सिंधु झा
भारत और चीन के बीच न सिर्फ जमीनी सीमा पर बल्कि समुद्र में भी टकराव की स्थिति है। दोनों देश एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी बनते जा रहे हैं। दोनों देशों के बीच मुकाबला हिंद महासागर क्षेत्र में है लिहाजा इसी को ध्यान में रखते हुए भारत अपनी नौसेना को और ज्यादा मारक क्षमता से लैस करेगा । भारतीय नौसेना ने 68 युद्धपोतों और जहाजों का ऑर्डर दिया है। इनकी कुल लागत 2 लाख करोड़ रुपये है। भारत का लक्ष्य आने वाले वर्षों में अपनी नौसेना को मजबूत करना है।
नौसेना को 143 विमान और 130 हेलीकॉप्टर के साथ-साथ 132 युद्धपोत खरीदने की भी अनुमति मिल गई है। इसके अलावा 8 अगली पीढ़ी के कार्वेट (छोटे युद्धपोत), 9 पनडुब्बियां, 5 सर्वेक्षण जहाज और 2 बहुउद्देश्यीय जहाजों के निर्माण को मंजूरी दी गई है। इसे आने वाले वर्षों में तैयार कर लिया जाएगा। 2035 तक नौसेना के पास 175 नए युद्धपोत होंगे। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार इससे न केवल रणनीतिक लाभ मिलेगा बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र में हमारी पहुंच भी मजबूत होगी। इतना ही नहीं, इस दौरान लड़ाकू विमानों, विमानों, हेलीकॉप्टरों और ड्रोनों की संख्या बढ़ाने पर भी जोर दिया जाएगा। समुद्र में चीन से बढ़ते खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी-नेवी हिंद महासागर क्षेत्र और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपना दबदबा बनाना चाहती है। इसने हॉर्न ऑफ अफ्रीका जिबूती तथा पाकिस्तान में कराची और ग्वादर में अपना बेस स्थापित किया है। माना जा रहा है कि जल्द ही चीनी नौसेना कंबोडिया के रेम में भी अपना बेस स्थापित करेगी। इसका मकसद हर समुद्र में अपनी पकड़ मजबूत करना है। चीन तेजी से जहाज बनाने में जुटा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि इसके पास दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है, जिसमें 335 युद्धपोत और पनडुब्बियां शामिल हैं। चीन ने पिछले 10 सालों में अपने बेड़े में 150 युद्धपोत शामिल किए हैं। चीन अगले पांच से छह साल में अपनी नौसेना में युद्धपोतों की संख्या बढ़ाकर 555 करना चाहता है। चीनी विमानवाहक पोतों ने हिंद महासागर क्षेत्र में गश्त शुरू कर दी है।