डॉ. सीमा द्विवेदी
नई दिल्ली। वायु प्रदूषण बच्चों को दिमागी तौर पर कमजोर बना रहा है। उनकी बौद्धिक क्षमता पर असर पड़ रहा है और एकाग्रता प्रभावित हो रही है। बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ से जुड़े शोधकर्ताओं के अध्ययन से पता चला है कि जीवन के शुरुआती दो वर्षों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) का संपर्क बच्चों में ध्यान लगाने की क्षमता को प्रभावित करता है। एनओ 2 प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो परिवहन यानी कारों और ट्रकों से होने वाले प्रदूषण से आता है। अध्ययन के नतीजे जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित हुए हैं।
1,703 महिलाओं और बच्चों से जुटाई जानकारी
अध्ययन स्पेन के चार क्षेत्रों में 1,703 महिलाओं और उनके बच्चों के बारे में प्राप्त जानकारी पर आधारित है। शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि ये बच्चे कितनी एनओ 2 के संपर्क में कितने समय तक रहे और उसका उनके जीवन पर कितना असर देखने को मिला
लड़कों पर ज्यादा असर
शोधकर्ताओं के अनुसार, एनओ 2 के संपर्क में आए बच्चों के लिए आगे चलकर चार से आठ वर्ष की आयु में ध्यान लगाना कठिन हो सकता है।
यह प्रभाव लड़कों पर अधिक पड़ता है। शोधकर्ताओं का कहना है, चूंकि लड़कों का मस्तिष्क धीरे-धीरे परिपक्व होता है इसलिए वे उन्हें प्रदूषण के प्रति कहीं ज्यादा असुरक्षित बनाता है। एक अन्य अध्ययन में बताया गया है कि प्रदूषित हवा से सोचने-समझने में दिक्क तें आने लगती हैं।
वैश्विक स्तर पर बड़ी समस्या
वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण आज बड़ी समस्या बन चुका है। इसकी पुष्टि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से जारी आंकड़े भी करते हैं। दुनिया की 99 फीसदी आबादी ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर है, जहां वायु प्रदूषण का स्तर डब्ल्यूएचओ के तय मानकों से कहीं ज्यादा है।
भारत में स्थिति ज्यादा गंभीर
भारत जैसे देशों में तो यह समस्या ज्यादा गंभीर रूप धारण कर चुकी है। देश की अधिकतर आबादी ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर है जो सुरक्षित नहीं कही जा सकती। आंकड़ों के मुताबिक देश की 67 फीसदी से अधिक आबादी ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर है, जहां प्रदूषण का स्तर भारत के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक (40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से ज्यादा है।