अप्रैल को फ्रांस में ऑर्लियन्स मास्टर्स बैडमिंटन चैंपियनशिप में प्रियांशु राजावत की खिताबी जीत भारतीय बैडमिंटन की एक ऐतिहासिक घटना है। मध्य प्रदेश के धार के 21 वर्षीय खिलाड़ी से बैडमिंटन प्रेमियों ने बड़ी उम्मीद लगाई थी। देश के टाॅप शटलरों, एचएस प्रणय, किदांबी श्रीकांत और लक्ष्य सेन, सभी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। दो बार की ओलंपिक पदक विजेता और पूर्व विश्व चैंपियन पीवी सिंधु मार्च के अंत में स्पेन मास्टर्स टूर्नामेंट में केवल उपविजेता ही बन पाईं।
बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन (बीडब्ल्यूएफ) की 300 सीरीज टूर्नामेंट में प्रियांशु की खिताबी जीत, भारतीय बैडमिंटन के लिए शुभ शुरुआत है। ऑर्लियन्स में जीत से उनकी रैंकिंग में 20 स्थानों की छलांग लगेगी और उन्हें विश्व रैंकिंग में शीर्ष 40 में जगह मिलेगी। प्रियांशु ने दूसरे राउंड में सीधे गेम में शीर्ष वरीयता प्राप्त और विश्व नंबर 12 केंटा निशिमोटो को हराया।
“निशिमोटो पर जीत ने मुझे बहुत आत्मविश्वास दिया। उसने (निशिमोतो) एक सप्ताह पहले स्पेन मास्टर्स चैंपियनशिप जीती थी और काफी अच्छी फॉर्म में थे। मुझे पता था कि मुझे उसे परेशान करना होगा और मैं उसे किसी भी तरह की लय में आने देने का जोखिम नहीं उठा सकता था। इसके बाद, प्रियांशु ने सेमीफाइनल में कड़े मुकाबले में न्हाटेट गुयेन (आयरलैंड) और फाइनल में डेनमार्क के मैग्नस जोहानसन को हरा कर खिताब अपने नाम कर लिया। मुझे पता है कि मेरी जीत की कुंजी यह थी कि मैं धैर्यवान था और अपने हमलों को शुरू करने से पहले विरोधियों को रैलियों में उलझाता था। पहले, मैं लगातार हमले करता था और अंत में बहुत अधिक गलतियां करता था, प्रियांशु ने कहा। प्रियांशु के खेल में अटैक और डिफेंस का मिश्रण है। उनका टच, रणनीति और शटल पर नियंत्रण महान प्रकाश पादुकोण की याद दिलाता है, जबकि उनके जम्प स्मैश उनके गुरू और कोच पूर्व ऑल इंग्लैंड चैंपियन पुलेला गोपी चंद की याद दिलाते हैं। दरअसल गोपी चंद ने ही सबसे पहले ग्वालियर में सब जूनियर टूर्नामेंट में भाग ले रहे 10 साल के प्रियांशु की प्रतिभा और क्षमता को पहचाना था।
ब्लिट्ज इंडिया के साथ बात करते हुए मुख्य कोच गोपी चंद ने कहा कि वह प्रियांशु की ‘असामान्य’ गति, जंप और स्मैश करने की क्षमता से प्रभावित थे। वह कोर्ट को कवर करने में सक्षम है। 10 साल के बच्चे के लिए यह दुर्लभ बात थी, गोपीचंद ने याद किया।
प्रियांशु के पिता अमोल, राजस्थान में ज़ेरॉक्स व्यवसाय के मालिक हैं। गोपी कहते हैं, “मुझे याद है कि एक दिन अमोल मेरे पास आए और प्रियांशु को हैदराबाद में मेरी मुख्य अकादमी में ले जाने का अनुरोध किया। उस समय, वह (प्रियांशु) सिर्फ दस साल का था। आम माता-पिता से अलग हट कर अमोल बहुत स्पष्ट थे कि प्रियांशु को कैसे आगे बढ़ाना है। गोपीचंद का कहना है कि प्रियांशु में काफी सुधार हुआ है पर अभी भी कुछ पहलुओं पर काम करने की जरूरत है।