ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। दिल्ली सरकार और नगर निगम स्कूलों की बदहाल स्थिति को लेकर हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में सुनवाई के दौरान एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। निगम की ओर से दाखिल हलफनामे में नौ महीने में करीब सवा लाख छात्रों की संख्या कम हुई है। इस पर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए दो सप्ताह में निगम को नए सिरे हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिससे कि इसके कारणों के बारे में पता चल सके।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ के समक्ष दिल्ली नगर निगम ने एक जुलाई को हलफनामा दाखिल किया था। इसमें बताया गया कि वर्तमान में निगम स्कूलों में 6,50,951 छात्र पढ़ रहे हैं, जबकि सितंबर 2023 में पीठ के सामने पेश हलफनामे में बताया गया था कि निगम स्कूलों में 7,88,224 छात्र पढ़ रहे हैं। पीठ ने हलफनामे पर गौर करते हुए निगम अधिकारी से मौखिक तौर पर सवाल किया कि महज नौ माह में इतने छात्र कम कैसे हो गए। इस पर निगम के पास कोई स्पष्ट जवाब नहीं था। निगम अधिकारी ने पीठ को कहा कि नए सत्र में छात्रों की संख्या फिर बढ़ जाएगी। इस पर पीठ ने कहा कि नया सत्र तो अप्रैल 2024 से शुरू हो चुका है। वैसे भी यहां बात 17.41 प्रतिशत कम हुए छात्रों की हो रही है।
– निगम को दो सप्ताह में नए सिरे से हलफनामा दाखिल करने के निर्देश
बैंक खाता न खुलने से काटे गए नाम
याचिकाकर्ता अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि उन्हें आशंका है कि अपनी खामी को छुपाने के लिए निगम ने उन छात्रों के नाम स्कूल से काट दिए हैं, जिनका बैंक खाता खुलने में मुश्किल आ रही थी। निगम ने अपने आप को बचाने के लिए शिक्षा के अधिकार कानून का उल्लंघन किया है। अग्रवाल ने हाईकोर्ट से आग्रह किया है कि पहले भी निगम की तरफ से इस तरह के कृत्य को अंजाम दिया गया है, जिसको वह पीठ के समक्ष रख चुके हैं।
ये है मामला
मामला दिल्ली सरकार और निगम स्कूलों की बदहाल स्थिति को लेकर दायर जनहित याचिका का है। जनहित याचिका सोशल ज्यूरिस्ट, ए सिविल राइट ग्रुप की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक अग्रवाल द्वारा हाईकोर्ट में दायर की गई है।
याचिका में स्कूलों में खराब डेस्क, किताबों का समय से वितरण न होने, एक कक्षा में सैंकड़ों की संख्या में बच्चों को बैठने के लिए मजबूर होने सहित अन्य समस्याओं का उल्लेख किया गया है।