दीपक द्विवेदी
लोकसभा चुनाव 2024 के पहले एवं सबसे बड़े चरण की 102 सीटों पर मतदान संपन्न हो चुका है। इस चरण में जहां दक्षिण की सीटों पर जमकर वोटिंग हुई वहीं उत्तर भारत के राज्यों में कम वोटिंग ने अनेक सवाल भी खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार उत्तर भारतीय राज्यों में मध्य प्रदेश में 2019 में 75 फीसदी वोटिंग हुई थी जो इस बार घटकर 63 फीसदी रह गई। वहीं बिहार में 47 फीसदी वोटिंग हुई जो पिछली बार 53 फीसदी के मुकाबले 6 फीसदी कम है। राजस्थान में इस बार 57.87 फीसदी वोटिंग हुई जो पिछली बार 63.71 फीसदी के मुकाबले करीब 6 फीसदी कम है। उत्तर प्रदेश में इस बार जिन सीटों पर मतदान हुए हैं उन सीटों पर 2019 के चुनाव में करीब 67 प्रतिशत मतदान हुआ था। वहीं इस बार 57 प्रतिशत वोट ही पड़े हैं।
हालांकि कम मतदान होने के अनेक कारण हो सकते हैं। उनमें इस बार तो सबसे बड़ा मौसम का मिजाज जान पड़ रहा है। चुनाव के लगभग सारे चरण ही तपती गर्मी के बीच पड़ रहे हैं और ऐसे में मतदाता धूप में कम निकलना पसंद करता है अथवा छुट्टी पर चला जाता है। ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि ज्यादातर वोटिंग की तारीखें या तो सप्ताह के अंतिम दिन अथवा सप्ताह के अगले दो दिनों में पड़ रही हैं। भारत में मतदान की अनिवार्यता न होने की वजह से भी अनेक मतदाता इसे अवकाश के दिनों की तरह मान कर किसी ठंडी जगह पर छुट्टी बिताने चले जाते हैं।
एक अन्य कारण यह भी माना जा सकता है कि जनता संभवत: सत्ता परिवर्तन या कोई बदलाव नहीं चाहती, इसलिए भी वोटिंग के प्रति उदासीन रहती है। ऐसे में कोई भी कयास लगाना फिलहाल जल्दबाजी ही कही जाएगी पर कहीं भी कम वोटिंग होना किसी भी देश के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। भारत में यह अवसर मतदाताओं को केंद्र अथवा राज्यों में हर पांच वर्ष बाद ही मिलता है, अगर कहीं सरकार नहीं गिरे तो। आंकड़ों के अनुसार देश में बीते 12 आम चुनावों में से 5 में मतदान प्रतिशत में गिरावट देखने को मिली थी। चुनाव आयोग के अनुसार लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भारत में कुल मतदाताओं की संख्या 96.8 करोड़ है।
2019 में देश में मतदाताओं की यह संख्या 89 करोड़ 78 लाख के करीब थी। कुल मतदाताओं में से महिला मतदाताओं की संख्या 47.1 करोड़ है, पुरुष मतदाता 49.7 करोड़ और लगभग 48,000 ट्रांसजेंडर मतदाता है। वहीं, फर्स्ट टाइम वोटर्स की संख्या 1.82 करोड़ है। साल 2024 में दुनिया के 60 देशों में चुनाव होने वाले हैं जिनमें दुनिया की लगभग 60 प्रतिशत आबादी वोट डालने वाली है।
इन चुनावों में राष्ट्रपति से लेकर विधायी और स्थानीय चुनाव तक शामिल हैं। भारत में आज भी ऐसे बहुत से लोग हैं जिनमें अक्सर मतदान के प्रति अरुचि दिखाई देती है अथवा विभिन्न कारणों से वे वोट डालने नहीं जाते या जा नहीं पाते। चुनाव आयोग ने मतदान प्रतिशत में वृद्धि के लिए अनेक इंतजाम किए हैं जिनमें इस बार तो पहली बार 85 साल से अधिक उम्र वाले बुजुर्ग और 40 प्रतिशत से अधिक दिव्यांग मतदाताओं के वोट लेने के लिए चुनावी ड्यूटी पर तैनात कर्मी उनके घर जाएंगे।
इसके साथ ही, इस साल पोस्टल बैलेट के जरिए 19.1 लाख ऐसे सेवा कार्मिक और अन्य मतदाता वोट करेंगे जो चुनावी ड्यूटी पर तैनात रहेंगे। वैसे 22 से अधिक देशों में मतदान की अनिवार्यता है और वोट न डालने पर किसी न किसी तरह का दंड भी निर्धारित है पर भारत में ऐसा नहीं है। इसके लिए अनेक तर्क दिए गए हैं लेकिन यदि इसे अपनाया जाता है तो यह लाभार्थी परिणाम दे सकता है। भारत में अनिवार्य मतदान के संबंध में यह दलील दी जाती है कि ऐसा करना लोकतंत्र के सिद्धांत के खिलाफ होगा क्योंकि मतदान एक अधिकार है, कर्तव्य नहीं। अगर कुछ लोग वोट डालना नहीं चाहते हैं तो उन्हें इसके लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है। अगर यहीं के नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग करने के प्रति उदासीन रहेंगे तो लोकतंत्र की पूर्ण जीवंतता कैसे बरकरार रहेगी? वोट सभी डालें, इसके लिए सभी कदम उठाये जाने चाहिए ताकि सभी भारतीय मताधिकार का प्रयोग अवश्य करें। चाहे वह अनिवार्य मतदान के माध्यम से हो अथवा वोटिंग प्रक्रिया के डिजिटलीकरण से।