ब्लिट्ज ब्यूरो
तिरुवनंतपुरम। इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा है कि देश के अंतरिक्ष क्षेत्र का विनियमन जरूरी हो चुका है। इसरो के लिए 17,000 लोग काम करते हैं, इसका सालाना बजट 13,000 करोड़ है। कई वर्षों से ये दोनों आंकड़े ऐसे ही बने हुए हैं। दूसरी तरफ, आज 130 स्टार्टअप देश के अंतरिक्ष क्षेत्र में विकसित हो चुके हैं। इनमें से कुछ में 500 तक कर्मचारी हैं और वे सालाना 1,000 करोड़ रुपये तक का कारोबार कर रहे हैं।
अनावश्यक नियंत्रण हटाने होंगे
इसरो अध्यक्ष ने कहा कि अनावश्यक नियंत्रण हटाने से भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र की प्रगति भी तेजी से हो सकेगी। सोमनाथ ने कहा कि हाल में भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में काफी प्रगति की। इसकी एक वजह क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोला जाना भी है। देश के पहले साउंडिंग रॉकेट प्रक्षेपण के 60 साल पूर्ण होने पर आयोजित कार्यक्रम में सोमनाथ ने बताया कि आज उपग्रह तैयार करने की हमारी क्षमता काफी बढ़ गई है। निजी क्षेत्र की अंतरिक्ष विज्ञान के विकास में बढ़ती भागीदारी भी इसके पीछे है।
पांच भारतीय कंपनियों के पास उपग्रह निर्माण की क्षमता
इस वक्त पांच भारतीय कंपनियों के पास उपग्रह निर्माण की क्षमता है। तीन कंपनियों ने तो इन्हें बनाकर सफलता से प्रक्षेपित भी किया है। सोमनाथ ने कहा, कई निजी कंपनियां अपने वैज्ञानिकों व स्टाफ को इसरो से बेहतर वेतन दे रही हैं। उनके पास इसरो से रिटायर वैज्ञानिकों की बड़ी मांग है। कई कंपनियां इंतजार में रहती हैं कि इधर इसरो से लोग रिटायर हों और उधर वे उन्हें अपने यहां रखें। अंतरिक्ष विज्ञान से कमाई पर सोमनाथ ने साफ शब्दों में कहा, ‘क्षेत्र में तकनीकी विकास और प्रगति अच्छी बात है, लेकिन कारोबार भी जरूरी है।
इसरो की भूमिका नहीं घटेगी
सोमनाथ ने साफ किया कि निजी क्षेत्र के विस्तार से इसरो की भूमिका नहीं घटेगी। इसरो वह सब करता रहेगा, जो अभी कर रहा है।
रॉकेटों की क्षमता भी दोगुनी बढ़ाई: बाहुबली कहे जाने वाले जीएसएलवी रॉकेट के लिए सोमनाथ ने बताया कि अंतरिक्ष में भारी उपकरण ले जाने की इसकी क्षमता लगातार बढ़ाई जा रही है। अपग्रेड होने के साथ अब यह 7.5 टन वजनी उपकरण अंतरिक्ष में ले जाने की क्षमता रखता है। रॉकेट पीएसएलवी की क्षमता भी 850 किलो से बढ़ाकर 2 टन की गई है।