सिंधु झा
नई दिल्ली। राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी), जिसे पहले संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) के रूप में जाना जाता था, का लक्ष्य भारत में टीबी के बोझ को सतत विकास लक्ष्यों से पांच साल पहले 2025 तक रणनीतिक रूप से कम करना है। केंद्र सरकार इस मुद्दे पर मिशन मोड में आ चुकी है। भारत से 2025 तक टीबी उन्मूलन करने के भारत सरकार के उद्देश्य पर जोर देने के लिए 2020 में आरएनटीसीपी का नाम बदलकर राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) कर दिया गया था। यह 632 जिलों/रिपोर्टिंग इकाइयों में एक अरब से अधिक लोगों तक पहुंच बना चुका है और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ मिलकर टीबी उन्मूलन के लिए भारत सरकार की पंचवर्षीय राष्ट्रीय रणनीतिक योजनाओं को संचालित करने के लिए उत्तरदायी है।
सभी रोगियों का पता लगाने का लक्ष्य
टीबी उन्मूलन हेतु राष्ट्रीय रणनीतिक योजना मिशन मोड में शुरू की गई थी। यह एक बहु-आयामी दृष्टिकोण है, जिसका उद्देश्य निजी प्रदाताओं से देखभाल की मांग करने वाले टीबी रोगियों और उच्च जोखिम वाली आबादी में न पता लगने वाले टीबी के मामलों तक पहुंच कायम करने पर बल देते हुए सभी टीबी रोगियों का पता लगाना है।
21 लाख मामले अधिसूचित
2021 में भारत ने अनुमानित मामलों की संख्या और नि-क्षय पोर्टल पर पहले दर्ज किए गए मामलों के बीच अंतर को सफलतापूर्वक पाटते हुए टीबी के 21 लाख मामलों को अधिसूचित किया। नि-क्षय पोषण योजना (एनपीवाई) जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं सहित कई दूरंदेशी नीतियों को लागू किया गया है, जिससे टीबी रोगियों, विशेष रूप से वंचित लोगों की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिली है।
मरीजों को 1,707 करोड़ वितरित
देश भर में 2018 से अब तक टीबी का इलाज करा रहे 65 लाख से अधिक लोगों को लगभग 1,707 करोड़ रुपये वितरित किए जा चुके हैं। निजी क्षेत्र को साथ जोड़ने के प्रयासों के तहत 250 जिलों में रोगी प्रदाता सहायता एजेंसियों (पीपीएसए) को घरेलू सेटअप और जीत पहल के माध्यम से शुरू किया गया है, जिससे सभी टीबी रोगियों में से 32फीसद को निजी क्षेत्र से अधिसूचित किया जा रहा है।
3,760 एनएएटी मशीनों को जोड़ा
टीबी के जिन रोगियों का निदान हो चुका है, उनके लिए यूनिवर्सल ड्रग ससेप्टिबिलिटी टेस्टिंग (यूडीएसटी) के आधार पर कार्यक्रम ने देश भर में 2021 तक 3,760 एनएएटी मशीनों को जोड़ा। इससे यह सुनिश्चित किया गया कि जिन रोगियों में दवा प्रतिरोधी टीबी का पता चला है, उनका शुरुआत से ही, समय पर सही उपचार प्रारंभ किया जा सके।
1,50,000 से अधिक केंद्र स्थापित
दिसंबर 2022 तक 1,50,000 से अधिक आयुष्मान भारत – स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र स्थापित किए गए ताकि जमीनी स्तर पर टीबी देखभाल सेवाओं सहित समग्र प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं का संवितरण किया जा सके।
कार्यक्रम के तहत समुदाय को साथ जोड़ने और टीबी के विरुद्ध जनांदोलन चलाने की रणनीतियां भी शुरू की हैं। वंचित और हाशिए पर रहने वालों तथा रोगियों की इन सेवाओं तक पहुंच बनाने में सहायता करने के लिए कार्यक्रम ने 12,000 से अधिक टीबी चैंपियनों की पहचान की है। यह कार्यक्रम मरीजों, डॉक्टरों और उनकी देखभाल करने वालों के बीच इलाज के आम मसलों को हल करने के लिए बातचीत में सहायता देने के लिए रोगी सहायता समूहों (पीएसजी) के गठन में भी सहायता कर रहा है।
सांस फुलाते टीबी के आंकड़े
- दुनिया में हर साल एक करोड़ टीबी के नए मरीज आते हैं, जिनमें से 25 प्रतिशत भारत से हैं।
