विनोद शील
नई दिल्ली। मानसून सत्र के आखिरी दिन लोकसभा में क्रिमिनल लॉ को बदलने वाला विधेयक पेश कर दिया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के इस क्रांतिकारी और ऐतिहासिक कदम से देश को अपना ‘न्यायतंत्र’ मिलेगा यानि कि न्याय व्यवस्था का भारतीयकरण तो होगा ही लोगों को वर्षों तक अदालतों के चक्क र लगाने और फिरंगी कानूनों से भी मुक्ति मिलेगी।
तीन महत्वपूर्ण कानूनों को खत्म कर उनकी जगह जो तीन नए कानून पेश किए गए हैं, उनसे अब देश अंग्रेजों के बनाए कानूनों की जगह अपने बनाए कानूनों से चलेगा। 11 अगस्त को इन्हें लोकसभा में पेश किया गया था। गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में तीनों कानूनों को पेश करते हुए कहा था कि गुलामी की सभी निशानियों को समाप्त करने की दिशा में उठाया गया कदम है यह। अब तक जो कानून है उसमें दंड दिए जाने की अवधारणा है जबकि नए कानून में देश के लोगों के लिए न्याय देने का प्रावधान किया गया है जो अब तक का सबसे प्रभावी कदम है। नई व्यवस्था में लोगों को समयबद्ध न्याय की व्यवस्था की गई है। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने 11 नवंबर को ‘भारतीय न्याय संहिता, 2023’ पर 246वीं रिपोर्ट, ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023’ पर 247वीं रिपोर्ट और ‘भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023’ पर 248वीं रिपोर्ट के प्रसार और प्रकाशन का निर्देश दिया।
राज्यसभा सदस्य और गृह मामलों पर विभाग से जुड़ी संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष बृजलाल ने 10 नवंबर को ये रिपोर्ट सौंपी थी। उल्लेखनीय है कि संसद का शीतकालीन सत्र 4 दिसंबर 2023 से शुरू होगा और 22 दिसंबर तक चलेगा। इस सत्र में 19 दिनों में 15 बैठकें होनी है। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। प्रह्लाद जोशी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘अमृत काल के बीच मैं सत्र के दौरान विधायी कामकाज और अन्य विषयों पर चर्चा का इंतजार कर रहा हूं।’
ए क्स पर ही भारत के उप राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने तीन रिपोर्ट्स के प्रसार और प्रकाशन के निर्देश के बारे में जानकारी दी थी। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023, भारतीय न्याय संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 को 11 अगस्त को संसद के निचले सदन में पेश किया गया था। ये विधेयक भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 1860, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को प्रतिस्थापित करना चाहते हैं।
विधेयकों को पेश करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, ब्रिटिश काल के कानून उनके शासन को मजबूत करने और उसकी रक्षा करने के लिए बनाए गए थे और उनका उद्देश्य सजा देना था, न्याय देना नहीं। शाह ने कहा, हम (सरकार) इन दोनों बुनियादी पहलुओं में बदलाव लाने जा रहे हैं। इन तीन नए कानूनों की आत्मा भारतीय नागरिकों को संविधान द्वारा दिए गए सभी अधिकारों की रक्षा करना होगा। इनका उद्देश्य किसी को सजा दिलाना नहीं बल्कि न्याय देना होगा और इस प्रक्रिया में अपराध की रोकथाम की भावना पैदा करने के लिए जहां जरूरत होगी, वहां सजा दी जाएगी।
लंबी चर्चा और विमर्श के बाद लाया गया कानून
गृहमंत्री अमित शाह ने बताया कि कानून को लाने से पहले 18 राज्यों, 6 संघशासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 16 हाई कोर्ट, 5 न्यायिक अकादमी, 22 विधि विश्वविद्यालय, 142 सांसद, लगभग 270 विधायकों और जनता ने इन नए कानूनों पर अपने सुझाव दिए थे। 4 सालों तक इस कानून पर गहन विचार विमर्श हुआ और वे स्वयं इस पर हुई 158 बैठकों में उपस्थित रहे।
