ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। बाम्बे हाईकोर्ट ने ठाणे जिले के बदलापुर में स्कूली बच्चियों के यौन उत्पीड़न की घटना को स्तब्धकारी करार दिया। कोर्ट ने कहा कि क्या स्थिति हो गई है, तीन-चार साल की बच्चियां तक सुरक्षित नहीं हैं, और वह भी स्कूल में। कोर्ट ने मामले की जानकारी होने के बाद भी चुप्पी साधे रखने के लिए स्कूल प्रशासन पर सख्त कार्रवाई करने को कहा। हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस मामले में सुनवाई की। जस्टिस रेवती मोहित डेरे व जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ ने कहा कि ऐसे कैसे चलेगा। बच्चियों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने में देरी को लेकर पुलिस को कड़ी फटकार लगाई।
पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने में भी संकोच नहीं
साथ ही पीठ ने कहा, अगर पता चला कि मामले को दबाने की कोशिश की गई है, तो वह संबंधित पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने में संकोच नहीं करेगी। पीठ ने कहा, यह बात स्कूल अधिकारियों के संज्ञान में थी कि एक पुरुष सहायक ने दो मासूम बच्चियों का यौन उत्पीड़न किया, लेकिन उन्होंने पुलिस को सूचित करना भी उचित नहीं समझा।
रिपोर्ट न करना भी पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध
यौन उत्पीड़न के बारे में रिपोर्ट न करना भी पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध है। इसलिए स्कूल प्रशासन पर कार्रवाई की जानी चाहिए। इस पर राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि तत्काल कार्रवाई की जाएगी।
इतने हल्के में कैसे ले सकती है पुलिस
महज तीन-चार साल की बच्चियों के यौन उत्पीड़न को घटना को पुलिस इतने हल्के में कैसे ले सकती है। यह आम बात हो गई है। जब तक कोई जोरदार आक्रोश नहीं होता, तंत्र काम नहीं करता। क्या जब तक लोग सड़कों पर नहीं उतरेंगे जांच गंभीरता से नहीं की जाएगी?
बयान दर्ज करने में देरी क्यों
पीठ ने सरकार की ओर से गठित एसआईटी को रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। उसे बताना होगा कि बच्चियों और उनके परिवारों के बयान दर्ज करने के लिए क्या कदम उठाए। प्राथमिकी दर्ज करने और दूसरी पीड़िता का बयान दर्ज करने में देरी क्यों की। बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि अगर स्कूल सुरक्षित जगह नहीं है तो शिक्षा के अधिकार और अन्य सभी चीजों के बारे में बोलने का क्या फायदा है।