दीप्सी द्विवेदी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में सच्चा न्याय केवल अपराधी को पकड़ने या दी गई सजा की गंभीरता से नहीं, बल्कि पीड़ित को समर्थन और सुरक्षा प्रदान करने से मिलता है। न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने ‘यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण’ (पॉक्सो) अधिनियम के तहत लोगों की नियुक्ति से संबंधित दिशा-निर्देश जारी करते हुए यह टिप्पणी की।
‘सपोर्ट पर्सन’ का अर्थ बाल कल्याण समिति द्वारा नियुक्त उस व्यक्ति से है जो जांच और मुकदमे की प्रक्रिया के माध्यम से बच्चे को सहायता प्रदान करता है। पीठ ने कहा कि बच्चों के खिलाफ अपराधों में न केवल आरंभिक भय या आघात ही गहरा घाव होता है बल्कि आने वाले दिनों में समर्थन और सहायता की कमी के कारण समस्या और गहराती जाती है। इस तरह के अपराधों में सच्चा न्याय केवल अपराधी को पकड़कर उसे न्याय के कटघरे में लाने या दी गई सजा की गंभीरता से नहीं मिलता, बल्कि पीड़ित या कमजोर गवाह को समर्थन, देखभाल और सुरक्षा प्रदान करने से मिलता है। राज्य और उसके सभी प्राधिकारी जांच और मुकदमे की पूरी प्रक्रिया के दौरान यथासंभव पीड़ारहित, कम कठिन अनुभव का आश्वासन दें, उसे अमल में भी लाएं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस अवधि के दौरान सरकारी संस्थानों और कार्यालयों द्वारा प्रदान की जाने वाली देखभाल और समर्थन महत्वपूर्ण है। शीर्ष अदालत ने कहा कि न्याय के बारे में तभी कहा जा सकता है जब पीड़ितों को समाज में वापस लाया जाए, उन्हें सुरक्षित महसूस कराया जाए और उनकी गरिमा और सम्मान को बहाल किया जाए। पीठ ने कहा, इसके बिना, न्याय खोखला वाक्यांश है, एक भ्रम है। पॉक्सो नियम 2020 में इस संबंध में एक प्रभावशाली रूपरेखा प्रदान करता है, अब इसमें सबसे बड़े हितधारक के रूप में राज्य को इसके अक्षरशः कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए छोड़ दिया गया है।
एनजीओ की याचिका पर सुनवाई
पीठ ने यह बात गैर सरकारी संगठन (एनजीओ ) ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की याचिका पर सुनवाई करते हुए कही। याचिका में उत्तर प्रदेश में पॉक्सो के एक मामले में एक पीड़ित के सामने आई कठिनाइयों का उल्लेख किया गया है।
यूपी में प्रमुख सचिव को निर्देश
शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश के महिला एवं बाल कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को निर्देश दिया कि वे चयन, नियुक्ति, विशेष नियमों आदि के संबंध में राज्य में क्षमताओं का आकलन करने के लिए अगले छह सप्ताह के भीतर एक बैठक बुलाएं। शीर्ष अदालत ने केंद्र और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को चार अक्टूबर, 2023 तक दिशा-निर्देश तैयार करने पर एक हलफनामा दाखिल करने का भी निर्देश दिया।