नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने अपने रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (आरएलवी) की लैंडिंग का सफल परीक्षण किया है। इसका नाम ‘पुष्पक’ रखा गया है।
‘पुष्पक’ इसरो का स्वदेशी स्पेस शटल है जो 2030 में भारतीय स्पेस स्टेशन पर कार्गो और सैटेलाइट्स ले जाने का काम करेगा। हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी के दौरे के समय इसका नाम ‘पुष्पक’ रखा गया था। आटोनोमस लैंडिंग आंध्र प्रदेश के चित्रदुर्ग चल्लाकेरे में की गई। यहां डीआरडीओ की एक फैसिलिटी है जहां पर इसकी लैंडिंग और टेकऑफ टेस्ट होते हैं।
खास तरह का स्पेस शटल
पुष्पक खास तरह का स्पेस शटल है जो अंतरिक्ष में सैटेलाइट्स और कार्गो ले जाने का काम करेगा। इसरो इससे पहले भी दो बार रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल की सफल लैंडिंग करा चुका है।
2 अप्रैल 2023 को इसरो, डीआरडीओ और भारतीय वायुसेना ने मिलकर इसका लैंडिंग टेस्ट किया थ। उस समय चिनूक हेलिकॉप्टर से पुष्पक को 4.5 किमी की ऊंचाई से छोड़ा गया था जिसके बाद यान ने खुद ही सफल लैंडिंग की। इससे पहले 2016 में लैंडिंग करवाई गई थी।
अगले कुछ साल की तस्वीर
पुष्पक पूरी तरह से स्वदेशी है। कुछ साल में हमारे एस्ट्रोनॉट्स इसके बड़े वर्जन में कार्गो डालकर अंतरिक्ष तक पहुंचा सकते हैं या फिर इससे सैटेलाइट लॉन्च कर सकते हैं।
जासूसी भी करवाई जा सकती है
यह सैटेलाइट को अंतरिक्ष में छोड़कर वापस आएगा ताकि फिर से उड़ान भर सके। इतना ही नहीं इसके जरिए किसी भी देश की जासूसी या हमला करवा सकते हैं। अंतरिक्ष में ही दुश्मन के सैटेलाइट को बर्बाद कर सकते हैं। ऐसी ही टेक्नोलॉजी का फायदा अमेरिका, रूस और चीन भी उठाना चाहते है।
अंतरिक्ष में कचरा साफ करेगा
इसका इस्तेमाल अंतरिक्ष में कचरा साफ करने और सैटेलाइट्स की मरम्मत के लिए भी किया जा सकता है।
दुश्मन पर हमला कर सकता है
यह एक ऑटोमेटेड रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल है। ऐसे विमानों से डायरेक्टेड एनर्जी वेपन (डीईडब्ल्यू) चला सकते हैं। ‘पुष्पक’ से बिजली ग्रिड उड़ाना या फिर कंप्यूटर सिस्टम को नष्ट करना जैसे काम भी किए जा सकते हैं। इसरो का मकसद है कि साल 2030 तक इस प्रोजेक्ट को पूरा किया जाए ताकि बार-बार रॉकेट बनाने का खर्च बचे।
बस थोड़ी-थोड़ी मेंटेनेस
इससे सैटेलाइट लॉन्च का खर्च 10 गुना कम हो जाएगी। थोड़ी मेंटेनेस के बाद इससे फिर सैटेलाइट लॉन्च किया जा सकता है। रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल के अत्याधुनिक और अगले वर्जन से भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस में भी भेजा जा सकता है। अभी ऐसे स्पेस शटल बनाने वालों में अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और जापान ही शामिल हैं।
2016 का परीक्षण था मील का पत्थर
2016 में ‘पुष्पक’ की टेस्ट फ्लाइट हुई थी। तब यह एक रॉकेट के ऊपर लगाकर अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। करीब 65 किमी तक हाइपरसोनिक स्पीड से उड़ान भरी थी। उसके बाद 180 डिग्री पर घूमकर यह वापस आ गया था। 6.5 मीटर लंबे इस स्पेसक्राफ्ट का वजन 1.75 टन है। बाद में इसे बंगाल की खाड़ी में उतारा गया था।
डिफेंस में भी मददगार है यह यान
रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल दो स्टेज का स्पेसक्राफ्ट है। पहला रीयूजेबल पंख वाला क्राफ्ट जो ऑर्बिट में जाएगा जिसके नीचे एक रॉकेट होगा जो इसे ऑर्बिट तक पहुंचाएगा। एक बार ऑर्बिट में पहुंचने के बाद स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष में सैटेलाइट छोड़कर वापस आ जाएगा। इसका उपयोग रक्षा संबंधी कार्यों में भी किया जा सकता है।
