ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। एक्ट्रेस और सांसद कंगना रनौत ने लोकसभा सदस्य के तौर पर शपथ ले ही है। पुराने इंटरव्यू में कंगना ने कहा था कि अगर वो चुनाव जीतती हैं, तो फिल्म इंडस्ट्री छोड़ देंगी, हालांकि अब उनका कहना है कि वह आगे फिल्मी पारी जारी रखेंगी। कंगना के परिजनों ने अपकमिंग रिलीज ‘इमरजेंसी’ से जुड़ी जानकारी दी है। यह फिल्म ‘चंदू चैंपियन’ के साथ ही रिलीज होनी थी पर चुनावी व्यस्तताओं के चलते उस डेट पर फिल्म नहीं आ सकी।
हालांकि फिल्म को जल्द ही रिलीज करने की तैयारियां चल रही हैं। संसद सत्र के बाद कंगना इस फिल्म का प्रमोशन करेंगी। कंगना से जुड़े सूत्रों ने कहा, ‘एक बार संसद सत्र खत्म हो जाए तो फिल्म रिलीज पर तस्वीर स्पष्ट हो सकेगी। कोशिश तो फिल्म को 25 जून को ही रिलीज करने की थी, क्योंकि उसी डेट को 1975 में इमरजेंसी लगाई गई थी। हालांकि वह डेट भी टल गई। अब ये 6 सितंबर को रिलीज होगी। कंगना राजनीति के मैदान में अपनी पहली पारी के साथ ही फिल्मी जर्नी को भी जारी रखेंगी। अगली फिल्म पर तो बहुत जल्द अनाउंसमेंट आ सकता है। चर्चा है कि कंगना के पास आनंद एल राय की ‘तनु वेड्स मनु 3’ और अलौकिक देसाई की माइथोलॉजिकल फिल्म ‘सीता- द इनकार्नेशन’ जैसी फिल्में भी हैं।
फिल्म इमरजेंसी के एसोसिएट राइटर जयंत सिन्हा बताते हैं, ‘फिल्म में काफी रिसर्च वर्क है, पर इसका मतलब यह नहीं है कि इसकी कमर्शियल वैल्यू को किनारे पर रख दिया गया है। दोनों पहलुओं में सटीक संतुलन साधा गया है। इंदिरा गांधी से जुड़ी कई ऐतिहासिक जरूरी जगहों पर रिसर्च के लिए लोग गए, जैसे इंदिरा गांधी मेमोरियल, फिर लखनऊ विधानसभा की लाइब्रेरी। वहां बुक फॉर्म में तत्कालीन लोकसभा की प्रोसिडिंग रखी हुई हैं। हमने 1975 से 77 तक और फिर जिस पीरियड में इमरजेंसी लगी थी, तब तक की लोकसभा में बहस क्या होती थीं, वह सारी रिसर्च वहां से ली है।’
वसंत साठे और अटली जी की बहस खंगाली गई
जयंत बताते हैं, ‘उस जमाने के जो दिग्गज लीडर थे- वसंत साठे और अटल बिहारी बाजपेयी। उनकी आपस में क्या बहस होती थीं, वह खंगाली गई। लखनऊ विधानसभा के अध्यक्ष रहे ब्रजेश पाठक के साथ मेरा पर्सनल कॉन्टैक्ट हुआ था और फिर उन्होंने मुझे लखनऊ लाइब्रेरी जाने की इजाजत दी थी, तो हमने वहां से फैक्ट्स निकाले।
फिल्म का पहला रिसर्च 500 पन्नों में सिमट पाया
जयंत के शब्दों में, ‘पहला ड्राफ्ट 130 पन्नों का था, जिसे हमने कम करके 100 पन्नों के अंदर लाया था, लेकिन बायोपिक जब आप लिखते हो और ऐसी चीजें करते हो, तो उसका फाइनल ड्राफ्ट से कुछ करना नहीं होता है। जैसे 100 पेजेस से आपकी 2 घंटे की फिल्म बनेगी या डेढ़ घंटे की बनेगीै। हमारा जो रिसर्च डॉक्यूमेंट था वो 500 पन्नों से ज्यादा का था और उस पर मैंने अपनी एक किताब भी लिखी हुई है, ‘डॉटर ऑफ इंडिया’।’
डेढ़ सालों की रिसर्च रही, कई किताबों को पढ़कर निकाला सार
बकौल जयंत, ‘रिसर्च में हमें डेढ़ साल का समय लगा। मतलब डेढ़ से दो साल तो प्रॉपर हमारी रिसर्च चली। इंदिरा जी की सबसे पहली बायोग्राफी कैथरीन फ्रैंक ने लिखी थी। बुक का नाम था ‘इंदिरा- द लाइफ ऑफ इंडिया नेहरू गांधी’। वो बहुत मोटी किताब थी। जनरल लैंग्वेज में कहें तो पूरी किताब को पढ़कर उसका निचोड़ निकाला। फिर कूमी कपूर की बुक ‘द इमरजेंसी: ए पर्सनल हिस्ट्री’ पढ़ी, इसके बाद में कुलदीप नायर ने जो बुक ‘इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी’ लिखी थी। फिर खुशवंत सिंह ने जो लिखी थी। एंटी इमरजेंसी के जो राइटर थे, उन्हें पढ़ा और जो प्रो इमरजेंसी थीं उन्हें भी पढ़ा था।