नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि भारत की ‘वसुधैव कुटुंबकम ्’ की प्राचीन भावना आधुनिक विश्व को एकीकृत दृष्टिकोण व समाधान दे रही है तथा देश, वर्ष 2025 तक टीबी खत्म करने के लक्ष्य पर काम कर रहा है। वह विश्व क्षय रोग (टीबी) दिवस के मौके पर अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के ‘रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर’ में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा संयुक्त राष्ट्र समर्थित संगठन ‘स्टॉप टीबी पार्टनरशिप’ द्वारा आयोजित ‘वन वर्ल्ड टीबी समिट’ को संबोधित कर रहे थे।
पांच साल पहले लक्ष्य पाने का मिशन : उन्होंने कहा ,“भारत अब दुनिया से पांच साल पहले यानी वर्ष 2025 तक टीबी खत्म करने के लक्ष्य पर काम कर रहा है।’ मोदी ने कहा कि एक देश के तौर पर भारत की विचारधारा का प्रतिबिंब ‘वसुधैव कुटुंबकम ्’ की भावना में झलकता है और यह प्राचीन विचार आधुनिक विश्व को एकीकृत दृष्टिकोण तथा समाधान दे रहा है।
अनेक मोर्चों पर एकसाथ काम : उन्होंने कहा कि भारत दुनिया में ‘वन अर्थ, वन हेल्थ’ के दृष्टिकोण को लेकर वैश्विक भलाई के संकल्पों को साकार कर रहा है। मोदी ने कहा, ‘‘नौ वर्षों में टीबी के खिलाफ लड़ाई में भारत ने अनेक मोर्चों पर एक साथ काम किया है जैसे जनभागीदारी, पोषण के लिए विशेष अभियान, इलाज के लिए नई रणनीति, तकनीक का भरपूर इस्तेमाल और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले ‘खेलो इंडिया’ और योग जैसे अभियान।
10 लाख टीबी मरीज गोद लिए : उन्होंने कहा, अभियान के बाद 10 लाख टीबी मरीजों को देश के सामान्य नागरिकों ने गोद लिया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे देश में 10-12 साल के बच्चे भी ‘निक्षयमित्र’ बनकर टीबी के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ा रहे हैं।
बच्चों ने गुल्लक तोड़ दिखाया जज्बा : मोदी ने कहा, ऐसे कितने ही बच्चे हैं जिन्होंने अपनी गुल्लक तोड़कर टीबी मरीजों को गोद लिया है। टीबी मरीजों के लिए इन ‘निक्षयमित्र’ का आर्थिक सहयोग एक हजार करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गया है।”
दो हजार करोड़ की मदद : प्रधानमंत्री ने कहा कि 2018 से लगभग 2,000 करोड़ रुपये सीधे टीबी रोगियों के बैंक खातों में भेजे गए हैं और लगभग 75 लाख रोगी इससे लाभान्वित हुए हैं।
80 दवाएं देश में निर्मित : उन्होंने कहा, आज टीबी के इलाज के लिए 80 प्रतिशत दवाएं भारत में बनती हैं। भारत की दवा कंपनियों का यह सामर्थ्य टीबी के खिलाफ वैश्विक अभियान की बहुत बड़ी ताकत है। मैं चाहूंगा कि भारत के इन प्रयासों का लाभ ज्यादा से ज्यादा देशों को मिले। भारत के इस स्थानीय दृष्टिकोण में बड़ी वैश्विक क्षमता मौजूद है, जिसका हमें साथ मिलकर इस्तेमाल करना है।
देखभाल मॉडल की शुरुआत : इसके पहले प्रधानमंत्री ने टीबी रोकथाम उपचार (टीपीटी) की आधिकारिक शुरुआत के रूप में टीबी मुक्त पंचायत समेत अनेक परियोजनाओं और क्षयरोग के लिए परिवार केंद्रित एक देखभाल मॉडल की शुरुआत की। उन्होंने इस मौके पर भारत की वार्षिक टीबी रिपोर्ट 2023 भी जारी की।
मोदी के प्रयासों की सराहना : ‘स्टॉप टीबी पार्टनरशिप’ की अधिशासी निदेशक डॉ. लूसिका डिटियू ने प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि भारत में 2025 तक क्षय रोग समाप्त हो जाएगा। उन्होंने नारा दिया ‘टीबी हारेगी-इंडिया जीतेगा, टीबी हारेगी-दुनिया जीतेगी।’
