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अभावों से प्रीति हारी नहीं जिद-जुनून से बनीं सरताज

प्रतिभा की संघर्ष गाथा : मजदूर की बेटी बनीं राष्ट्रीय जूनियर हॉकी टीम की कप्तान

by Blitzindiamedia
April 7, 2023
in महिला-खेल
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अभावों से प्रीति हारी नहीं जिद-जुनून से बनीं सरताज

नई दिल्ली। प्रतिभा की संघर्ष गाथा की जीती-जागती मिसाल हैं सोनीपत की प्रीति। अभावों से कभी हारी नहीं, खेल का जुनून था और जीतने की जिद। अच्छी डाइट तो दूर, ड्रेस तक के पैसे नहीं थे लेकिन वह साधक की तरह निरंतर आगे बढ़ती गई। अंततः अभाव हारे, बाधाएं उड़न छू हो गईं और प्रीति का सपना पूरा हो गया। प्रीति आज राष्ट्रीय जूनियर हाॅकी टीम की कप्तान हैं।

राजमिस्त्री की बेटी : सोनीपत की भगत सिंह कॉलोनी की निवासी प्रीति के पिता राजमिस्त्री का काम करते हैं। खेल सफर के शुरुआती दिन घोर अभाव में बीते लेकिन विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष के जज्बे ने उन्हें कामयाब बनाया। प्रीति ने 10 साल की उम्र में ही हाॅकी खेलना शुरू कर दिया था। उसके पिता ने मेहनत- मजदूरी करके बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाया। प्रीति ने भी अपने पिता की उम्मीदों को टूटने नहीं दिया तथा कड़ी मेहनत कर जूनियर हाॅकी टीम की कप्तानी हासिल की। प्रीति के पिता का कहना है कि वह पिछले लंबे समय से राजमिस्त्री का काम कर रहे हैं तथा उनकी बेटी की डाइट पूरी करने के लिए उन्होंने अतिरिक्त मजदूरी भी की। पहले वह नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी खेलने के लिए बाहर जाए। परंतु प्रीति छुपकर बाहर खेलने जाती थी और ग्राउंड में पहुंचने के बाद ही घर सूचना देती कि खेल रही हूं। बेटी की लगन को देखते हुए उनके पिता भी इस मिशन में शामिल हो गए कि बेटी को बड़ा खिलाड़ी बनाना है। प्रीति के कप्तान बनने के बाद अब परिवार में खुशी की लहर है।

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-आत्मविश्वास से भरी सोनीपत की प्रीति का सपना ओलंपिक में सीनियर टीम के लिए खेलना

प्रीति के कोच का बयान : प्रीति के कोच प्रीतम सिवाच ने कहा कि उनके ग्राउंड की 3 खिलाड़ियों का चयन जूनियर हॉकी टीम में हुआ है, जिनमें से प्रीति कप्तान बनी हैं। उन्होंने बताया कि ग्राउंड पर प्रीति ने जीतोड़ मेहन करके अन्य खिलाड़ियों के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया है। प्रीति ने 10 वर्ष की आयु में जब खेलना शुरू कर दिया था तब उनके घर के हालात अच्छे नहीं थे परंतु उसने हिम्मत दिखाई और लगातार खेलती रही और लक्ष्य को पाकर ही दम लिया।

कोच का पूरा सहयोग मिला : प्रीति ने जब खेलना शुरू किया, उस समय डाइट की बात तो दूर, उसके पास ड्रेस खरीदने तक के पैसे नहीं थे। ऐसे समय में प्रीति के कोच ने उसका बहुत ज्यादा साथ दिया। इसके साथ ही प्रीति के पिता ने भी अपने कदम पीछे नहीं हटाये तथा दिन-रात मेहनत मजदूरी करके प्रीति के हॉकी खेलने के सपने को पूरा किया। आज प्रीति बहुत खुश हैं, क्योंकि अभावग्रस्त प्रतिभा को मुकाम मिल गया है। प्रीति ने कहा कि कप्तान बनने के बाद जिम्मेदारी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। प्रीति का सपना अच्छा प्रदर्शन करते हुए सीनियर टीम में जाना तथा ओलंपिक तक पहुंचना है। प्रीति का आत्मविश्वास देखकर लगता है कि यह सपना भी जल्द पूरा होगा।

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