ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य पेड़ों का संरक्षक है, ऐसे में उसकी सहमति के बगैर पेड़ों को काटने की अर्जी पर विचार नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश में एक पेट्रोल पंप मालिक की उस अर्जी को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है, जिसमें पेट्रोल पंप तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए रास्ते बनाने को 28 पेड़ों को काटने की इजाजत मांगी थी। शीर्ष अदालत में ताज संरक्षित क्षेत्र में पर्यावरण संबंधी मुद्दों के संबंध में एक जनहित याचिका में पेड़ों को काटने के लिए अनुमति मांगी गई थी।
जताई नाराजगी
जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने सुनवाई के दौरान निजी पक्षों द्वारा भूमि के मालिक यानी राज्य सरकार से संपर्क किए बिना औद्योगिक परियोजनाओं के लिए पेड़ों को काटने की अनुमति मांगने पर नाराजगी व्यक्त की। पीठ ने कहा कि ‘यूपी सरकार की सहमति के बिना ऐसे आवेदन नहीं आने चाहिए थे।
विवेक का हो इस्तेमाल
जमीन राज्य सरकार की है, राज्य की मौजूदगी वहां होनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘यह देखते हुए कि संस्थाएं यह कहते हुए अदालत का रुख करती रहती हैं कि यूपी राज्य ने उन्हें भूमि तक पहुंच की अनुमति दी है। साथ ही पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता से कहा कि राज्य सरकार को इस बारे में अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए कि क्या पेड़ों को काटना आवश्यक है या कोई अन्य भूमि आवंटित की जा सकती है।
याचिकाकर्ता से सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपनी अर्जी में यह कहीं नहीं कहा है कि वह उस जमीन का मालिक है जिस पर पेड़ों को काटने की मांग की गई थी। इसके बजाय, याचिकाकर्ता के वकील ने यह स्वीकार किया है कि पेट्रोल पंप तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सरकारी जमीन पर निर्माण किया जाना था।
यह बहुत ही चौंकाने वाला
शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘यह बहुत ही चौंकाने वाला है, आप याचिकाकर्ता उस जमीन के मालिक नहीं हैं, जिस पर पेड़ मौजूद हैं और उसे काटने के लिए अनुमति देने की मांग कर रहे हैं। वह भी उसकी (जमीन मालिक) सहमति के बगैर, आखिर यह हो क्या रहा है। पीठ ने इस बात पर भी हैरानी जताई कि पेड़ों को काटने के बदले, प्रतिपूरक वनरोपण के लिए भी कोई ठोस योजना नहीं पेश की है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘राज्य पेड़ों का संरक्षक है, पहले राज्य को संतुष्ट होना होगा कि इस तरह के काम के लिए पेड़ों को काटना जरूरी है? शीर्ष अदालत ने कहा कि ये ऐसे मामले हैं जिन्हें हमें लापरवाही से नहीं लेने जा रहे हैं, हमें हर एक पेड़ को बचाना होगा। इसके साथ ही पेड़ों को काटने की अनुमति देने की मांग को लेकर दाखिल अर्जी को खारिज कर दिया।