रीयूजेबल लॉन्चिंग व्हीकल के पहले दो परीक्षण भी रहे थे सफल
बीते साल इसरो ने रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल के परीक्षण के दौरान आरएलवी को वायुसेना के चिनूक हेलीकॉप्टर से करीब साढ़े चार किलोमीटर की ऊंचाई से छोड़ा गया। परीक्षण के दौरान आरएलवी ने सफलतापूर्वक रनवे पर लैंड किया।
इसरो की सफलता पर मुहर
आरएलवी ने ब्रेक पैराशूट, लैंडिंग गियर ब्रेक और नोज व्हील स्टीयरिंग सिस्टम की मदद से सफल लैंडिंग की।
रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल की सफल लैंडिंग से इसरो द्वारा विकसित की गई तकनीक जैसे नेवीगेशन, कंट्रोल सिस्टम, लैंडिंग गियर और डिक्लेयरेशन सिस्टम की सफलता पर भी मुहर लग गई है।
– अंतरिक्ष में ही दुश्मन के सैटेलाइट को बर्बाद करने में सक्षम
– अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस में भी ले जा सकता है यह
– अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन जापान की श्रेणी में शामिल होगा भारत
पहले की तुलना में और ज्यादा मजबूत
पहले के परीक्षणों के आधार पर इसरो ने इस बार आरएलवी के एयरफ्रेम स्ट्रक्चर और लैंडिंग गियर को पहले की तुलना में और ज्यादा मजबूत बनाया ताकि लॉन्च व्हीकल लैंडिंग के वक्त ज्यादा भार को भी वहन कर सकें।
रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल पुष्पक मिशन को विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर ने लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर और इसरो की इर्सियल सिस्टम्स यूनिट के साथ मिलकर पूरा किया गया। इस बार का ‘पुष्पक’ विमान पिछली बार के आरएलवी-टीडी से 1.6 गुना बड़ा है और ज्यादा वजन झेल सकता है।
नासा के स्पेस शटल की तरह
इसरो का रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (आरएलवी) नासा के स्पेस शटल की ही तरह है। लगभग 2030 तक पूरा होने पर, यह विंग वाला स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी की निचली कक्षा में 10,000 किलोग्राम से ज्यादा वजन ले जाने में सक्षम होगा।
किफायती बनेंगे अंतरिक्ष मिशन : सोमनाथ
इसरो चीफ एस सोमनाथ ने बताया कि भारत के अंतरिक्ष मिशन को किफायती बनाने के लिए ‘पुष्पक’ लॉन्च व्हीकल को भारत में बनाना एक बड़ा और चुनौतीपूर्ण कदम था। लॉन्च व्हीकल में ही सबसे महंगे इलेक्ट्रोनिक्स पार्ट होते हैं। ऐसे में दोबारा इस्तेमाल होने वाला लॉन्च व्हीकल बनने से यह व्हीकल मिशन की सफलता के बाद वापस पृथ्वी पर सुरक्षित उतर सकेगा और अगले मिशन में फिर से इसी लॉन्च व्हीकल का इस्तेमाल किय जा सकेगा।
किसी भी रॉकेट मिशन में 2 बेसिक चीजें होती है। रॉकेट और उस पर लगा स्पेसक्राफ्ट। रॉकेट का काम स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष में पहुंचाना होता है। अपने काम को करने के बाद रॉकेट को आम तौर पर समुद्र में गिरा दिया जाता है। यानी इसका दोबारा इस्तेमाल नहीं होता। लंबे समय तक पूरी दुनिया में इसी तरह से मिशन को अंजाम दिया जाता था। यहीं पर एंट्री होती है रियूजेबल रॉकेट की।
ऐसे समझें रियूजेबल का महत्व
इसे एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए आप नई दिल्ली से न्यूयॉर्क का सफर एक प्लेन में तय कर रहे हैं, लेकिन ये प्लेन एक ऐसी टेक्नोलॉजी पर काम करता है जिसका इस्तेमाल केवल एक बार किया जा सकता हो। सोचिए इससे प्लेन का सफर कितना महंगा हो जाता, क्योंकि हर बार नई दिल्ली से न्यूयॉर्क जाने के लिए नया प्लेन बनाना पड़ता।