जानकारी के मुताबिक, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ ‘कैश-फॉर-क्वेरी’ आरोपों पर आचार समिति की रिपोर्ट सत्र के दौरान लोकसभा में पेश की जाएगी। पैनल द्वारा निष्कासन की सिफारिश लागू होने से पहले सदन को रिपोर्ट अपनानी होगी। इसके साथ ही आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम को प्रतिस्थापित करने वाले तीन प्रमुख विधेयकों पर सत्र के दौरान विचार किए जाने की संभावना है। संसद में लंबित एक अन्य प्रमुख विधेयक मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित है।
मानसून सत्र में पेश किए गए इस प्रस्ताव को सरकार ने विपक्ष और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों के विरोध के बीच संसद के विशेष सत्र में पारित करने पर जोर नहीं दिया था क्योंकि सरकार सीईसी और ईसी की स्थिति को कैबिनेट सचिव के बराबर लाना चाहती है। वर्तमान में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का दर्जा प्राप्त है।
कानून में दस्तावेज़ों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल, सर्वर लॉग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल, मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है। एफआईआर से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट और चार्जशीट से जजमेंट तक की सारी प्रक्रिया को डिजिटलाइज़ करने का प्रावधान इस कानून में किया गया है। सर्च और ज़ब्ती के वक़्त वीडियोग्राफी को कंपल्सरी कर दिया गया है। इसके बिना कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी।
– 7 साल या इससे ज्यादा सजा वाले अपराधों के क्राइम सीन पर फॉरेंसिक टीम की विज़िट को कंपल्सरी किया जा रहा है। इसके माध्यम से पुलिस के पास एक वैज्ञानिक साक्ष्य होगा। सरकार पहली बार ज़ीरो एफआईआर शुरू करने जा रही है, अपराध कहीं भी हुआ हो उसे अपने थाना क्षेत्र के बाहर भी रजिस्टर किया जा सकेगा। पहली बार ई-एफआईआर का प्रावधान जोड़ा जा रहा है, हर जिले और पुलिस थाने में एक ऐसा पुलिस अधिकारी नामित किया जाएगा जो गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के परिवार को उसकी गिरफ्तारी के बारे में ऑनलाइन और व्यक्तिगत रूप से सूचना करेगा।
– यौन हिंसा के मामले में पीड़ित का बयान कंपल्सरी कर दिया गया है और यौन उत्पीड़न के मामले में बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग भी अब कंपल्सरी कर दी गई है। पुलिस को 90 दिनों में शिकायत का स्टेटस और उसके बाद हर 15 दिनों में फरियादी को स्टेटस देना कंपल्सरी होगा। पीड़ित को सुने बिना 7 साल या उससे अधिक के कारावास का केस वापस नहीं होगा।
– छोटे मामलों में समरी ट्रायल का दायरा भी बढ़ा दिया गया है। अब 3 साल तक की सज़ा वाले अपराध समरी ट्रायल में शामिल हो जाएंगे। इस अकेले प्रावधान से ही सेशन्स कोर्ट्स में 40 प्रतिशत से अधिक केस समाप्त हो जाएंगे। आरोप पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिनों की समयसीमा तय कर दी गई है और परिस्थिति देखकर अदालत आगे 90 दिनों की परमीशन और दे सकेंगी। इस तरह 180 दिनों के अंदर जांच समाप्त कर ट्रायल के लिए भेज देना होगा।
– कोर्ट अब आरोपित व्यक्ति को आरोप तय करने का नोटिस 60 दिनों में देने के लिए बाध्य होंगे, बहस पूरी होने के 30 दिनों के अंदर माननीय न्यायाधीश को फैसला देना होगा। इससे सालों तक निर्णय पेंडिंग नहीं रहेगा और फैसला 7 दिनों के अंदर ऑनलाइन उपलब्ध कराना होगा।
