ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। देश का आईटी हब पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा है। पैसा खर्च कर बड़ी इमारतें तो बना ली हैं, आलीशान बाथरूमों का निर्माण भी हुआ है, लेकिन उनके शावरों से पानी आना ही बंद हो चुका है। हालात ऐसे चल रहे हैं कि लोग ऑफिस तक जाने की स्थिति में नहीं है। टैंकरों के जरिए पानी पहुंचाया जा रहा है। ये सब कुछ कर्नाटक के बेंगलुरु में देखने को मिल रहा है।
कम होती बारिश और भूजल स्तर का लगातार गिरना बेंगलुरु की हालत के लिए जिम्मेदार है। बेंगलुरु को 145 लीटर करोड़ पानी कावेरी नदी से मिलता है, 60 करोड़ लीटर पानी बोरवेल से आता है। अब ये दोनों ही स्रोत सूख रहे हैं और आईटी हब में हाहाकार मच चुका है। मौसम विभाग का जो अनुमान है, वो भी बेंगलुरु में आए इस महा संकट की तस्दीक करता है। कहा जा रहा है कि कर्नाटक का ये शहर ज्यादा गर्म होता जा रहा है, तापमान असामान्य रूप से बढ़ रहा है।
बेंगलुरु एक झांकी मात्र
बेंगलुरु में इस समय जो हो रहा है, वो सिर्फ एक झांकी मात्र है, उससे ज्यादा भयावह हालत तो देश के दूसरे राज्यों में हो सकती है। कई रिपोर्ट्स, कई स्टडी की जा चुकी हैं, सभी का संकेत साफ है- भारत जल संकट की तरफ तेज गति से आगे बढ़ रहा है। पानी की कमी से लेकर कई जगहों पर पानी की एक बूंद के लिए तरसने जैसे हालात बन सकते हैं। ये कोई एक दिन में नहीं होने वाला है, लेकिन जैसी प्रैक्टिस देखने को मिल रही है, समय के साथ भारत एक खतरनाक दलदल की ओर अग्रसर है।
आबादी ज्यादा, पानी उतना ही कम
भारत में पूरी दुनिया की 17 फीसदी आबादी रहती है, लेकिन देश में पूरी दुनिया का सिर्फ 4 प्रतिशत शुद्ध जल का स्रोत है। ये आंकड़ा ही बताने के लिए काफी है कि हालात कितने विस्फोटक हैं और डिमांड की तुलना में सप्लाई कम चल रही है।
अगर नीति आयोग की सीडब्ल्यूएमआई रिपोर्ट जोड़ दी जाए तो जल संकट और ज्यादा बड़ा दिखने लगेगा। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर 2 लाख लोगों की मौत होती है, सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्हें साफ पानी नसीब नहीं होता। 2030 तक देश की 40 फीसद आबादी के पास पीने का पानी ही नहीं होगा। असल दिक्क तें आने वाले सालों में शुरू होंगी जब मौसम और बदलेगा, ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ेगी और बारिश और ज्यादा असामान्य होती जाएगी।
ग्राउंड वॉटर की चुनौती, जरूरत ही बना सबसे बड़ा संकट
ये नहीं भूलना चाहिए देश ग्राउंड वॉटर भी जरूरत से ज्यादा निर्भर चल रहा है। यहां भी पूरी दुनिया का 25 फीसदी ग्राउंड वॉटर तो भारत ही इस्तेमाल कर रहा है। 70 फीसदी ग्राउंड वॉटर प्रदूषित बताया जाता है।
सरकार अपनी तरफ से क्या कर रही
कई परियोजनाएं केंद्र स्तर पर शुरू की गई हैं। उदाहरण के लिए जल शक्ति अभियान, जल जीवन मिशन, अटल भूजल योजना, अमृत सरोवर, नल से जल स्कीम, नमामी गंगे प्रोग्राम, नेशनल वॉटर पॉलिसी शुरू की जा चुकी हैं। कुछ असर भी जमीन पर हुआ है, लेकिन जब तक और स्पष्ट डेटा सामने नहीं आ जाता, इन योजनाओं की सफलता के बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।
दिल्ली-एनसीआर: नहीं बचाया जल तो अंधकारमय कल
क्या गर्मी, क्या सर्दी। अब वह समय नहीं रहा, जब हम सिर्फ गर्मियों में पानी संकट की बात करते थे। अब तो पूरे साल यह चर्चा चलती ही रहती है। पानी संचयन पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाली पीढ़ी दो-दो बूंद के लिए तरसेगी। शासन-प्रशासन भी चिंतित हैं। पानी बचाने के लिए वर्ष भर कई स्तर पर जागरूकता के कार्यक्रम चलते रहते हैं लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात जैसा ही है।
