ब्लिट्ज ब्यूरो
श्रीनगर। राजनीति में आए खालीपन का छह वर्षों का इंतजार खत्म हुआ। जम्मू-कश्मीर लोकतंत्र का उत्सव मनाने के लिए तैयार हो चुका है। चुनाव आयोग ने तीन चरणों में विधानसभा चुनाव की घोषणा कर बता दिया कि जम्मू-कश्मीर अब बदल चुका है। इससे पहले सुरक्षा कारणों से पांच से छह चरणों में चुनाव होते रहे हैं।
सात अक्टूबर तक केंद्र शासित जम्मू- कश्मीर में पहली निर्वाचित सरकार सत्ता संभाल लेगी और पहली बार अपनी विधानसभा भी होगी। इस बार विधानसभा चुनाव में राज्य का दर्जा और आतंकवाद का समूल नाश बड़ा मुद्दा होगा। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाने को लेकर केंद्र सरकार की मंशा पर लगातार सवाल उठा रहे कश्मीर केंद्रित राजनीति दल भी घोषणा के बाद अब अपनी तैयारी व रणनीति बनाने में जुट गए हैं।
वहीं, लोकसभा चुनाव में रिकार्ड मतदान कर पहले ही लोकतंत्र में अपनी पूर्ण आस्था जता चुका जम्मू-कश्मीर का आम मतदाता बेहद उत्साहित है। वर्ष 2014 के बाद जम्मू कश्मीर में हो रहे विधानसभा चुनाव में न सिर्फ निर्वाचन क्षेत्रों का भूगोल बदला है बल्कि राजनीतिक-सामाजिक समीकरण भी बदल चुके हैं। अनुच्छेद-370 हटने के बाद अस्तित्व में आए केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में यह पहला विधानसभा चुनाव होगा।
इससे पहले 2014 में जब अंतिम बार विधानसभा चुनाव हुआ था तो जम्मू-कश्मीर राज्य था और लद्दाख भी इसका भाग था। तब पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार बनी थी, जो जून 2018 में भंग हो गई। इसके बाद से जम्मू- कश्मीर में कोई निर्वाचित सरकार नहीं रही।
दो पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला व महबूबा मुप्ती नहीं लड़ेंगे चुनाव
इस विधानसभा चुनाव में चर्चित चेहरों के बजाय नए चेहरे होंगे। नेकां उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले ही इन्कार कर रखा है। अलबत्ता, दोनों अपने दलों के चुनाव प्रचार की कमान संभालेंगे। महबूबा की बेटी इल्तिजा मुफ्ती चुनाव में अपनी राजनीतिक पारी शुरू कर सकती हैं।
नेकां और पीडीपी मिलकर उठाएंगे ये मुद्दे
इस विधानसभा चुनाव में नेशनल कान्फ्रेंस, पीडीपी, भाजपा, कांग्रेस समेत लगभग सभी दलों के मुद्दे पिछले चुनाव से अलग होंगे। नेकां ग्रेटर आटोनामी, पीडीपी सेल्फ रूल जैसा मुद्दा नहीं उठाएगी। दोनों दल पांच अगस्त, 2019 से पहले की संवैधानिक स्थिति की बहाली, नौकरियों पर यहां के लोगों का पहला हक और सुरक्षा को एजेंडा बनाने की तैयारी में हैं।
भाजपा व कांग्रेस इन मुद्दों पर लड़ेगी चुनाव
जम्मू-कश्मीर में इस बार का विधानसभा चुनाव भाजपा-कांग्रेस के लिए चुनौती भरा होगा। भाजपा एक ईमानदार और कर्मठ सरकार के नारे के साथ आगे बढ़ेगी। कांग्रेस भी जम्मू-कश्मीर के हितों की रक्षा का दावा करेगी। इस चुनाव में पूर्ण राज्य के दर्जे का मुद्दा सभी राजनीतिक दलों के एजेंडे में होगा। आतंकवाद के समूल नाश की गूंज भी सुनाई देगी।
ये होगा पहली बार
– वाल्मीकि, गोरखा समाज, पाकिस्तान से आए विस्थापित पहली बार कर सकेंगे मतदान
– अन्य राज्यों के वे लोग भी वोट डाल सकेंगे जिनके पास प्रदेश का अधिवास पत्र व मतदान का अधिकार है, इसका असर परिणामों पर होगा
– गुज्जर-बक्करवाल और पहाड़ी जनजातीय समुदाय (अनुसूचित जनजाति) के लिए नौ सीटें आरक्षित हैं। हर दल इन्हें साधने की कोशिश में।
– अनुसूचित जाति के लिए भी सात सीट हैं आरक्षित • नामांकन कोटे से विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं के लिए दो सीट
– गुलाम जम्मू-कश्मीर के विस्थापितों के लिए एक और महिला सदस्यों के लिए दो सीट आरक्षित हैं।