ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। यमुना के डूब क्षेत्र के पास गीता कॉलोनी में स्थित प्राचीन शिव मंदिर को गिराने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने नहीं बदला। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पूछा कि प्राचीन मंदिर सीमेंट और रंग रोगन से नहीं, बल्कि चट्टानों से बना है, इसका प्रमाण कहां हैं?
अवैध रूप से बने शिव मंदिर को गिराने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की अवकाश पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
29 मई का फैसला
दरअसल दिल्ली उच्च न्यायालय ने 29 मई के अपने फैसले में यमुना के डूब क्षेत्र में स्थित एक शिव मंदिर को गिराने की अनुमति दी थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा था कि भगवान शिव को अदालत के संरक्षण की आवश्यकता नहीं है। यह ‘हम लोग’ हैं जो भगवान शिव की सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
…तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे
कोर्ट ने कहा कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदान को अतिक्रमण और अवैध निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा था कि भगवान शिव को किसी के संरक्षण की आवश्यकता नहीं है। उसने यमुना नदी के किनारे अनधिकृत तरीके से बनाए गए मंदिर को हटाने से संबंधित याचिका में उन्हें पक्षकार बनाने से इनकार कर दिया था।
प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति का दावा
याचिकाकर्ता प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति ने दावा किया था कि मंदिर आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र है, जहां नियमित रूप से 300 से 400 श्रद्धालु आते हैं। याचिका में दावा किया गया था कि मंदिर की संपत्तियों की पारदर्शिता, जवाबदेही और जिम्मेदार प्रबंधन को बनाए रखने के लिए 2018 में सोसायटी का पंजीकरण किया गया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि विवादित जमीन व्यापक जनहित के लिए है और याचिकाकर्ता सोसायटी इस पर कब्जा करने और इसका इस्तेमाल जारी रखने के लिए किसी निहित अधिकार का दावा नहीं कर सकती। यह जमीन शहरी विकास मंत्रालय द्वारा स्वीकृत जोन-‘ओ’ के लिए क्षेत्रीय विकास योजना के अंतर्गत आती है।
कोई दस्तावेज नहीं दिखाया
हाई कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता सोसायटी जमीन पर अपने मालिकाना हक, अधिकार या हित के संबंध में कोई दस्तावेज दिखाने में बुरी तरह विफल रही है और इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मंदिर का कोई ऐतिहासिक महत्व है।