ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। तिब्बत में कई ऐसे ग्लेशियर हैं जो तेजी से पिघल रहे हैं। इनके पिघलने से इनके नीचे दबे 15 हजार साल पुराने वायरस मिले हैं। ये वायरस भारत, चीन और म्यांमार जैसे देशों के लिए खतरा हो सकते हैं। प्राचीन वायरस के संक्रमण का कोई इलाज नहीं है। पूरी दुनिया में पर्माफ्रॉस्ट पिघल रहे हैं और प्राचीन जीव, वायरस, बैक्टीरिया जैसी चीजें निकल रही हैं।
ये किसी हॉरर फिल्म का सीन नहीं, सच्चाई है। ग्लेशियरों और पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से वूली राइनो से लेकर 40 हजार साल पुराने विशालकाय भेड़िये और 7.50 लाख साल पुराने बैक्टीरिया का पता चला है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने तिब्बत के पठारों पर मौजूद गुलिया आइस कैप के पास से 15 हजार साल पुराने वायरस खोजे हैं वो भी एक प्रजाति के नहीं, बल्कि कई प्रजातियों के हैं। ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के माइक्रोबायोलॉजिस्ट झी-पिंग झॉन्ग ने कहा कि ये इंसानों के लिए किसी भी समय खतरा पैदा कर सकते हैं। समुद्री सतह से 22 हजार फीट की ऊंचाई पर चीन में तिब्बत के पिघलते ग्लेशियर के नीचे से वैज्ञानिकों ने 33 वायरस खोजे जिनमें से 28 के बारे में पूरी दुनिया को कुछ नहीं पता। ये इससे पहले कभी देखे नहीं गए। यानी इनके संक्रमण का कोई इलाज नहीं हो सकता। ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के दूसरे साइंटिस्ट मैथ्यू सुलिवन ने कहा कि इन वायरसों ने चरम स्थितियों में अपनी जिंदगी बिताई है। ये अब किसी भी तरह के तापमान या मौसम को झेल सकते हैं।
इन पर किसी चीज का असर नहीं
मैथ्यू ने कहा कि इनके जीन्स का अध्ययन करके पता चलता है कि इनके लिए किसी भी तरह का एक्स्ट्रीम मौसम सामान्य है। इससे पहले तिब्बत के ग्लेशियर में बैक्टीरिया मिलने का पता चला था। यह सब इतनी तेजी से हो रहा है कि इंसानों के सामने कठिन भविष्य का संकट खड़ा हो सकता है।
ग्लेशियरों से निकलती हैं नदियां, वहीं से आएंगे पुराने बैक्टीरिया-वायरस
पिछले साल तिब्बत के ग्लेशियरों में बैक्टीरिया की 1000 नई प्रजातियां मिली थीं। इनमें से सैकड़ों के बारे में वैज्ञानिकों को कुछ भी नहीं पता। जलवायु परिवर्तन की वजह से ये ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। ये पिघले तो इनका पानी बैक्टीरिया के साथ चीन और भारत की नदियों में मिलेगा जिसे पीकर लोग नई बीमारियों से संक्रमित हो सकते हैं।
पानी से आएगा मौत का प्राचीन सामान
यूनिवर्सिटी ऑफ चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस के वैज्ञानिकों ने तिब्बती पठारों पर मौजूद 21 ग्लेशियरों के सैंपल जमा किए थे। ये सैंपल 2016 से 2020 के बीच जुटाए गए थे। इनमें 968 प्रजातियों के बैक्टीरिया मिले जिनमें से 82 प्रतिशत बैक्टीरिया एकदम नए हैं जिनके बारे में वैज्ञानिकों को कोई जानकारी नहीं है।
नीचे की तरफ आएंगे बैक्टीरिया-वायरस
ग्लेशियर और बर्फीली चादरें धरती की 10 प्रतिशत सतह को कवर करती हैं। पृथ्वी पर सबसे ज्यादा साफ पानी का स्रोत इन्हीं के पास है। दिक्क त ये हैं कि हजारों साल से जमा इन ग्लेशियरों के नीचे क्या है, कैसा वातावरण है? कैसे जीव या सूक्ष्मजीव रहते हैं, ये किसी को पता नहीं। तिब्बत को ‘वाटर टॉवर ऑफ एशिया’ भी कहते हैं। यहां से एशिया की कुछ बड़ी नदियां निकलती हैं।
इन नदियों के आसपास घनी आबादी में लोग रहते हैं। जैसे- यांग्त्जे नदी, यलो रिवर, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी। अगर बैक्टीरिया इन नदियों के सहारे चीन और भारत की आबादी वाले इलाके तक पहुंच गया तो स्थिति बेहद बुरी हो सकती है।