डॉ. सीमा द्विवेदी
नई दिल्ली। आधुनिक विश्व में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण जल, जमीन और हवा में इस कदर व्याप्त हो गए हैं कि इनसे किसी भी प्राणी का अछूता रहना लगभग असंभव हो गया है। विज्ञान पत्रिका यूरोप एक्वाकल्चर में छपे ताजा शोध पत्र के अनुसार हम जिस टी बैग को गर्म पानी में डालकर चाय बनाते हैं, उसके माध्यम से भी ऐसे कण शरीर के भीतर रक्त में घुल रहे हैं।
शोध पत्र के लेखक और पद्मश्री से सम्मानित भारतीय वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर ने कहा, हमारी कल्पना के परे अनेक माध्यमों से माइक्रॉन व नैनो आकार के प्लास्टिक के कण हमारे खून में निरंतर पहुंच रहे हैं। उन्होंने बताया कि प्लास्टिक एक अप्राकृतिक पदार्थ है, जिसका एक सामान्य गुण होता है कि समय बीतने के साथ वह अपना लचीलापन खो देता है और भंगुर होकर टूटता है। इन कणों की भंगुर होने की प्रक्रिया धूप और संक्षारक (कोरोसिव) वातावरण में तेज हो जाती है, तो इसके माइक्रॉन नैनो पार्टिकल में बदलकर पूरे वातावरण में फैल जाते हैं और बरसात के पानी के साथ हर जल स्रोत (नदी पोखर, सिंचाई के पानी में पहुंचते हैं।
वहां से ये कण वाष्पीकरण के बाद बादलों तक पहुंच जाते हैं और फिर बादलों के माध्यम से उन स्थानों तक भी पहुंच जाते हैं, जिन्हें अछूता क्षेत्र (पहाड़- ग्लेशियर) समझा जाता रहा है। यानी यह हमारी भोजन श्रृंखला में शामिल हो गया है। ये प्लास्टिक कण शरीर में जाकर तमाम जैविक क्रियाओं को बाधित कर मनुष्य के लिवर, गुर्दे सहित तमाम अंगों को नष्ट कर रहे हैं।
डॉ. अजय कुमार सोनकर ने बताया, एक टी बैग को गर्म पानी में घोलने के बाद उस चाय की एक बूंद का जब माइक्रोस्कोप में विश्लेषण किया, तो यह बात सामने आई कि अनगिनत संख्या में माइक्रॉन साइज के प्लास्टिक के कण उस एक बूंद चाय में मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि चाय के माध्यम से ये सूक्ष्म कण मनुष्य के खून में पहुंच जाते हैं। यह हमारे खून में प्लास्टिक के कण भेजने वाला अकेला माध्यम नहीं है। विभिन्न माध्यम से ये कण मनुष्य के रक्त में पहुंच रहे हैं।
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शोध पत्र के लेखक ने कहा, जो लोग सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रतिबंधित होने से खुश हो रहे हैं, उन्हें प्लास्टिक की भयावहता के बारे में पता ही नहीं है। समस्या इतनी विकट है कि यह सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध से खत्म नहीं हो सकती। एक वैज्ञानिक अध्ययन का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि एक सामान्य व्यक्ति करीब पांच ग्राम प्लास्टिक के कण हर सप्ताह अपने शरीर में पहुंचा रहा है।