डॉ. सीमा द्विवेदी
लखनऊ। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में ‘डायबिटिक फुट’ पर विशेष सेमिनार का आयोजन किया गया। आमतौर पर एंजियोप्लास्टी का उपयोग दिल संबंधी समस्या होने पर किया जाता है, लेकिन ‘डायबिटीक फुट’ (मधुमेह पैर) के मामले में भी यह तकनीक बेहद उपयोगी है। कर्नाटक के ‘डायबिटिक फुट’ सर्जन, मधुमेह अंग बचाव विभाग के एचओडी डॉ. सुनील कारी ने यह जानकारी दी।
रक्त वाहिका में वसा, कोलेस्ट्रॉल, कैल्शियम जम जाता है
डॉ. कारी ने बताया कि मधुमेह की वजह से रक्त वाहिका में वसा, कोलेस्ट्रॉल, कैल्शियम जम जाता है। ऐसे में दिल की तरह पैर में भी बैलून एंजियोप्लास्टी कर इस्टेंट यानी धातु की जाली वाली ट्यूब डालते हैं। इससे रक्त वाहिका में खून का प्रवाह सामान्य हो जाता है। मुंबई के डॉ. सुरेश पुरोहित ने बताया कि हायपरबेरिक ऑक्सीजन थेरेपी (एचबीओटी) से भी घाव जल्दी भरता है। जिस अंग में ऑक्सीजन कम होती है, वहां इसका उपयोग किया जाता है।
एंटीबायोटिक की कोई भूमिका नहीं
दिल्ली के डॉ. अशोक दामिर ने बताया कि घाव भरने में एंटीबायोटिक के लंबे समय तक इस्तेमाल की कोई भूमिका नहीं होती है और संक्रमण का संकेत मिलने पर ही इसे शुरू करना चाहिए। इससे पहले संस्थान के निदेशक प्रो. आरके धीमन ने सेमिनार का शुभारंभ किया। एंडोक्राइन सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो. गौरव अग्रवाल ने बताया कि ‘डायबिटिक फुट’ के इलाज की सुविधा हमारे विभाग में बहुत अच्छी है। प्रो. अंकुर भटनागर, डॉ. रजनीकांत, डॉ. सुजीत गौतम सहित एसजीपीजीआई और अन्य संस्थानों के संकाय सदस्यों ने भी मधुमेह पैर प्रबंधन पर अनुभव बताए। डॉ. ज्ञानचंद ने सबका धन्यवाद किया।