ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि लोग न्यायिक प्रक्रिया से इतना त्रस्त हो चुके हैं कि वे बस समझौता चाहते हैं। उन्होंने कहा कि वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र के रूप में लोक अदालतें एक ऐसा मंच हैं जहां लंबित मामलों का सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटारा या समझौता किया जा किया जा सकता है। साथ ही पारस्परिक रूप से स्वीकृत समझौते के विरुद्ध कोई अपील दायर नहीं की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में विशेष लोक अदालत सप्ताह के मौके पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, यह लंबी न्यायिक प्रक्रिया ही सजा है और यह हम सभी जजों के लिए चिंता का विषय है। मुझे हर स्तर पर लोक अदालत के आयोजन में बार और बेंच समेत सभी से जबरदस्त समर्थन और सहयोग मिला। चीफ जस्टिस ने कहा कि जब लोक अदालत के लिए पैनल गठित किए गए थे, तो यह सुनिश्चित किया गया था कि हर पैनल में दो जज और बार के दो सदस्य शामिल होंगे। इसके पीछे उद्देश्य अधिवक्ताओं को संस्था पर स्वामित्व देना है क्योंकि यह ऐसी संस्था नहीं है जिसे सिर्फ जज संचालित करें।
7 बेंचों से शुरू विशेष लोक अदालत 13 बेंच तक पहुंची
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विशेष लोक अदालत की शुरुआत सात बेंचों से हुई थी क्योंकि हमें संदेह था कि हम सफल हो पाएंगे। उन्होंने कहा, बृहस्पतिवार तक हमारे पास 13 बेंच थीं और बहुत काम था। लोक अदालत का उद्देश्य लोगों के घरों तक न्याय पहुंचाना और लोगों को यह सुनिश्चित करना है कि हम उनके जीवन में निरंतर मौजूद हैं।
मध्यस्थता भारतीय संस्कृति का हिस्सा : मेघवाल
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि मध्यस्थता लंबे समय से भारतीय संस्कृति का हिस्सा रही है। उन्होंने कहा कि आत्मनिरीक्षण करने की शक्ति विवादों को सुलझाने में मदद करती है।
वैवाहिक विवाद निपटाने में लोक अदालतों की भूमिका को सराहते हुए उन्होंने कहा कि पहले जो काम परिवार के बुजुर्ग करते थे, अब वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र कर रहा है। मेघवाल ने कहा कि पहली लोक अदालत भगवान श्रीकृष्ण ने लगाई थी जब उन्होंने कौरवों और पांडवों के बीच विवाद को सुलझाने की कोशिश की थी।