सिंधु झा
नई दिल्ली। लद्दाख के न्योमा एडवांस लैंडिंग ग्राउंड को अब अपग्रेड करके इसे एयरबेस में तब्दील किया जा रहा है। यहां से लड़ाकू विमान भी उड़ान भर सकेंगे। एयरबेस बनने के बाद राफेल, सुखोई और तेजस जैसे लड़ाकू विमानों की गर्जना चीन से लगी सीमा पर सुनाई देगी। योजना के मुताबिक अगले तीन सालों में लद्दाख का यह बेस अपने आपरेशन को अंजाम देने में पूरी तरह सक्षम होगा। यहां से चीन की सीमा महज 35 किलोमीटर दूर हैं।
फिलहाल लद्दाख में दो एयरबेस हैं- लेह और परतापुर। यहां से लड़ाकू विमान ऑपरेट कर सकते हैं लेकिन ये एयरबेस चीन की सीमा से 100 किलोमीटर से ज्यादा दूर है जबकि पूर्वी लद्दाख में दौलत बेग ओल्डी, फुकचे और न्योमा जैसे तीन एडवांस लैंडिंग ग्राउंड हैं। यहां से चीन की सीमा बहुत करीब है। न्योमा से 35, फुकचे से 14 और डीबीओ से मात्र 9 किलोमीटर है। फिलहाल इन लैंडिंग ग्राउंड पर मालवाहक विमान ऑपरेशनल हैं। सी-130 से लेकर सी-17 एयरकाफ्ट और चिनूक व अपाचे हेलीकॉप्टर जरूरत पड़ने पर हर ऑपरेशन के लिए तैयार रहते हैं।
चीन से लगी सीमा पर होने से यह लैंडिंग ग्राउंड सामरिक तौर पर काफी अहम माना गया है। ध्यान रहे जब अप्रैल 2020 में चीन के साथ सीमा पर झड़प हुई थी, तो उसके बाद सीमा पर सेना की तैनाती को लेकर वायुसेना ने काफी अहम भूमिका निभाई थी। सेना की जरूरत के मुताबिक साजो-समान और जवानों को बॉर्डर पर भेजा गया था। ट्रांसपोर्ट एयरकाफ्ट और चिनूक हेलीकॉप्टर की वजह से यह संभव हुआ। इसी दबाव का नतीजा रहा कि चीन की सेना का मूवमेंट रुक सा गया। कई जगहों पर उसे पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा।
अब भारत न सिर्फ सीमा पर अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत कर रहा है, बल्कि सरकार की कोशिश है कि अब चीन किसी भी तरह सीमा पर यथास्थिति में बदलाव करने की हिमाकत ना करे। पूर्वी लद्दाख में करीब तीन साल से चीन के साथ सीमा विवाद को सुलझाने के लिये 19 दौर की बातचीत हो चुकी है।