ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके प्रमुख मोहन भागवत इन दिनों चर्चा में हैं। संघ की कार्यप्रणाली को लेकर अक्सर विवाद होते हैं, जबकि यह पूर्ण रूप से हिंदू परंपराओं को बनाए रखने की विचारधारा को पोषित करने वाला संस्थान हैं। हिंदू राष्ट्रवाद, स्वदेशी विचारधारा वाले इस संगठन को आज विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन के रूप में जाना जाता है।
स्थापना 1925 में
बहुत कम लोग हैं, जो संघ के बारे में अधिक जानकारी रखते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27 सितंबर, 1925 को विजयादशमी के दिन मोहिते के बाड़े नामक स्थान पर डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने की थी। संघ के पांच स्वयंसेवकों के साथ शुरू हुई विश्व की पहली शाखा आज 50 हजार से अधिक शाखाओं में बदल गई और ये पांच स्वयंंसेवक आज स्वयंसेवकों की फौज के रूप में हमारे सामने हैं।
लाखों स्वयंसेवक
संघ साल-दर-साल देश में जगह बनाता चला गया और लाखों स्वयंसेवकों की फौज खड़ी कर ली। संघ पर प्रतिबंध भी लगा। 1975 में जब आपातकाल की घोषणा हुई, तो तत्कालीन जनसंघ पर भी संघ के साथ प्रतिबंध लगा दिया गया था। आपातकाल हटने के बाद जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हुआ और केंद्र में मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व में मिली-जुली सरकार बनी। 1975 के बाद से धीरे-धीरे इस संगठन का राजनीतिक महत्व बढ़ता गया और इसकी परिणति भाजपा जैसे राजनीतिक दल के रूप में हुई, जिसे आमतौर पर संघ की राजनीतिक शाखा के रूप में देखा जाता है।
स्थापना के 75 वर्ष बाद अटल सरकार
संघ की स्थापना के 75 वर्ष बाद 2000 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन की सरकार केंद्र में आई। 2014 में संघ की छत्रछाया में एक बार फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार केंद्र में सत्ता में आई जो लगातार अब भी काबिज है।
आरएसएस के बारे में संक्षिप्त जानकारी-
संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार
स्थापना वर्ष- विजयादशमी, 1925
मुख्यालय- नागपुर (महाराष्ट्र)
वर्तमान प्रमुख: मोहन भागवत, सरसंघचालक
उद्देश्य- हिंदू राष्ट्रवाद और हिंदू परंपराओं को कायम रखना और ‘मातृभूमि के लिए नि:स्वार्थ सेवा’
तरीका – समूह चर्चा, बैठकों और अभ्यास के माध्यम से शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण
आधिकारिक वेबसाइट- rssonnet.org
संघ की ढांचागत व्यवस्था
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ढांचागत व्यवस्था में स्थानीय समूहों की शाखाओं से ऊपर जाते क्रम में विभिन्न स्तर पर मंडल, तहसील, जिला, राज्य, क्षेत्र और अंत में एक निर्वाचित प्रतिनिधि सभा और शीर्ष स्तर पर सरसंघचालक की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय कार्यकारिणी होती है। इसके अन्य सहयोगी संगठनों में भी यही व्यवस्था बनाई गई है।
36 संगठन कर रहे संघ के सिद्धान्तों पर काम
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विकास यात्रा विशाल बरगद के पेड़ जैसी है। यह सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन के लगभग हर क्षेत्र में विभिन्न सहयोगी संगठनों के माध्यम से काम करते हुए आज विशाल रूप ले चुका है। राष्ट्रीय स्तर पर 36 संगठन ऐसे हैं, जो संघ के सिद्धान्तों पर काम कर रहे हैं। इनमें प्रमुख हैं –
– राष्ट्र सेविका समिति (1932 में गठित महिलाओं का संगठन)
– अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (1948)
– वनवासी कल्याण आश्रम (1951)
– भारतीय जनता पार्टी (पूर्व में भारतीय जनसंघ,1951)
– भारतीय मजदूर संघ (1955)
– विश्व हिंदू परिषद (1964)
– ‘सक्षम’ (2021) दिव्यांगजनों के लिए काम करने वाली संस्था
संघ के चौथे सरसंघचालक प्रो. राजेंद्र सिंह रज्जू भैया ने इस बारे में बड़ी ही सारगर्भित बात कही थी। उनका कहना था कि संघ कोई सांस्कृतिक या सामाजिक संगठन नहीं, बल्कि एक पारिवारिक संगठन है। परिवार का अर्थ होता है स्नेह, एक-दूसरे का ख्याल रखना, आपसी जुड़ाव, एक-दूसरे के लिए त्याग करने की इच्छा और एक-दूसरे के विचारों को सुनना तथा उनका सम्मान करना आदि।