विनोद शील
नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भारत को स्थायी सदस्यता मिलनी तय है। अत: अब सवाल ‘अगर’ का नहीं बल्कि ‘कब’ का है। इसलिए इस मसले से जुड़ी सभी बहसों का अंत होना अब जरूरी होता जा रहा है। स्थायी सदस्यता के लिए ऐसी बहसों का अंत सिर्फ ऐसा ही नेता कर सकता है जिसकी बात को विश्व में वजन दिया जाता हो। इसी संदर्भ में अभी हाल ही में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत को यूएनएससी में स्थायी सदस्यता मिलना तय है और यदि देश में ऐसा प्रधानमंत्री हो जिसे कोई न नहीं कह सके, तो सदस्यता मिलने की यह प्रक्रिया और तेज हो जाएगी।
ओडिशा के कटक में लोगों से बातचीत करते हुए सुरक्षा परिषद के बारे में एक सवाल पर विदेश मंत्री ने कहा, यह बेहद कठिन समय है। उससे भी महत्वपूर्ण, आप किस पर भरोसा करना चाहते हैं? आप किसे इस देश का प्रभारी देखना चाहते हैं? आपको ऐसा कौन दिखता है जो इन चुनौतियों का मुकाबला कर देश को आगे ले जा सकता है। मुझे पूरा भरोसा है कि हम सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनेंगे। हम और जल्दी सदस्य बन सकते हैं । हमारे पास नरेंद्र मोदी जैसा एक मजबूत प्रधानमंत्री है जिसे दुनिया किसी चीज के लिए मना नहीं कर सकती और अभी हम यही करने की कोशिश कर रहे हैं। मोदी जैसा सशक्त प्रधानमंत्री ही यूएनएससी में स्थायी सदस्यता दिलाने की गारंटी बन सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने ही जुलाई 2023 में अपनी फ्रांस यात्रा के दौरान यूएनएससी में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए दृढ़ता से वकालत करते हुए कहा था कि प्राथमिक संयुक्त राष्ट्र निकाय दुनिया के लिए बोलने का दावा नहीं कर सकता है क्योंकि उसका सबसे अधिक आबादी वाला देश और सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत ही अब तक उसका स्थायी सदस्य नहीं है। गौरतलब है कि पीएम मोदी अनेक अवसरों पर यह सिद्ध भी कर चुके हैं कि जब वह कोई बात कहते अथवा करते हैं तो पूरा विश्व उस पर गौर करता है। दिल्ली से पहले जितनी भी जी20 शिखर बैठकें हुईं ं, उनमें सर्वसम्मति से घोषणापत्र जारी न हो सका किंतु दिल्ली घोषणापत्र सर्वसम्मति से जारी कराने में पीएम मोदी सफल रहे जो भारत के हिस्से में आई एक बड़ी कामयाबी थी। यह मोदी ही थे जिन्होंने रूस के राष्ट्रपति पुतिन से साफ कह दिया कि ‘आज का समय युद्ध का नहीं’। इस प्रकार की दृढ़ता वे अनेक अवसरों पर प्रदर्शित भी कर चुके हैं और विश्व में भारत का अनेक बार लोहा भी मनवा चुके हैं।
– बेमानी हो रहा यूएन, कई देश सुधार के पक्षधर
विकासशील दुनिया की आवाज है भारत
भारत लंबे समय से विकासशील दुनिया के हितों का बेहतर प्रतिनिधित्व करने के लिए सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट की मांग कर रहा है। भारत को ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज भी कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 78वें सत्र के अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस जैसी प्रभावशाली हस्तियों के समर्थन से भारत के प्रयास को गति भी मिली है जो वैश्विक शांति और सुरक्षा में सकारात्मक योगदान देने की भारत की क्षमता में विश्वास करते हैं। भारत आठ बार (16 वर्ष) तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य रहा है। सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी होगी। हमें अतिरिक्त प्रयास करना होगा। संयुक्त राष्ट्र का गठन लगभग 80 साल पहले हुआ था। उस समय पांच राष्ट्र थे जिन्होंने निर्णय लिया था कि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनेंगे। यह जानना अजीब बात है कि जिन पांच देशों ने अपना नियंत्रण बनाए रखा है, उन्हीं से पूछा जा रहा है कि सुरक्षा परिषद में बदलाव होना चाहिए या नहीं। उस समय 50 स्वतंत्र देश थे। पिछले 80 वर्षों में उन देशों की संख्या अब 193-194 तक पहुंच गई है लेकिन इन पांच देशों ने क्या किया है?
बहुत कमजोर हो गया है संयुक्त राष्ट्र
यूक्रेन संघर्ष को लेकर संयुक्त राष्ट्र में गतिरोध था, गाजा में युद्ध पर संयुक्त राष्ट्र की ओर से कोई सहमति नहीं थी। आज यह संगठन अनेक मुद्दों पर बेमानी होता जा रहा है।
इस भावना में जोरदार वृद्धि हुई है कि व्यवस्था अब बदलनी चाहिए और भारत को यूएनएससी में स्थायी सीट मिलनी चाहिए। वर्तमान परिदृश्य में बहुत सारी बातचीत चल रही है और भारत को इस पर कायम रहना चाहिए। कई विचार सामने रखे गए हैं। कुछ अरब देशों, अफ्रीकी देशों द्वारा जापान, जर्मनी और ब्राजील के साथ भारत ने भी एक प्रस्ताव रखा है।