ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) ने चिकित्सा क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ा है। अब एक अनुभवी डॉक्टर के समान एआई भी मरीज की बीमारी को पकड़ सकता है। पीजीआई चंडीगढ़ के डॉक्टरों ने एक अध्ययन में इसकी पुष्टि की है।
‘द लैंसेट रीजनल हेल्थ-साउथ ईस्ट एशिया’ में प्रकाशित इस अध्ययन में एआई तकनीक ने मरीजों में पित्ताशय कैंसर की पहचान उसी तरह से की जैसे एक अनुभवी रेडियोलॉजिस्ट जांच रिपोर्ट के आधार पर करता है। यह इसलिए भी हैरान करता है, क्योंकि पित्ताशय का कैंसर (जीबीसी) एक अत्यधिक घातक बीमारी है, जिसका आमतौर पर पता नहीं चल पाता है। एआई ने इस चुनौती को काफी सरल बना दिया। शोधकर्ताओं ने अध्ययन में कहा है कि पित्ताशय कैंसर का पता लगाने के लिए उनके मॉडल का इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, इस अध्ययन की अपनी कुछ सीमा थी। इसलिए इस पर बहुकेंद्रीय अध्ययन भी होने चाहिए।
नई दिल्ली स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और चंडीगढ़ स्थित पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) के इस संयुक्त अध्ययन का उद्देश्य पेट के अल्ट्रासाउंड से पित्ताशय कैंसर का पता लगाने के लिए एक गहन शिक्षण (डीएल) मॉडल विकसित करना और एक अनुभवी रेडियोलॉजिस्ट के साथ उसकी तुलना करना था।
273 मरीजों पर परीक्षण
शोधकर्ताओं ने बताया कि गहन शिक्षण यानी डीप लर्निंग एआई तकनीक में एक ऐसी विधि है जो कंप्यूटर को मानव मस्तिष्क से प्रेरित तरीके से डाटा प्रोसेस करना सिखाती है। उन्होंने बताया कि चंडीगढ़ पीजीआई में अगस्त 2019 से जून 2021 के बीच जिन मरीजों में पित्ताशय कैंसर की जांच हुई, उन 273 रोगियों पर परीक्षण किया, जिनमें से 233 मरीजों के डाटा पर इस मॉडल को प्रशिक्षित किया।
एक तरफ एआई, दूसरी ओर डॉक्टरों ने की पुष्टि
मरीजों की जांच रिपोर्ट पर एक तरफ एआई तकनीक से समीक्षा की जा रही थी तो वहीं दूसरी ओर दो अनुभवी रेडियोलॉजिस्ट से भी स्वतंत्र रूप से अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट की समीक्षा कराई जा रही थी। इनके परिणामों की तुलना जब डीएल मॉडल के परिणामों से की तो पता चला कि एआई पित्ताशय कैंसर का पता लगाने में सक्षम है। डीएल मॉडल ने पथरी, संकुचित पित्ताशय, छोटे घाव के आकार (10 मिमी से कम) और गर्दन के घावों की उपस्थिति में जीबीसी का पता लगाया।