ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत यह जरूरी है कि आरोपी को पीड़ित व्यक्ति के एससी-एसटी समुदाय का होने की जानकारी पहले से हो। इस टिप्पणी के साथ जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कुछ लोगों को आरोप से मुक्त कर दिया।
आईपीसी के तहत दर्ज मुकदमे चलते रहेंगे
पीठ ने उत्तर प्रदेश की इस वारदात में हालांकि यह देखते हुए कि आरोपियों के खिलाफ हत्या के प्रयास सहित अन्य धाराओं के तहत दर्ज मुकदमों को चुनौती नहीं दी गई है, कहा कि आईपीसी के तहत दर्ज मुकदमे चलते रहेंगे। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली आरोपी की अपील पर यह फैसला सुनाया है।
राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के भाव थे
हाईकोर्ट ने आरोपी के आरोपमुक्ति के आवेदन को खारिज करने को बरकरार रखा था। पीठ ने तथ्यों पर गौर करते हुए कहा कि यह भी स्पष्ट है कि इस घटना में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के भाव थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवाह रिंकू ठाकुर, जिसने आरोप लगाया था कि उस पर आरोपी विनोद उपाध्याय ने गोली चलाई थी, उसकी चिकित्सकीय जांच की गई, तो उसके शरीर पर बंदूक की गोली की चोट के कोई निशान नहीं मिले।