ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने तलाक के एक केस में कुछ ऐसा कहा जिसके बारे में हर कहीं चर्चा हो रही है। यहां कोर्ट ने एक दंपति को तलाक देने और इसके लिए छह महीने इंतजार की बाध्यता से छूट दी है। हाईकोर्ट ने कहा है कि सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव और तेजी से बदल रहे समाज के मद्देनजर तलाक के मामलों में यथार्थवादी नजरिया अपनाए जाने की आवश्यकता है।
सिंगल बेंच का फैसला
जस्टिस गौरी गोडसे की सिंगल बेंच ने अपने फैसले में कहा कि प्रतीक्षा अवधि एक एहतियाती प्रावधान है ताकि किसी भी पक्ष के साथ कोई भी अन्याय न हो और यह पता लगाया जा सके कि क्या सुलह की संभावना है। जस्टिस गोडसे ने कहा कि यदि अदालत इस बात से संतुष्ट हो जाए कि दोनों पक्षों ने अलग होने और आगे बढ़ने का निर्णय सोच-समझकर लिया है और सुलह की कोई संभावना नहीं है, तो अदालत को यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और अपने विवेक का इस्तेमाल कर प्रतीक्षा अवधि की बाध्यता से छूट देनी चाहिए।
– हाईकोर्ट के फैसले की हर कहीं चर्चा
दंपति ने मांगी थी प्रतीक्षा अवधि से छूट
पुणे के एक दंपती ने आपसी सहमति से तलाक और छह महीने की प्रतीक्षा अवधि से छूट का अनुरोध किया था। जस्टिस गोडसे ने कहा कि छह महीने की प्रतीक्षा की बाध्यता से छूट की याचिका पर निर्णय लेते समय इस अवधि के उद्देश्य को सही ढंग से समझना आवश्यक है। कोर्ट ने कहा कि विकसित होते समाज में तेजी से हो रहे बदलावों को देखते हुए न्यायपालिका आपसी सहमति से वैवाहिक संबंधों को समाप्त करने का अनुरोध करने वाले पक्षकारों की सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
बदलती परिस्थितियों का हवाला
इस प्रकार बदलती सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। अदालत ने कहा कि आम तौर पर ऐसे मामले सामने आते हैं जिनमें पक्षकार झगड़ते रहते हैं और सुलह की कोई संभावना नहीं होती।
याचिका लंबित होने से नुकसान
हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में पक्षों को सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान की संभावना तलाशने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यहां तक कि उन्हें मध्यस्थ के पास भी भेजा जाता है, ताकि वे मुकदमे को समाप्त कर सकें लेकिन जब पक्षकार आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन करते हैं, तो वे अलग होने का निर्णय सोच-समझकर लेते हैं। बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता युवा हैं और उनकी तलाक याचिका को लंबित रखने से उन्हें मानसिक पीड़ा होगी। अभी जो केस हमारे पास आया है, उसमें पुरुष और महिला दोनों ने कहा है कि तमाम प्रयासों के बावजूद उनके बीच सुलह का विकल्प नहीं बचा है। इसलिए उन्होंने आपसी सहमति से अलग होने का निर्णय लिया है।