ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पोक्सो मामले में बयान दर्ज करते समय पीड़िता के नाम का खुलासा करने पर चिंता व्यक्त करते हुए पश्चिम बंगाल में न्यायिक और पुलिस अधिकारियों को संवेदनशील बनाने का आह्वान किया है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संदीप मेहता और पीबी वराले की खंडपीठ ने कहा, “हमें लगता है कि पश्चिम बंगाल में न्यायिक अधिकारियों के साथ-साथ पुलिस अधिकारियों को भी संवेदनशील बनाने की कवायद शुरू करने की जरूरत है ताकि इस अनिवार्य आवश्यकता का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित किया जा सक।” इस आदेश की एक कॉपी माननीय मुख्य न्यायाधीश के सामने रखे जाने के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को भेजी जाएगी।
पहचान उजागर करने पर दो साल तक की सजा
यौन अपराधों से बच्चों की रोकथाम अधिनियम (पोक्सो) की धारा 33(7) में कहा गया है कि विशेष अदालत यह सुनिश्चित करेगी कि जांच या मुकदमे के दौरान किसी भी समय बच्चे की पहचान का खुलासा नहीं किया जाए। लिखित रूप में दर्ज होने पर विशेष न्यायालय को अगर लगता है कि नाम उजागर करना बच्चे के हित में है तो वह ऐसे प्रकटीकरण की अनुमति दे सकता है। आईपीसी की धारा 228ए विक्टिम की पहचान उजागर करने पर दो साल तक की सजा का प्रावधान करती है।
अदालत ने इन धाराओं का किया जिक्र
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ये भी कहा, “हालांकि, मामले को बंद करने से पहले, हमें यह देखना होगा कि पोक्सो अधिनियम की धारा 33(7) और आईपीसी की धारा 228ए की अनिवार्य आवश्यकताएं पूरी होनी चाहिए। इस मामले में इसका पालन नहीं किया गया है क्योंकि सीआरपीसी की धारा 164 और 161 के तहत पीड़िता के बयान दर्ज करते समय, उसके नाम का उल्लेख किया गया है और निपुण सक्सेना बनाम भारत संघ में निर्धारित कानून के अनुसार इसे छिपाया नहीं गया है।
निपुण सक्सेना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून निर्माताओं का इरादा है कि ऐसे अपराधों के पीड़ित की पहचान नहीं की जानी चाहिए ताकि उन्हें भविष्य में किसी भी तरह के शत्रुतापूर्ण भेदभाव या उत्पीड़न का सामना न करना पड़े। पोक्सो अधिनियम के उद्देश्य को समझाते हुए अदालत ने कहा कि धारा 24(5) और धारा 33(7) को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि जांच के दौरान किसी भी समय बच्चे का नाम और पहचान का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए।


















