ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। पूरी दुनिया की तरह भारत में भी जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ते जा रहे हैं। देश के करीब 84 फीसदी जिले चरम हीटवेव की जद में हैं। साथ ही 70 फीसदी जिलों में मानसून के दौरान चरम वर्षा वाली घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता भी बढ़ रही है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मेघालय और मणिपुर चरम ताप और चरम वर्षा की दोहरी मार झेल रहे हैं। 2036 तक हर 10 में से 8 भारतीय चरम मौसमी घटनाओं के भुक्तभोगी होंगे। आईपीई ग्लोबल और ईएसआरआई इंडिया की संयुक्त रिपोर्ट ‘मैनेजिंग मानसून्स इन ए वार्मिंग क्लाइमेट’ में इसका खुलासा किया गया है।
तीन दशक की रिपोर्ट
रिपोर्ट को 1993 से 2022 तक के देश के अलग-अलग रीजन में तापमान और वर्षा आंकड़ों के आधार पर तैयार किया गया है। आईपीई ग्लोबल लि. एक अंतरराष्ट्रीय विकास परामर्श समूह है जो विकासशील देशों को सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने में मदद करने के लिए विशेषज्ञ तकनीकी सहायता और समाधान प्रदान करता है। रिपोर्ट के अनुसार इन दशकों में चरमस्थिति वाले ताप, वर्षा की आवृत्ति, तीव्रता और अनिश्चितता में बढ़ोतरी हुई है।
चरम हीटवेव वाले दिनों में 15 गुना की वृद्धि हुई
भारत में इन तीन दशकों (1993- 2022) में मार्च से लेकर सितंबर यानी लगातार सात महीने तक हर वर्ष चरम हीटवेव वाले दिनों में 15 गुना की वृद्धि हुई है। वहीं बीते एक दशक में एक्स्ट्रीम हीटवेव दिनों में 19 गुना की वृद्धि हुई है। अगर यही स्थिति बरकरार रही तो भविष्य में चरम घटनाओं में न सिर्फ इजाफा होगा बल्कि इससे प्रभावितों की संख्या भी बढ़ जाएगी।
तापमान में वृद्धि का कारण विनाशकारी वर्षा और अत्यधिक गर्मी
शोधकर्ता अविनाश मोहंती का कहना है कि विनाशकारी वर्षा और अत्यधिक गर्मी की घटनाओं का वर्तमान रुझान पिछली शताब्दी में 0.6 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि का परिणाम है। हाल ही में केरल में अनियमित वर्षा की घटनाओं से भूस्खलन और अचानक भारी बारिश से हुई तबाही प्रमाण है कि जलवायु बदल गई है। 2036 तक हर 10 में से 8 भारतीय चरम घटनाओं से प्रभावित होंगे। ईएसआरआई इंडिया के प्रबंध निदेशक कहते हैं कि तीव्र वर्षा के साथ हीटवेव की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता के कारण जीवन, आजीविका और बुनियादी ढांचे पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ रहा है।