नई दिल्ली। अब शिक्षा के तौर-तरीके बदल रहे हैं। विदेश में शिक्षा लेनी हो या कम समय में जॉब मार्केट के लिए तैयार होना हो, परंपरागत रूप से एक-एक कर डिग्री कोर्स करने के बजाय अब समय की बचत के कई रास्ते खुले हैं। एक साथ दो एकेडेमिक प्रोग्राम करने का विकल्प है, तो वहीं चार वर्षीय ऑनर्स कोर्स का रास्ता भी बारहवीं के बाद मिल रहा है। हर युवा जल्द से जल्द जॉब जगत का हिस्सा बनना चाहता है लेकिन अपने क्षेत्र का प्रशिक्षण और शिक्षा पूरी करने में उसे एक तय समय तो लगता ही है। ऐसे में कुछ विकल्प हैं, जिन्हें अपनाकर आप समय की बचत के साथ बेहतर स्किल ले सकते हैं। जैसे इंटीग्रेटेड डिग्री का विकल्प, जो काफी समय से उपलब्ध है।
वहीं नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 के तहत अब छात्रों को एक ही समय में दो पूर्णकालिक डिग्री प्रोग्राम करने का विकल्प भी मिला है। यूरोपीय देशों में यह विकल्प काफी पहले से उपलब्ध है। दिल्ली यूनिवर्सिटी में इसकी शुरुआत हो चुकी है।
दो डिग्री कोर्स में क्या है अलग
नए विकल्प में दो एकेडेमिक प्रोग्राम एक साथ करने पर दो एकदम अलग डिग्री कोर्स को एक साथ कर सकते हैं। कोर्स पूरा करने पर दो अलग डिग्रियां मिलेंगी। वहीं, पहले से चला आ रहा इंटीग्रेटेड डुअल डिग्री कोर्स अंडरग्रेजुएट और ग्रेजुएट प्रोग्राम को एक साथ जोड़ता है। जैसे बीटेक और एमटेक। यह चार से पांच साल का होता है और पूरा होने पर एक ही डिग्री मिलती है।
शर्तें रखें ध्यान
दो एकेडेमिक प्रोग्राम एक साथ करने के नए विकल्प का चयन करते हैं, तो यह ध्यान रखें – एक कोर्स के क्लास की टाइमिंग दूसरे कोर्स की कक्षाओं के टाइम से अलग हो।
-दो डिग्री कोर्स में एक कोर्स फिजिकल मोड में दूसरा कोर्स ओपन व डिस्टेंस लर्निंग या ऑनलाइन मोड में या दोनों कोर्स ओपन एंड डिस्टेंस लर्निंग अथवा ऑनलाइन मोड में हों।
-दोनों पाठ्यक्रम समान स्तर के हों, यानी एक ग्रेजुएट स्तर का और दूसरा पीजी स्तर का कोर्स नहीं कर सकते हैं। दोनों कोर्स यूजीसी से मान्यता प्राप्त हों। यह एक ही संस्थान या दो अलग संस्थानों से भी किया जा सकता है।
क्या होगा फायदा
इस तरह के प्रोग्राम से समय की बचत होगी। साथ ही दो डिग्री लेकर छात्र दो अलग-अलग क्षेत्रों में अपना धरातल तैयार कर सकता है। यह विशेषकर उन क्षेत्रों में लाभकारी होता है, जहां बहु-क्षेत्रीय विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, जैसे कि डेटा साइंस, बायोटेक्नोलॉजी या आर्थिक और कानूनी क्षेत्र। जो युवा प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में कुछ साल गंवा देते हैं, उनके लिए भी ये प्रोग्राम सहायक होंगे। दो डिग्री के साथ दो क्षेत्रों में नौकरी के अवसरों का आधार बनता है।
इन पर विचार करें
-दो डिग्री कोर्स एक साथ करने के मौके का इस्तेमाल खुद को स्किल देने में करें। एक डिग्री कोर्स और दूसरा डिप्लोमा कर सकते हैं।
-अगर आप एक साथ दो पाठ्यक्रमों के लिए टाइम मैनेजमेंट में सहज हैं, तो ये उपयुक्त होंगे। इसमें दो कोर्स का खर्च एक ही अवधि में होगा। इसके बारे में भी सोचें।
जानकारी कैसे लें
जहां प्रवेश ले रहे हैं उस विश्वविद्यालय से या उसके पोर्टल से जानकारी जरूर लें। यूजीसी की वेवबसाइट www.ugc.gov.in पर दो एकेडेमिक प्रोग्राम एक साथ करने से संबंधित सभी नियम दिए गए हैं। इस लिंक से भी पता कर सकते हैं- https//shorturl.at /mb8PB
चार साल का ऑनर्स कोर्स भी समझें
इस समय देश में बारहवीं के बाद चार वर्षीय स्नातक डिग्री कोर्स (ऑनर्स) भी उपलब्ध हैं और परंपरागत तीन वर्षीय भी। लगभग सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अब नई शिक्षा नीति के अनुसार, चार वर्षीय पाठ्यक्रम लागू हो गया है। जैसे दिल्ली यूनिवर्सिटी। कई छात्र ऐसे पाठ्यक्रम में दाखिला ले तो रहे हैं, लेकिन चार साल पूरा करें या तीन साल में ही छोड़ दें, जैसी उलझनों में फंस भी रहे हैं। चार वर्षीय डिग्री (ऑनर्स) प्रोग्राम के तहत नियम है कि कोर्स का पहला साल पूरा करके छोड़ने पर सर्टिफिकेट मिलेगा। दूसरे साल में डिप्लोमा और तीन साल में सामान्य डिग्री मिलेगी। चार साल में ऑनर्स। जैसे कॉमर्स (ऑनर्स) करने वाले छात्र को तीन साल के बाद बीकॉम की डिग्री मिलेगी और चार साल पूरे होने के बाद बीकॉर्म ऑनर्स। इस तरह छात्र ने जितने वर्ष प्रोग्राम को दिए हैं, वे बेकार नहीं जाएंगे। व्यावहारिक तौर पर सामान्य डिग्री भी आपको वहीं ले जाती है, जहां ऑनर्स पाठ्यक्रम। यहां इसे बीकॉम के उदाहरण से ही समझते हैं। यदि आप सीए, सीएस, एमकॉम या एमबीए करना चाहते हैं, तो इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि आपने सामान्य डिग्री कोर्स किया है या बीकॉम ऑनर्स। हां, ऑनर्स कोर्स आपको आगे के लिए तैयार कर देता है।
क्या होंगे फायदे
– जो लोग विदेश से आगे की पढ़ाई करना चाहते हैं, उनके लिए यह बहुत अच्छा है। अगर छात्र विदेश जाते हैं, तो वहां उन्हें एक साल का कोर्स अलग से नहीं करना होगा। क्योंकि विदेशी विश्वविद्यालयों में डिग्री पाठ्यक्रम चार वर्ष का होता है। वहीं सरकार की यह भी योजना है कि एमए को एक साल का कर दिया जाए।
– अगर आपको एक ही क्षेत्र में आगे बढ़ना है तो बेहतर है चार साल का कोर्स पूरा कर लें।
– अकादमिक क्षेत्र में ही आगे नहीं जाना है, तो तीन साल बाद इसे छोड़ भी सकते हैं। फिर अलग से डिप्लोमा आदि से स्किल बनाएं।
– पढ़ाई का ज्यादा भार उठाने में कमजोर हैं, तो सामान्य डिग्री कोर्स चुनें।