नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 28 साल पहले के मर्डर मामले में पिता और बेटे को संदेह का लाभ (बेनीफिट ऑफ डाउट) देते हुए बरी कर दिया है। इन दोनों को निचली अदालत और हाईकोर्ट से उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष (प्रॉसीक्यूशन) इन दोनों के खिलाफ केस साबित करने में असफल रहा है। ऐसे में दोनों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी रामा सुब्रह्मण्यम की अगुवाई वाली बेंच के सामने मोहम्मद मुस्लिम बनाम यूपी सरकार का मुकदमा आया था। कोर्ट ने कहा कि मामले में विश्वसनीय चश्मदीद गवाह नहीं हैं। साथ ही यह तथ्य साबित नहीं हो रहा है कि घटना के वक्त दोनों आरोपी मौके पर मौजूद थे। ऐसे में मामले में आरोपियों को संदेह का लाभ दिया जाता है।
यह मामला 1995 का है। पुलिस के मुताबिक उत्तराखंड के रहने वाले मोहम्मद अल्ताफ हुसैन साइकिल से जा रहे थे उस वक्त उनके बेटे और भतीजे साथ में थे। आरोप है कि इसी दौरान आरोपियों ने गंडासे से अल्ताफ पर हमला किया और इससे उनकी मौत हो गई। मौके पर आरोपियों को पकड़ने की कोशिश हुई लेकिन वे भाग गए। 4 अगस्त 1995 को मामले में केस दर्ज किया गया। मौके पर मौजूद साइकिल पर कंबल पुलिस ने बरामद किया। पुलिस के मुताबिक साइकिल और कंबल आरोपियों के थे। कोर्ट ने कहा, ये चीजें कोर्ट में कभी पेश नहीं की गईं। आरोपियों ने अपनी संलिप्तता को नकार दिया। 25 अप्रैल 1998 को सेशन कोर्ट ने दोनों आरोपियों को हत्या मामले में दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।