दीपक द्विवेदी
देश और दुनिया ने पिछले कुछ दशकों में अप्रत्याशित आपदाओं को झेला है। कहीं ग्लेशियर पिघल रहे हैं तो कहीं नदियां सूख रही हैं। कहीं अनायास मौसम बदल रहा है तो कभी प्राकृतिक आपदाएं लोगों के लिए मुसीबत बन रही हैं। देश की राजधानी दिल्ली में तो प्रदूषण की भयावहता स्कूलों में छुट्टी तक करा देती है। ऐसे में प्रदूषण या पर्यावरण के विषय को केवल नीति निर्माण के स्तर पर नहीं छोड़ा जा सकता। पर्यावरण की रक्षा के लिए भारत न सिर्फ देश में बहुआयामी प्रयास कर रहा है बल्कि भविष्य के लिए हरित विकास जैसे मुद्दों पर वैश्विक जनचेतना भी जागृत कर रहा है।
पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत तब भी यह काम कर रहा है जबकि जलवायु परिवर्तन में भारत की भूमिका न के बराबर है। दुनिया के बड़े आधुनिक देश न केवल पृथ्वी के अधिक से अधिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं वरन अधिकतम कार्बन उत्सर्जन उनके खाते में ही जाता है। भारत में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष करीब 0.5 टन की तुलना में दुनिया का औसत कार्बन फुटप्रिंट लगभग 4 टन प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष है। इसके बावजूद भारत पर्यावरण की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय और आपदा रोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन, अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसे स्थापित संगठन के सहयोग से दीर्घकालिक नतीजों पर ध्यान केंद्रित कर के काम कर रहा है।
यही नहीं; भारत की अध्यक्षता में जी-20 देशों की बैठक के दौरान भी जलवायु परिवर्तन सहित पर्यावरण के संकटों और चुनौतियों से निपटने के लिए कार्यों में तत्काल तेजी लाने का निर्णय भी लिया गया। वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्यों की पुष्टि करते हुए सतत, सक्षम, संतुलित और समावेशी विकास के मॉडल को अपनाने का आह्वान किया गया। मिशन ‘लाइफ’ यानी पर्यावरण के लिए जीवन शैली के मंत्र को भी अपनाने का लक्ष्य तय किया गया।
इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत सरकार द्वारा देश में प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य किया जा रहा है पर अभी भी बहुत कुछ काम किया जाना बाकी है। सिर्फ सरकार के प्रयासों से हमें इस समस्या से निजात नहीं मिलने वाली। प्रदूषण की समस्या से निजात पाने के लिए आम नागरिक को भी समझदार एवं संवेदनशील होना पड़ेगा।
हम सभी भारतवासी एक साथ मिल कर ‘विकसित भारत’के साथ-साथ एक ‘प्रदूषण मुक्त भारत’ का लक्ष्य भी पाने में कामयाब होंगे।
वैसे बात अगर प्रदूषण पर हो और दिल्ली का नाम न आए; ऐसा फिलहाल तो मुमकिन होता नजर नहीं आ रहा है। हाल ही में दुनियाभर के प्रदूषण पर आई ताजा रिपोर्ट में दिल्ली को सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाली राजधानी बताया गया है। उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि वायु प्रदूषण में 38 फीसदी के लगभग योगदान पराली जलाने का है। इस समस्या से निपटने के लिए यद्यपि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के मुख्य सचिव, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के अध्यक्ष और केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालयों के सचिव समय-समय पर बैठकें करते रहते हैं पर इस समस्या का फिलहाल कोई स्थायी हल निकलता नहीं दिखाई दे रहा जबकि सरकार द्वारा फसल काटने के बाद बचे अवशेष यानी कि पराली के निपटारे के लिए मशीनें भी उपलब्ध कराई गई हैं किंतु किसान अभी तक इतने जागरूक नहीं हो पाए हैं कि पराली जलाना छोड़ दें। सीएक्यूएम द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों और राज्य सरकारों द्वारा उपलब्ध कराए गए इनपुट के आधार पर यह सामने आया है कि दिल्ली-एनसीआर में अक्सर प्रदूषण संकट की स्थिति मुख्य रूप से पराली जलाने के कारण आती है। गत वर्ष 15 सितंबर से 7 नवंबर तक पराली जलाने की 22,644 घटनाएं दर्ज की गईं ंजिनमें 20,978 (93 फीसदी) पंजाब में और 1605 (7 फीसदी) घटनाएं हरियाणा में हुईं।
हालांकि अगर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर की बात करें तो इसमें बिहार का बेगुसराय भी शामिल है। फिलहाल यह गंभीर चिंता का विषय है कि स्विस संगठन आईक्यूएयर द्वारा विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2023 के अनुसार औसत सालाना पीएम 2.5 सांद्रता के आधार पर भारत 2023 में 134 देशों में तीसरे नंबर पर आया है जबकि बांग्लादेश पहले और पाकिस्तान दूसरे नंबर पर हैं। 2022 में भारत औसत पीएम 2.5 सांद्रता 53.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के साथ आठवें सबसे प्रदूषित देश के रूप में सामने आया था। इससे यही पता चलता है कि देश में प्रदूषण और बढ़ गया है।
वैसे अगर देखा जाए तो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार सभी प्रकार के प्रदूषण को समाप्त करने के लिए युद्धस्तर पर कार्य कर रही है और प्रभावी योजनाएं भी बना रही है। राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन के माध्यम से भारत एक पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा स्रोत की ओर अग्रसर हो चुका है। इससे भारत और दुनिया के कई देशों को प्रदूषण में नेट जीरो के अपने लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी। भारत इस बात का एक प्रमुख उदाहरण बन चुका है कि कैसे प्रगति और प्रकृति साथ-साथ चल सकती है। मिशन ‘लाइफ’ के जरिए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने की पहल हो या फिर पंचामृत से दुनिया को समाधान की राह दिखाना, भारत ने सदैव उदाहरण पेश किया है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत नए कीर्तिमान बना रहा है तो उसकी वजह है निरंतरता के साथ सुधारात्मक प्रयास। 2014 में भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 20 गीगावाट थी, तब प्रधानमंत्री मोदी ने तय किया कि 2022 तक इसे 100 गीगावाट तक पहुंचाएंगे पर इस तय समय से पहले ही इस लक्ष्य को हासिल कर, नए बड़े लक्ष्य रखकर भारत ने दुनिया को नई राह दिखाई है।
भारत ने ही 2015 में इंटरनेशनल सोलर एलांयस (आईएसए) की नींव रख दुनिया को एक नया रोडमैप दिया। हमने अनेक क्षेत्रों में नए-नए कीर्तिमान हासिल किए हैं; इसलिए हमें यह विश्वास रखना चाहिए कि हम सभी भारतवासी एक साथ मिल कर ‘विकसित भारत’ के साथ-साथ एक ‘प्रदूषण मुक्त भारत’का लक्ष्य भी पाने में कामयाब होंगे।