नया साल यानी 2023 अब आ ही गया है। नए साल से सभी को जीवन में नई उम्मीदें बंधती हैं। फिर चाहे वह देश हो या देश के नागरिक। यदि कोई देश तरक्की करता है तो उसके देश के नागरिक भी विकास की नई-नई ऊंचाइयां छूते हैं। अब बात जब भारत की आती है तो हम सभी के लिए कुछ खास हो जाती है। आज सिर्फ भारतवासी ही नहीं बल्कि दुनिया भी नरेंद्र मोदी सरकार की ओर निहार रही है। वैश्विक स्तर पर भारत ने जिस तरह से अपनी अहमियत को स्थापित किया है, पूरी दुनिया उसकी कायल होती जा रही है। कहीं न कहीं समूचा विश्व आज दो धड़ों में बंटता नजर आ रहा है।
एकतरफ पश्चिमी, यूरोपीय देश व भारत हैं जो विकास की बात करते हैं। आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, खाद्य संकट, गरीबी और बरोजगारी जैसी समस्याओं के समाधान तलाश रहे हैं तो दूसरी ओर चीन और उसके तथाकथित समर्थक देश हैं जो कहीं न कहीं इन प्रयासों में अड़चनें पैदा कर रहे हैं।
चीन के प्रति पश्चिमी देशों में बढ़ते विरोध के साथ इन दिनों भारत के आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरने को लेकर भी देश के अंदर और वैश्विक मीडिया के एक हिस्से में भी खासा शोर सुनाई पड़ रहा है। अमेरिका की प्रभावशाली पत्रिका फॉरेन अफेयर्स में कहा गया है कि भारत के आर्थिक शक्ति के रूप में उदय की संभावनाएं वास्तविक हैं। सरकार ने उद्यम को बढ़ाने के लिए जो नीतियां घोषित की हैं उन्हें और बेहतर करने की दिशा में सरकार को कदम बढ़ाने होंगे। मसलन, भारत सरकार ने परफॉर्मेंस रिलेटेड इन्सेंटिव्स तो शुरू किया है पर उत्पादन के लिए जरूरी इनपुट के आयात की स्थितियों को और अनुकूल बनाना होगा ताकि भारत में प्राइवेट निवेश का स्तर लगातार ऊंचा बना रहे।
इस बीच दुनिया में डी-डॉलराइजेशन (बिना अमेरिकी डॉलर का इस्तेमाल किए अंतरराष्ट्रीय कारोबार को संपन्न करना) की आगे बढ़ रही प्रक्रिया के बीच यह खबर उत्साहवर्धक है कि अनेक देश अब भारतीय रुपये में भुगतान में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। बताया जाता है कि दुनिया के कई देशों ने इस संबंध में भारत से संपर्क किया है। उनमें ताजिकिस्तान, क्यूबा, लग्जमबर्ग और सूडान आदि शामिल हैं। इन देशों ने भारत से यह जानने के लिए बातचीत शुरू की है कि वह डॉलर या दूसरी बड़ी मुद्राओं को छोड़ भारतीय मुद्रा में अंतरराष्ट्रीय लेनदेन कैसे कर रहा है। जब यूक्रेन युद्ध शुरू होने पर रूस पर वित्तीय प्रतिबंध लगे थे, तब रूस और भारत ने इस प्रक्रिया से ही कारोबार शुरू किया था। भारतीय रिजर्व बैंक ने जुलाई में यह प्रक्रिया शुरू की थी। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बताया है कि अब भारत सरकार ऐसे देशों को भी इस प्रक्रिया के तहत लाने की कोशिश कर रही है, जिनके पास डॉलर यानी अमेरिकी मुद्रा की कमी है। उनमें से कम से कम चार देशों ने भारत में रुपये में भुगतान स्वीकार करने के लिए खाता खोलने में दिलचस्पी दिखाई है।
इन खातों को वोस्तरो अकाउंट कहा जाता है। मॉरीशस और श्रीलंका ने भी इस प्रक्रिया में दिलचस्पी दिखाई है। उनके वोस्तरो खातों को तो रिजर्व बैंक ने मंजूरी भी दे दी है। दस्तावेजों के मुताबिक भारतीय रिजर्व बैंक ने 12 वोस्तरो खाते मंजूर किए हैं, जो रूस के साथ रुपये में कारोबार के लिए खोले गए हैं। छह अन्य खाते श्रीलंका और मॉरीशस के लिए हैं। इनमें से श्रीलंका के लिए पांच खाते हैं। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद जिस तरह अमेरिका ने वहां के बैंकों में रखी रूस की विदेशी मुद्रा और सोने को जब्त किया, उससे दुनिया भर के देशों में अमेरिकी मुद्रा और अमेरिकी नेतृत्व वाली भुगतान व्यवस्था को लेकर भरोसा कमजोर पड़ा है। इस वजह से डॉलर में भुगतान घटाने की कोशिश में अनेक देश जुटे हुए हैं। चीन और रूस ने इसमें काफी बढ़त ले ली है। मगर भारत भी इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस दिशा में भारत को बेहिचक आगे बढ़ना चाहिए। इससे भारत के आर्थिक परिदृश्य में उल्लेखनीय परिवर्तन आएगा।
इसके अतिरिक्त भारत जी20 देशों की अध्यक्षता भी हासिल कर चुका है। इसके जरिए वह विश्व के एक बड़े भाग पर अपनी अमिट छाप छोड़ने में सफल हो सकता है। उसके पास विकासशील देशों की आवाज बनने का भी सुनहरा अवसर है। जी7 देशों के गुट में भी भारत के समावेश की संभावनाएं बन रही हैं और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट का भारत प्रबल दावेदार है।
संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत ने एक बार फिर सुरक्षा परिषद में सुधार का मुद्दा जोरशोर से उठाया है। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जोर देकर कहा है कि हर गुजरते साल के साथ संयुक्त राष्ट्र में सुधार की जरूरत बढ़ती जा रही है। भारत वर्तमान समय में सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है और उसका 2 साल का कार्यकाल इसी महीने समाप्त होने जा रहा है। भारतीय विदेश मंत्री का यह बयान ऐसे समय पर आया है जब अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस समेत कई बड़े देशों ने भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने का समर्थन किया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत, जापान, जर्मनी समेत दुनिया के कई बड़े देशों को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता नहीं मिलने के पीछे चीन समेत कई पेंच फंसे हुए हैं। भारत की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की दावेदारी का रूस, फ्रांस, ब्रिटेन ने तो खुलकर समर्थन किया है। कुल मिला कर ‘वसुधैव कुटुंबकम ्’ के मंत्र में विश्वास रखने वाले भारत के पास वर्तमान में वैश्विक समर्थन का आज मजबूत आधार है और इसमें कोई संदेह नहीं कि साल 2023 और आने वाला समय भारत का है और पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत नई ऊंचाइयों को छूएगा।