जाहिरा तौर पर तीन वर्षों की लंबी आर्थिक उथलपुथल के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में देश की नरेंद्र मोदी सरकार की यह छलांग सचमुच देखने लायक है।
अगर हम व्यापार की बात करें तो भारत के लिए 2024 एक बेहतरीन वर्ष साबित होने वाला है। विश्व बैंक ने 2024 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। उसने अपने पहले अनुमान को 1.2 प्रतिशत संशोधित किया है। विश्व बैंक की दक्षिण एशिया वृद्धि संबंधी जारी अद्यतन रिपोर्ट कहती है कि कुल मिलाकर 2024 में दक्षिण एशिया में वृद्धि दर 6.0 प्रतिशत मजबूत होने की उम्मीद है। यह मुख्य तौर पर भारत में मजबूत वृद्धि से संभव होगा। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी रिकॉर्ड तोड़ रहा है। लगातार दूसरे हफ्ते फॉरेक्स रिजर्व ने लाइफ टाइम हाई का रिकॉर्ड कायम किया है। एक हफ्ते में फॉरेक्स रिजर्व में 24 हजार करोड़ रुपए का इजाफा हुआ। प्राइस वाटर हाउस कूपर्स (पीडब्लूसी) के 27वें वैश्विक सीईओ सर्वेक्षण भी भारतीय संदर्भ में यही आशावाद दर्शाते हैं कि उसका विकास तेज गति से होगा। अधिकतर सीईओ ने तो यह भी कहा कि आज भारत की आशावादिता संपूर्ण दुनिया को सुनाई दे रही है। भारत जो 2023 में वैश्विक सीईओ के लिए निवेश की पसंदीदा जगह में नौवां स्थान रखता था, इस साल वह चार स्थान की छलांग लगाकर पांचवें स्थान पर आ चुका है।
जाहिरा तौर पर तीन वर्षों की लंबी आर्थिक उथलपुथल के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में देश की नरेंद्र मोदी सरकार की यह छलांग सचमुच देखने लायक है। देश के विकास की स्थिति यह है कि भारत में तेजी से हो रहे डिजिटलाइजेशन का संयुक्त राष्ट्र भी मुरीद हो गया है। भारत की तारीफ करते हुए संयुक्त राष्ट्र सभा के अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस ने कहा, इससे भारत में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलेगा, साथ ही गरीबी को कम करने में भी मदद मिलेगी। गत तीन वर्षों में दुनिया ने एक जानलेवा महामारी भी देखी और यूरोप में पिछले लगभग दो वर्षों से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध तथा मध्य पूर्व में हमास और इजरायल के बीच चल रहा युद्ध भी देखा है। इन सबके बावजूद भारत में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की वृद्धि की रफ्तार मजबूत है। वैश्विक कंपनियां भविष्य को लेकर भी आश्वस्त हैं। पीडब्लूसी के सर्वे के मुताबिक भारत के 86 फीसदी सीईओ ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में और सुधार होगा जबकि 44 फीसदी वैश्विक सीईओ अपने-अपने क्षेत्र में यह बात मानते हैं कि भारत की हालत और बेहतर तरीके से सुधरेगी।
आज अर्थशास्त्री यह अनुमान लगाने के लिए विवश हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था अमृतकाल के अंत में, यानी 15 अगस्त 2047 तक 8 फीसदी की दर से बढ़ सकती है। अगर यह रफ्तार कायम रही तो इस अवधि तक भारत 55 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में भारत के कार्यकारी निदेशक कृष्णमूर्ति वेंकट सुब्रमण्यम ने कहा कि यह तभी संभव है, जब देश पिछले 10 वर्षों में लागू की गई अच्छी नीतियों की रफ्तार को दोगुना कर सके और सुधारों में तेजी लाते हुए उसे बरकरार रखा जाए।
भारतीय अर्थव्यवस्था 2023 के अंतिम तीन महीनों में 8.4 फीसदी की दर से बढ़ी। यह पिछले डेढ़ साल में जीडीपी वृद्धि की सबसे तेज रफ्तार है। अक्तूबर-दिसंबर में वृद्धि दर के दम पर चालू वित्त वर्ष के लिए विकास दर अनुमान को 7.6 फीसदी तक बढ़ा दिया गया है।
आईएमएफ में भारत के कार्यकारी निदेशक के मुताबिक इसके लिए भूमि, श्रम, पूंजी और लॉजिस्टिक्स क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है। विनिर्माण क्षेत्र में भी और सुधार जरूरी है। इसके साथ ही हमें विनिर्माण क्षेत्र को कर्ज देने के लिए बैंकिंग क्षेत्र में भी सुधार पर बल देना होगा। इसके साथ-साथ रोजगार सृजन पर भी जोर देना होगा ताकि खपत की मात्रा में वृद्धि हो। 1991 के बाद से ऐतिहासिक रूप से भारत की औसत आर्थिक वृद्धि दर 7 फीसदी से अधिक रही है। अब भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की आवश्यकता है क्योंकि देश की जीडीपी का लगभग 58 फीसदी घरेलू उपभोग से ही आता है। हमारे पास क्षमता है। अगर हम विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहित कर पर्याप्त नौकरियां पैदा कर सकें तो इससे तस्वीर बहुत अधिक बदल सकती है।
इस तथ्य को सभी भली-भांति जानते हैं कि विश्व की ज्यादातर अर्थव्यवस्थाएं कोरोना के असर से अभी भी उबर नहीं पाई हैं, ऊपर से युद्धों से उपजी परिस्थितियों में वैश्विक आपूर्ति श्रंखलाओं को पहुंच रही बाधा से भी वे त्रस्त हैं। ऐसे में भारतीय स्टेट बैंक की ताजा रिपोर्ट बताती है कि जीडीपी की वास्तविक वृद्धि दर, कोविड काल से पहले की 5.7 फीसदी से बढ़कर 8.1 फीसदी पर पहुंच चुकी है। यहां यह उल्लेख करना भी समीचीन होगा कि पिछले कुछ वर्षों में कई राज्याें की अर्थव्यवस्था में जबर्दस्त उछाल नजर आया है। उनमें उत्तर प्रदेश को कभी बीमारू राज्यों की सूची में शामिल किया जाता था लेकिन आज उत्तर प्रदेश अगर दस खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है एवं जिसे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का इंजन भी माना जा रहा है तो इसका श्रेय राज्य की नियोजित विकास नीतियों को ही जाता है। एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार गुजरात, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों ने भी इस मामले में महत्वपूर्ण प्रगति दर्शाई है जबकि झारखंड, पश्चिम बंगाल और दिल्ली जैसे राज्यों में प्रति व्यक्ति आय में गिरावट को ठीक करने के लिए अब भी बहुत कुछ काम किया जाना बाकी है।
वैसे एसबीआई के अतिरिक्त मूडीज, फिंच और एस एंड पी के बाद यदि मॉर्गन स्टैनली ने भी एक अप्रैल से प्रारंभ हुए नए वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भारत की विकास दर के अनुमानों को बढ़ाने का फैसला किया है तो इसे भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक एजेंसियों के बढ़ते हुए विश्वास का प्रतीक ही माना जाना चाहिए। तमाम मुश्किलों के बावजूद भारत आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इसमें शायद ही किसी को शक है कि यह जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।