कई देशों के प्रतिनिधि हुए शामिल : इस कार्यक्रम में प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री डॉ मनसुख मांडविया व उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने मोदी का स्वागत किया। इस आयोजन में दुनिया के कई देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए। टीबी उन्मूलन के लिए 2025 के सपने को साकार करने में पांच नए मॉड्यूल अहम भागीदारी निभाएंगे। इसमें मरीज की जांच और इलाज के साथ ही उसके संपर्क में आने वाले परिजनों को जागरूक करने से लेकर अस्पतालों में उपलब्ध सुविधाओं पर जोर है। पीएम मोदी ने क्षय रोग उन्मूलन में स्वास्थ्य कर्मियों के सहयोग की सराहना की। जो मॉडयूल लांच किया गया, उसे लागू करने के साथ ही अधिक से अधिक लोगों को इससे जोड़ने आह्वान किया। इस मॉड्यूल में टीबी मरीज के उपचार की समय सीमा छह महीने से कम कर तीन महीने कर दी गई है।
पीएम ने सुनाये संस्मरण
नई दिल्ली। लोगों से संवाद करने की कला में पीएम मोदी का कोई सानी नहीं । यह तब जाहिर हुआ जब उन्होंने टीबी की चर्चा के दौरान काशी सम्मेलन में बापू से जुड़े कुछ किस्से सुनाये। उन्होंने कहा, आपसे बात करते हुए मुझे बरसों पुराना एक वाकया भी याद आ रहा है। मैं आप सभी के साथ इसे शेयर करना चाहता हूं। आप सब जानते हैं कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कुष्ठ रोग (लेप्रोसी) को समाप्त करने के लिए बहुत काम किया था। जब वो साबरमती आश्रम में रहते थे तब एक बार उन्हें अहमदाबाद के एक कुष्ठ रोग हॉस्पिटल का उद्घाटन करने के लिए बुलाया गया था।
अस्पताल पर ताला लगाने बुलाओ : गांधी जी ने तब लोगों से कहा कि मैं उद्घाटन के लिए नहीं आऊंगा। गांधी जी की अपनी एक विशेषता थी। बोले, मुझे तो खुशी तब होगी जब आप उस कुष्ठ रोग हॉस्पिटल पर ताला लगाने के लिए मुझे बुलाएंगे। यानि वो कुष्ठ रोग को समाप्त करके उस अस्पताल को ही बंद करना चाहते थे। गांधी जी के निधन के बाद भी वो अस्पताल दशकों तक ऐसे ही चलता रहा। 2001 में जब गुजरात के लोगों ने मुझे सेवा का अवसर दिया, तो मेरे मन में था कि गांधी जी का एक काम अधूरा रह गया है ताला लगाने का, चलिए मैं कुछ कोशिश करूं। तब कुष्ठ रोग के खिलाफ अभियान को नई गति दी गई। और नतीजा क्या हुआ?
गाधी जी का सपना पूरा किया : गुजरात में कुष्ठ रोग का रेट, 23 फीसद से घटकर 1 फीसद से भी कम हो गया। 2007 में मेरे मुख्यमंत्री रहते उस कुष्ठ रोग हॉस्पिटल को ताला लगा और मैंने गांधी जी का सपना पूरा किया। इसमें बहुत से सामाजिक संगठनों ने, जनभागीदारी ने बड़ी भूमिका निभाई। इसलिए ही मैं टीबी के खिलाफ भारत की सफलता को लेकर बहुत आश्वस्त हूं।
लक्ष्य पाने की ललक : आज का नया भारत, अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जाना जाता है। भारत ने खुले में शौच से मुक्त होने का संकल्प लिया और उसे प्राप्त करके दिखाया। भारत ने सोलर पावर जनरेशन कैपैसिटी का लक्ष्य भी समय से पहले हासिल करके दिखा दिया। भारत ने पेट्रोल में तय परसेंट की इथेनॉल ब्लेंडिंग का लक्ष्य भी तय समय से पहले प्राप्त करके दिखाया है। जनभागीदारी की ये ताकत, पूरी दुनिया का विश्वास बढ़ा रही है। टीबी के खिलाफ भारत की लड़ाई जिस सफलता से आगे बढ़ रही है, उसके पीछे भी जनभागीदारी की ही ताकत है।
टीबी मरीजों को जागरूक करो : हां, मेरा आपसे एक आग्रह भी है। टीबी के मरीजों में अक्सर जागरूकता की कमी दिखती है, कुछ न कुछ पुरानी सामाजिक सोच के कारण उनमें ये बीमारी छिपाने की कोशिश दिखती है। इसलिए हमें इन मरीजों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करने पर भी उतना ही ध्यान देना होगा।