नई दिल्ली। एक दूसरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी को अतिरिक्त भुगतान या इंक्रीमेंट गलती से किया गया तो उसके रिटायरमेंट के बाद उससे वसूली इस आधार पर नहीं की जा सकती कि ऐसा किसी गलती के कारण हुआ।
24 साल बाद नोटिस का क्या मतलब
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित दूसरे आदेश में मामला यह था कि केरल के एक सरकारी शिक्षक ने साल 1973 में स्टडी लीव ली लेकिन उसे इंक्रीमेंट देते समय उस अवकाश की अवधि पर विचार नहीं किया गया था। 24 साल बाद 1997 में उसे नोटिस जारी किया गया और 1999 में उसके रिटायर होने के बाद उससे वसूली की कार्यवाही शुरू की गई। शिक्षक इसके खिलाफ हाई कोर्ट गए लेकिन राहत नहीं मिली उसके बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
अपने पहले के फैसलों का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई सरकारी कर्मचारी, विशेष रूप से जो सेवा के निचले पायदान पर है, जो भी राशि प्राप्त करता है, उसे अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए खर्च करता है।
पीठ ने कहा कि लेकिन जहां कर्मचारी को पता है कि प्राप्त भुगतान देय राशि से अधिक है या गलत भुगतान किया गया है या जहां गलत भुगतान का पता चला जल्दी ही चल गया है तो अदालत वसूली के खिलाफ राहत नहीं देगी। जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने शिक्षक के पक्ष में फैसला सुनाया और राज्य सरकार के जिसके खिलाफ गलत तरीके से वेतन वृद्धि देने के लिए वसूली की कार्यवाही के आधार को अनुचित करार दिया।