ईटानगर। देश के सीमावर्ती गांवों की तस्वीर बदलने वाले केंद्र सरकार के अभियान ‘वाइब्रेंट विलेज’ का असर अब धीरे-धीरे दिखने लगा है। इसका उद्देश्य है सीमावर्ती गांवों की महिलाओं का सशक्तिकरण। इसके परिणाम अब सामने आने लगे हैं।
अरुणाचल प्रदेश के अंजॉ जिले के प्रथम गांव काहो, किबिथू और मेशाई की तस्वीर धीरे-धीरे बदल रही है। भारतीय सेना के छोटे-छोटे प्रयासों से इन गांवों की महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन आ रहे हैं। किबिथू गांव का किबिथू बेकरी तथा काहो और मेशाई गांवों में बन रहे होमस्टे महिला सशक्तिकरण की दिशा में मील के पत्थर साबित हो रहे हैं।
पर्यटकों को गांव तक लाने से बढ़ेगा रोजगार
काहो और मेशाई में पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं। इन गांवों को पर्यटन के रूप में विकसित किया जा रहा है। इन गांव समूहों ने मिलकर होमस्टे बनाए हैं। मेयोर परिषद के उपाध्यक्ष कंचुक मेयोर कहते हैं, देसी पर्यटकों की संख्या में इजाफा हुआ है। अब भारतीय सेना के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को यहां तक लाने के प्रयास कर रहे हैं।
– किबिथू बेकरी और होमस्टे से मिल रहा रोजगार
सेना के प्रयास से मिल रहे बड़े परिणाम
किबिथू गांव में ‘वाइब्रेंट विलेज’ कार्यक्रम के तहत भारतीय सेना ने गांव की बेटियों को लेकर एक छोटा सा प्रयास किया। सेना की मदद से गांव में किबिथू बेकरी नाम से केक, कुकीज और बिस्कुट बनाने का काम शुरू किया गया। इसके लिए गांव की ही बेटियों को प्रशिक्षण देने और मशीन तक का इंतजाम सेना ने किया। जम्मू-कश्मीर और बेंगलूरू से टीमों को प्रशिक्षण के लिए बुलाया गया। कुछ ही महीनों में इस बेकरी की ख्याति किबिथू के आसपास के गांवों से निकलकर वॉलोंग तक पहुंच गई।
सोचा नहीं था, गांव में बनेगा केक और बटर कुकीज
किबिथू बेकरी के संचालन प्रेम कुमार कहते हैं, हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारे गांव में केक, बटर कुकीज, नान खटाई और बेकरी के अन्य सामान बनेंगे। भारतीय सेना की मदद से हमने इसकी शुरुआत की और गांव की बेटियों को इसका प्रशिक्षण दिया। प्रेम कहते हैं, तीन हजार रुपये से की गई शुरुआत आज 8 हजार से अधिक तक पहुंच गई है।
किसी का मुंह नहीं ताकना पड़ता
बेकरी से जुड़ी शांति राई कहती हैं, पहले पैसों के लिए परिवार पर निर्भर थे, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। अब किसी काम के लिए परिवार का मुंह नहीं ताकना पड़ता।