ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। अर्बन हीट की समस्या से मुंबई भी अछूती नहीं है। मौसम विभाग के निदेशक ने भी माना है कि पिछले 3 दशक में शहर में तापमान में वृद्धि होने और कंक्रीटीकरण बढ़ने से हीट पहले की तुलना में अधिक समय तक ट्रैप हो कर रह जाती है, जिससे गर्मी का एहसास अधिक होता है। शहर के पर्यावरणविदों के अनुसार इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ग्रीन कवर का कम होना है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि इमारतों के निर्माण कार्य करने वाले नियमों को ताक पर रख दे रहे हैं।
एक आयोजन के दौरान क्षेत्रीय मौसम विभाग के निदेशक सुनील कांबले से जब पूछा गया कि मुंबई में हीट वेव क्यों आ रही है, तो उन्होंने कंक्रीटीकरण को सबसे बड़ा कारक बताया। उन्होंने कहा कि शहर में बड़ी-बड़ी इमारत सहित अन्य निर्माण कार्यों के चलते हीट ट्रैप हो कर रह जाती है। उदाहरण के तौर पर यदि दोपहर के एक बजे मुंबई का तापमान 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, तो हीट ट्रैप होने के कारण वह काफी लंबे समय तक कंक्रीट की सतह और स्ट्रक्चर में रह जाती है। इससे आपको केवल एक 1 बजे ही नहीं, बल्कि लंबे समय तक गर्मी लगती है, क्योंकि हीट रिलीज होने में काफी समय लग जाता है। स्थिति अनुसार हमें एडॉप्ट होना होगा।
प्रशासन को घेरा
अर्बन हीट के मुद्दे पर पर्यावरणविदों ने प्रशासन को जमकर घेरा है। उन्होंने कहा है कि विकास कार्यों के समय पर्यावरण को ध्यान में रखकर काम नहीं करना, पेड़ों की कटाई, अंडरग्राउंड वाटर लेवल का कम होना आदि के चलते हीट का सामना करना पड़ रहा है। पर्यावरणविद डी स्टालिन ने बताया कि मुंबई यदि अर्बन हीट से जूझ रहा है, तो इसका कहीं न कहीं जिम्मेदार प्रशासन भी है। विकास करते समय पर्यावरण को ध्यान में नहीं रखकर काम नहीं किया जाता है। करोड़ों रुपए खर्च कर देते हैं, लेकिन बात जब पर्यावरण की आती है, तो उसे प्राथमिकता नहीं दी जाती । मौजूदा पेड़ों की संख्या भी कम हो रही है। जो हैं, उनकी भी छंटाई कर दी जाती है, तो छांव होगी कहां से।
‘प्लानिंग में कमी’
पर्यावरणविद डी स्टालिन ने बताया कि बिल्डिंग के प्लान में भी विंड फ्लो का कॉन्सेप्ट नहीं है। छोटी से छोटी जगह पर स्ट्रक्चर तैयार कर दिया जाता है। पहले रास्ते बनते थे फिर इमारत तैयार होती थी, लेकिन अब पहले इमारत बनती है और फिर रास्ते तैयार होते हैं। यह दर्शाता है कि प्लानिंग में ही कमी है। पेड़ों को लगाया जाता है, लेकिन उनका फॉलोअप कोई नहीं लेता। पेड़ जिंदा हैं या सूख गए, कोई नहीं देखता । विकास के समय पेड़ लगाने की शर्त होती है, लेकिन यदि यह शर्त पूरी नहीं होती, तो 2000 रुपये का जुर्माना होता है। निर्माणकर्ता मामूली सा फाइन भरकर साइड हो जाता है। सरकार और बीएमसी को पर्यावरण को लेकर गंभीरता से सोच विचार करने की आवश्कता है।
तीन प्रमुख कारण ओपन स्पेस कहां?
पर्यावरणविद जोरू बथेना ने बताया कि किसी इमारत का जब निर्माण होता है, तो नियमानुसार एक ओपन स्पेस छोड़ना (आरजी) अनिवार्य होता है, लेकिन वास्तव में इसका पालन बहुत ही कम लोग करते हैं।
पेड़ों की कमी
इसी के साथ प्लॉट पर कुछ संख्या में वृक्षारोपण भी करना होता है, लेकिन इस नियम का पालन नहीं किया जाता है। इससे साबित होता है कि कंस्ट्रक्शन समस्या नहीं है, नियम का पालन न होना समस्या है। पेड़ भी जो मिट्टी के ग्राउंड में लगाए जाएं वहीं मददगार साबित होंगे, कंक्रीट पर नहीं। सड़कों के दोनों तरफ 10 से 20 मीटर के अंतर पर पेड़ होने चाहिए। इमारत दस मंजिला हो या 50 मंजिला, ये मुद्दे की बात नहीं। मुद्दे की बात यह है कि पेड़ कितने थे, जो हीट को रोकते हैं।
ग्राउंड वाटर लेवल कम होना
जमीन के अंदर मौजूद पानी सतह को ठंडा रखने का कार्य करता है, लेकिन आजकल अंडरग्राउंड कंस्ट्रक्शन हो रहे हैं। जब प्लॉट में ग्राउंड वॉटर रहेगा ही नहीं तो नैसर्गिक रूप से कूलिंग कैसे होगी।
यूं ही 3 दशकों में तेजी से नहीं बढ़ा मुंबई का तापमान