– सिविल सर्वेंट या पुलिस अधिकारी के विरूद्ध ट्रायल के लिए 120 दिनों के अंदर अनुमति पर फैसला करना होगा वरना इसे डीम्ड परमिशन माना जाएगा और ट्रायल शुरू कर दिया जाएगा।
– घोषित अपराधियों की संपत्ति की कुर्की का भी प्रावधान लेकर आए हैं, अंतरराज्यीय गिरोह और संगठित अपराधों के विरूद्ध अलग प्रकार की कठोर सजा का नया प्रावधान भी इस कानून में होगा।
– शादी, रोजगार और पदोन्नति के झूठे वादे और गलत पहचान के आधार पर यौन संबंध बनाने को पहली बार अपराध की श्रेणी में लाया गया है, गैंग रेप के सभी मामलों में 20 साल की सज़ा या आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है।
– 18 साल से कम आयु की बच्चियों के साथ अपराध के मामले में मृत्यु दंड का भी प्रावधान रखा गया है, मॉब लिंचिग के लिए 7 साल, आजीवन कारावास और मृत्यु दंड के तीनों प्रावधान रखे गए हैं।
– मोबाइल फोन या महिलाओं की चेन की स्नेचिंग के लिए अब प्रावधान रखा गया है।
– हमेशा के लिए अपंगता आने या ब्रेन डेड होने की स्थिति में 10 साल या आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान किया गया है।
– बच्चों के साथ अपराध करने वाले व्यक्ति के लिए सज़ा को 7 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है। अनेक अपराधों में जुर्माने बढ़ाने का प्रावधान।
– सजा माफी को राजनीतिक फायदे के लिए उपयोग करने के कई मामले देखे जाते थे, अब मृत्यु दंड को आजीवन कारावास, आजीवन कारावास को कम से कम 7 साल की सज़ा और 7 साल के कारावास को कम से कम 3 साल तक की सज़ा में ही बदला जा सकेगा व किसी भी गुनहगार को छोड़ा नहीं जाएगा।
– मोदी सरकार राजद्रोह को पूरी तरह से समाप्त करने जा रही है क्योंकि भारत में लोकतंत्र है और सबको बोलने का अधिकार है।
– पहले आतंकवाद की कोई व्याख्या नहीं थी, अब सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां, अलगाववाद, भारत की एकता, संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देने जैसे अपराधों की पहली बार इस कानून में व्याख्या की गई है।
– अनुपस्थिति में ट्रायल के बारे में एक ऐतिहासिक फैसला किया है, सेशन्स कोर्ट के जज द्वारा भगोड़ा घोषित किए गए व्यक्ति की अनुपस्थिति में ट्रायल होगा और उसे सज़ा भी सुनाई जाएगी, चाहे वो कहीं भी छिपा हो, उसे सज़ा के खिलाफ अपील करने के लिए अदालत की शरण में आना होगा।
– कानून में कुल 313 बदलाव किए गए हैं जो हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में एक आमूलचूल परिवर्तन लाएंगे और किसी को भी अधिकतम 3 वर्षों में न्याय मिल सकेगा।
– इस कानून में महिलाओं और बच्चों का विशेष ध्यान रखा गया है, अपराधियों को सज़ा मिले ये सुनिश्चित किया गया है और पुलिस अधिकारों का दुरुपयोग न कर सके, ऐसे प्रावधान भी किए गए हैं।
गृह मंत्री ने कहा कि सीआरपीसी की जगह लेने वाले भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक में अब 533 धाराएं होंगी। कुल 160 धाराएं बदली गई हैं, नौ नई धाराएं जोड़ी गई हैं और नौ धाराएं निरस्त की गई हैं।
भारतीय न्याय संहिता विधेयक, जो आईपीसी की जगह लेगा, उसमें पहले की 511 धाराओं के बजाय 356 धाराएं होंगी, 175 धाराओं में संशोधन किया गया है, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराएं निरस्त की गई हैं।
साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले भारतीय साक्ष्य विधेयक में अब पहले के 167 के बजाय 170 खंड होंगे। शाह ने कहा कि 23 खंड बदले गए हैं, एक नया खंड जोड़ा गया है और पांच निरस्त किए गए हैं।