- 1994 से 2015 तक देश में टीबी के मामलों में 42फीसदी तक कमी की आई। 2022 में इसमें 11फीसदी की कमी दर्ज हुई।
- टीबी के जांच-इलाज में हुए कई बदलाव। पहले बलगम की जांच माइक्रोस्कोप से होती थी, जिसमें दो-तीन दिन लगते थे। अब एक नई जांच मशीन सीबीनैट लॉन्च हुई, जो पूरे देश में 800 से ज्यादा जगहों पर उपलब्ध है। यह मशीन 2 से 3 घंटे में जांच कर देती है और जो पॉजिटिव आते हैं, उनका किस तरह का इलाज कारगर होगा, यह भी बता देती है।
- टीबी पॉजिटिव मरीजों के न्यूट्रीशन के लिए सरकार 500 रुपये महीने की मदद राशि देती है।
- निक्षय मित्र योजना के तहत समर्थ लोगों से अपील की जाती है कि वो मरीज को अडॉप्ट करें और हर महीने एक हजार रुपये दें ताकि वे बैलेंस डाइट ले सकें।
- नई टीपीटी शुरू की गई है, जिसके तहत जिस मरीज का स्पूटम टेस्ट पॉजिटिव आता है, उसके घर के हर इंसान की जांच की जाती है और उन्हें प्रिवेंटिव दवा दी जाती है।
- जन्म के बाद बच्चों को जो बीसीजी का टीका दिया जाता है, जो टीबी को खतरनाक होने से बचाता है। अब एक और वैक्सीन पर स्टडी चल रही है, जो 15 से 24 साल की उम्र में सेकंड डोज के तौर पर दी जाएगी।
- न्यूट्रीशन की कमी, सुबह का नाश्ता मिस करना, देर रात सोना, समय पर खाना नहीं खा पाने से इम्युनिटी कम हो जाती है जो अंतत: टीबी का कारण बनती है।
- टीबी होने पर वजन कम होने लगेगा। भूख में कमी आएगी। हमेशा लो ग्रेड फीवर रहता है।
- 4 हफ्ते से ज्यादा की खांसी हो तो टीबी की जांच जरूर कराएं। फीवर, भूख में कमी और वजन कम हो रहा है तो भी टीबी की जांच कराएं। बेसिक जांच एक्सरे है।
- टीबी के खतरे को तीन गुणा बढ़ता है तंबाकू
- टीबी बैक्टीरिया को भाता है भारत का मौसम
- कोरोना काल में जिन 30 देशों में टीबी के मरीजों की मौतों की संख्या बढ़ी है, उनमें भारत के अलावा बांग्लादेश, चीन, पाकिस्तान शामिल हैं।
- कोरोना आने के बाद 2020 में टीबी के कारण पूरी दुनिया में 15 लाख लोगों ने जान गंवाई। 2021 में यह आंकड़ा 16 लाख तक पहुंचा। इनमें सबसे अधिक 34 फीसदी लोग भारत के थे।
- डब्ल्यूटीओ ने सबसे ज्यादा टीबी वाले देशों की 3 कैटेगरी बनाई है। ये हैं-टीबी वाले देश, टीबी/एच आईवी वाले देश और हाई एमडीआर /आरआर-टीबी वाले देश। तीनों लिस्ट में भारत का नाम शामिल है।
- एशिया के छह देशों भारत, चीन, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार में ही टीबी के 66फीसदी मरीज हैं।
- मौसम और टीबी के बीच गहरा जुड़ाव है। ज्यादा आबादी और नमी वाले इलाकों में यह बैक्टीरिया तेजी से पनपता है।
- बाल और नाखून को छोड़ दें तो टीबी आंख, नाक, किडनी, लिवर, स्प्लीन, आंत, ब्लैडर, लिंफ नोड्स, हडि्डयों या ब्रेन में भी हो सकती है। इसलिए कभी सुनने को मिले कि ब्रेन में टीबी है तो चौंकें नहीं।
- टीबी होने पर माइकोबैक्टीरियम वायरस ब्लड में मौजूद जीवनरक्षक कोशिकाओं यानी सफेद रक्त कणों को मार देता है। माइकोबैक्टीरियम पावरफुल होता है, बॉडी में खामोशी से बढ़ता है और फैल जाता है। शरीर के जिस हिस्से में पहुंचता है, वहां गांठ बनाकर उसे खोखला बना देता है। आंतों में टीबी होने पर जगह-जगह छेद हो जाते हैं। आंतों से होकर यह दूसरे अंगों में भी इंफेक्शन फैलता है।
- महिलाओं में टीबी बनती है बांझपन की बड़ी वजह। पुरुषों में अगर टेस्टिकल्स में टीबी हो जाए तो यह इसमें बनने वाले स्पर्म को पूरी तरह नष्ट कर देती है।
- मूल रूप से टीबी को पल्मनरी और एक्स्ट्रा पल्मनरी डिजीज के रूप में बांटा जाता है।
- टीबी का इलाज आम तौर पर 6 महीने चलता है। वहीं, एमडीआर टीबी 9 से 12 माह तक, ब्रेन टीबी 9 से 12 माह तक और एक्सडीआर टीबी का इलाज डेढ़ से 2 साल तक चलता है।