इसका बड़ा कारण कहीं न कहीं हम सबकी असंवेदनशीलता है। भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। दिल्ली-एनसीआर के कई इलाके पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। मई-जून में तो हालात और भी बिगड़ जाते हैं। जीवनदायिनी यमुना और हरनंदी प्रदूषित हैं, जलाशय घट रहे हैं, बड़े पैमाने पर भूजल दोहन हो रहा है। जनसंख्या बढ़ने के साथ ही क्षेत्र में बहुमंजिला इमारतों की बाढ़ आई, बड़ी-बड़ी सोसायटियां और टाउनशिप बने, इनमें रहने वाले बड़ी मात्रा में पानी का उपभोग तो कर रहे हैं, लेकिन भविष्य में जल संकट के गंभीर खतरे के प्रति वे लापरवाह नजर आते हैं। चाहे वर्षा जल संचयन की बात हो या सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाकर पानी शोधित करने का मामला हो, अधिकतर सोसायटियों में इसके प्रति लापरवाही नजर आती है।
राष्ट्रीय राजधानी में पेयजल किल्लत एक बड़ी समस्या रही है। आबादी बढ़ने के साथ यह समस्या भी गहराती जा रही है। दिल्ली में पानी की मांग बढ़कर 1380 एमजीडी (मिलियन गैलन प्रतिदिन) हो गई है, जबकि दिल्ली जल बोर्ड औसतन 953 एमजीडी पानी की आपूर्ति ही कर पाता है। 427 एमजीडी पानी की कमी बनी हुई है। इस वजह से सैकड़ों कालोनियों में डेढ़ से दो घंटे ही पानी की आपूर्ति हो पाती है। गुरुग्राम, फरीदाबाद और सोनीपत में भूजल स्तर काफी नीचे चला गया है यानी डार्क जोन क्षेत्र बढ़ रहा है।
साइबर सिटी गुरुग्राम तो पूरे हरियाणा में डार्क जोन के मामले में नंबर एक पर पहुंच गया है। यही हाल औद्योगिक नगरी फरीदाबाद का भी है, लेकिन यमुना के कारण यहां रेनीवेल से लोगों को फिलहाल गुजारे लायक पानी मिल रहा है। ग्रेटर फरीदाबाद में बहुमंजिला इमारतें खड़ी होने से यहां पेयजल की मांग भी तेजी से बढ़ी है पर उसके मुकाबले जल संचयन के प्रबंध नहीं हुए हैं।
पानी की राशनिंग
रेवाड़ी में तो पानी की राशनिंग कर दी गई है, यानी महीने में 15 दिन पूरे शहर को पानी दिया जाता है और शेष 15 दिन में एक दिन शहर के आधे हिस्से को और दूसरे दिन दूसरे आधे हिस्से को पानी की आपूर्ति की जाती है।
गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर में भूजल स्रोत पर दबाव
गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर में आबादी बढ़ने के साथ पानी की मांग तेजी से बढ़ी है और इससे भूजल स्रोत पर दबाव बढ़ रहा है। गाजियाबाद में प्रतिदिन करीब 850 एमएलडी पानी की जरूरत है, लेकिन फिलहाल करीब 400 एमएलडी पेयजल की ही आपूर्ति हो पा रही है। इसमें 95 एमएलडी गंगाजल शामिल है और बाकी भूजल है।
नोएडा में बढ़ी मांग
नोएडा में 406 एमएलडी और ग्रेटर नोएडा में 210 एमएलडी पानी की मांग है। नोएडा में 240 एमएलडी गंगाजल शहर में आ रहा है, जबकि मई में 90 एमएलडी गंगाजल और मिलने लगेगा। ग्रेटर नोएडा में 85 एमएलडी गंगाजल से मिलता है। शेष पानी की कमी भूजल से पूरी की जाती है, चिंता की बात ये है कि यहां भी कई इलाकों में भूजल स्तर नीचे गिर रहा है।
क्यों सूखी सिलिकॉन वैली
– कोरोना के कारण स्लो हुई कावेरी जलापूर्ति परियोजना
– मानसून की कमजोरी से गिरा शहर का भूजल स्तर
– शहर की अधिकतर झीलें सूख गई,ं तालाबों में भरा सीवेज का पानी
– नई बसावट, हाईराइज सोसायटी के चलते और गंभीर हुई समस्या
बढ़ता झगड़ा
पिछले एक दशक में पानी को लेकर झगड़ों की संख्या दोगुना बढ़ी है
22 % 1900-1959 के बीच
38 % 1960-1989 के बीच