ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। बार निकायों ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि वकील डॉक्टरों व अस्पतालों की तरह अपने काम का विज्ञापन नहीं कर सकते। इसलिए उनकी सेवाओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में नहीं लाया जा सकता।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्थल की पीठ के समक्ष वकील और डॉक्टर में अंतर बताते हुए बार निकायों के वकील नरेंद्र हुड्डा ने कहा, सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, एक वकील का कर्तव्य अदालत के प्रति है कि वह कानून के निपटारे में उसकी सहायता करे, न कि अपने मुवक्कि ल के प्रति।
बार कौंसिल ऑफ इंडिया, दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन और बार ऑफ इंडियन लॉयर्स जैसे बार निकायों और अन्य व्यक्तियों ने याचिकाओं में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के 2007 के फैसले को चुनौती दी है। एनसीडीआरसी ने फैसले में कहा था कि वकील और उनको सेवाएं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के दायरे में आती हैं। अदालत ने कहा था कि अगर डॉक्टरों पर खराब सेवा, लापरवाही और सेवा में कमी के लिए मुकदमा दायर किया जा सकता है, तो वकीलों पर इसके लिए मुकदमा क्यों नहीं किया जा सकता है। इसके जवाब में हुड्डा ने कहा, एक डॉक्टर के क्लीनिक को सभी की तरह एक वाणिज्यिक इकाई के रूप में माना गया है।
बड़े अस्पताल, जो अपना विज्ञापन कर सकते हैं, उन पर कोई रोक नहीं है। हालांकि, वकीलों पर अपने काम का विज्ञापन करने पर रोक है। वे अधिवक्ता अधिनियम 1961 के तहत अपनी सेवा के पारिश्रमिक के रूप में मुकदमे की संपत्ति में हिस्सा नहीं ले सकते हैं।