आस्था भट्टाचार्य
नई दिल्ली। आधी आबादी को 33 फीसदी आरक्षण की कवायद के पहले से ही राज्यों में महिला केंद्रित योजनाएं लाने की होड़ लगी हुई है। पिछले एक साल में ही 6 राज्यों में महिलाओं के लिए 70 हजार करोड़ की विशेष योजनाएं लागू की जा चुकी हैं।
सियासी दरबार में महिलाओं की मौजूदगी भले कम हो लेकिन सरकारी योजनाओं में उन पर फोकस तेजी से बढ़ रहा है।
केंद्र ने जेंडर गैप कम करने के लिए बनाए गए ‘जेंडर बजट’ में पिछले साल के मुकाबले 30 प्रतिशत का इजाफा किया है। यही नहीं, जिन स्कीमों में 100 फीसदी आवंटन महिलाओं के लिए है, उनके लिए 88 हजार करोड़ रु. रखे गए हैं, जो 228 फीसदी ज्यादा हैं।
महिला वोटर की हिस्सेदारी : इंटर-पार्लियामेंट्री यूनियन की रिपोर्ट बताती है कि 3 दशक में विधानसभा चुनावों में महिला वोटर की हिस्सेदारी 44.3 प्रतिशत से बढ़कर 48.2 प्रतिशत हो गई है। इस दौरान महिला प्रत्याशियों की संख्या 3 गुना बढ़कर 9.5 फीसदी हो गई।
सक्रियता: सियासी रैलियों और जुलूस में 23 साल में भारी वृद्धि हुई है। 1996 से 2019 तक रैलियों और जुलूस में महिलाओं की हिस्सेदारी 250 प्रतिशत तक बढ़ी। 1996 में 7 फीसदी महिलाएं ही आती थीं। 2019 में आंकड़ा 18 प्रतिशत हो गया।
राजस्थान : 1.3 करोड़ महिलाओं को स्मार्टफोन, 3 साल डेटा फ्री। कुल 1200 करोड़ का बजट।
मप्र : हाल ही में लाडली बहना और उज्ज्वला योजना शुरू हुई। बजट 19,650 करोड़ रुपए
तमिलनाडु : 1.63 करोड़ महिलाओं को हर माह 1-1 हजार रु। कुल 7,698 करोड़ रुपए की योजना।
तेलंगाना : गर्भवती के लिए पोषक किट योजना। कुल 1,176 करोड़ रुपए खर्च होंगे।
कर्नाटक : 1.28 करोड़ महिलाओं को हर महीने 2000 रु.। 35,600 करोड़ रुपए की योजनाएं।
केरल : जेंडर बजट बढ़कर 20.6फीसदी हुआ। इस साल 4670 करोड़ रुपए आवंटित।