ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। मेडिकल की ट्रेनिंग कर रहे विदेश से एमबीबीएस करने वाले छात्रों ने स्टाइपेंड न मिलने पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। छात्रों ने इसमें लिखा है कि उनसे काम बाकी एमबीबीएस इंटर्न्स के बराबर ही लिया गया लेकिन इसके बदले स्टाइपेंड नहीं दिया गया, जबकि नेशनल मेडिकल कमीशन के नियमों के अनुसार, इंटर्नशिप कर रहे सभी छात्रों को स्टाइपेंड देने का प्रावधान है। इन छात्रों की शिकायत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को संज्ञान में लेते हुए राजस्थान मेडिकल कॉलेज, नेशनल मेडिकल कमीशन और राम मनोहर लोहिया अस्पताल, दिल्ली को नोटिस जारी किया है। इन छात्रों ने एडवोकेट तन्वी दुबे की मदद से ये याचिका दायर की है, जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि छात्रों को स्टाइपेंड न देना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है।
दरअसल, नेशनल मेडिकल कमीशन के (कंपल्सरी रोटेटिंग मेडिकल इंटर्नशिप ) रेगुलेशन्स 2021 के अनुच्छेद 3 के तहत यह प्रावधान है कि मेडिकल इंटर्नशिप कर रहे सभी छात्रों को स्टाइपेंड दिया जाएगा। इसके साथ ही 4 मार्च 2022 और 19 मई 2022 को नेशनल मेडिकल कमीशन द्वारा जारी किए गए नोटिस के अनुसार, सभी छात्रों को भारत से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों के बराबर ही स्टाइपेंड दिया जाएगा। इन्हीं नियमों का हवाला देते हुए फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट (एफएमजी) छात्रों ने याचिका दायर की।
छात्रों से जबरन पेपर साइन कराए गए
याचिका में छात्रों ने ये भी बताया कि इंटर्नशिप शुरू होने से पहले उनसे जबरन एक अंडरटेकिंग फॉर्म साइन करवाया गया था जिसमें लिखा था कि इंटर्नशिप के दौरान किसी भी तरह का कोई स्टाइपेंड नहीं दिया जाएगा, कोई और विकल्प न होने के कारण छात्रों को अंडरटेकिंग फॉर्म साइन करना पड़ा लेकिन उन्हें इस बात का अनुमान नहीं था कि इंटर्नशिप के दौरान उन्हें खाने-पीने रहने, आने-जाने और भी रोज के बाकी खर्चों का सामना करना पड़ेगा। छात्रों को ये जानकर भी हैरानी हुई कि जिन छात्रों की इंटर्नशिप ग्रामीण क्षेत्रों में थी, उन्हें भी वहां खर्चा खुद ही उठाना होगा।