है। इससे हवा प्रदूषण को भी कम करने में मदद मिलेगी, यह एक बहुत बड़ा फायदा है।
एक अन्य प्रश्न कि क्या दुनिया अब निश्चित रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पार कर चुकी है? उन्होंने जवाब दिया कि दुनिया अभी तक निर्णायक रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस के आंकड़े को पार नहीं कर पाई है। फिलहाल, ग्लोबल वार्मिंग का स्तर 1.2 डिग्री सेल्सियस से 1.3 डिग्री सेल्सियस के बीच होने का अनुमान है। ऐसा माना जा रहा है कि इसमें लगभग 10 साल लग सकते हैं। हो सकता है कि थोड़े समय के लिए तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाए और फिर वापस नीचे आ जाए, लेकिन इससे कई देशों पर गंभीर असर पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, कुछ चीजें हमेशा के लिए खत्म हो सकती हैं, जैसे कोरल रीफ्स। साथ ही, बहुत ज्यादा गर्मी से कई तरह की प्राकृतिक आपदाएं भी आ सकती हैं।
हीटवेव से बचने के लिए क्या तैयारी कर सकते हैं?
इस प्रश्न के उत्तर में रॉबर्ट वाउटार्ड बोले, भारत में गर्मी से बचाव की योजनाएं पहले से ही मौजूद हैं, लेकिन कुछ और कदम उठाए जा सकते हैं। जैसे, अस्पतालों को भी गर्मी से होने वाली बीमारियों के लिए तैयार रहना चाहिए। साथ ही, लोगों को भी एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए, ताकि जरूरतमंदों को पानी और ठंडी जगह तक पहुंचने में आसानी हो। लंबे समय में, गर्मी से बचने के लिए ऐसे लोगों के लिए घरों का इंतजाम करना भी बहुत महत्वपूर्ण है।
सरकारी नीतियों में भी गर्मी से बचाव योजनाएं, मौसम का पूर्वानुमान और बचाव के उपाय शामिल होने चाहिए। भारत में इस दिशा में पहले से ही अच्छी व्यवस्थाएं हैं, जिन्हें और मजबूत बनाया जा सकता है।
हीटवेव कब और कहां
हीट वेव आमतौर पर मार्च से जून के दौरान उत्तर पश्चिमी भारत, मध्य, पूर्व और उत्तर प्रायद्वीपीय भारत के मैदानी इलाकों में महसूस होती है। इसमें पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ हिस्से, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना शामिल हैं।